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________________ आगम विषय कोश - २ विषय अनिसृष्ट आज्ञा भंग निर्दयता अनवस्थानिवारण वर्जना का महत्त्व पलिमंथ (स्वाद का दुष्परिणाम ) प्रवचन में अनुधर्मता : अर्हत् द्वारा अनाचीर्ण, मुनि के लिए अनाचीर्ण विधि-अविधि परिणामक, अपरिणामक, अतिपरिणामक प्रतिसेवना संसर्ग का महत्त्व दत्त वस्तु का पुनः ग्रहण वस्त्रविभूषा से हानि स्त्रीयुक्त वसति से चारित्रहानि आज्ञाभंग : गुरुतर दंड कामातुर देवियां, स्त्रियां आदि व्युद्ग्रह से अपक्रमण अनार्य देशों में विहरण श्रमण संघ के प्रभावक मात्रक के अग्रहण से तिरस्कार अस्वाध्याय में स्वाध्याय से हानि पंचविध अस्वाध्याय आचार्यादियुक्त गच्छपंजर परिकुंचित आलोचना विषम प्रतिसेवना, तुल्यशोधि Jain Education International ६६५ कथा - संकेत बत्तीस मोदक वाला भिक्षु राजा द्वारा सत्कृत पुरुष म्लेच्छ द्वय इक्षुकरण दृष्टांत कन्याओं का अन्तःपुर । देवद्रोणी मूंग की कच्चीफली खाने से स्त्री की मृत्यु अचित्त तिलकट- जलहद और भगवान महावीर विष - शस्त्र - वेताल - औषध दृष्टांत चार मरुक और श्व- मांस पटरानी दो शुकबन्धु विक्रीत वृक्ष का पुनर्ग्रहण रत्न कंबल और तस्करउपद्रव निभा भाग-४ अग्नितप्त जतु दृष्टांत चंद्रगुप्त मौर्य व्यंतर देवियां और धूर्त्त । रयणादेवी । अर्हन्नक-मर्कटी। सिंही- पुरुष । श्वान मानुषी जमालि आदि निह्नव आचार्य स्कन्दक राजा संप्रति और आर्यमहागिरि - सुहस्ती वारत्तग-प्रव्रज्या म्लेच्छाक्रमण पांच राजपुरुष शकुनि-पंजर दृष्टांत अश्व । तापस | योद्धा । मालाकार । मेघ । पांच वणिक् और पन्द्रह गधे For Private & Personal Use Only सन्दर्भ ४५१६-४५२० ४७८३-४७८६ ४८४३ ४८४८ ४८५१-४८५३ ४८५८ ४८५७-४८५९ ४८६९-४८७१ ४८७४ ४९१४ ४९७६ ५०५८ ५०९३ ५११० ५१३७-५१४० ५१५५-५१५८, ५१९०-५१९३ ५५९३-५६२४ ५७४१-५७४३ ५७४४-५७५८ ५८९० ६०७६ ६०८०, ६०८१ ६३५० ६३९६-६३९९ चू परिशिष्ट १ ६४०४, ६४०५ www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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