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________________ आगम विषय कोश-२ ५१५ वेद के बिना क्षीण हो जाता है। इससे पूर्व वह जैसे-तैसे आहार से वेद के तीन प्रकार हैं--स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद। निर्वाह कर लेता है। १. स्त्रीवेद-पित्त की उग्रता होने पर मधुर वस्तु की अभिलाषा क्षीण शरीर वाला कुत्ता एक अहोरात्र में ही आहार से पुष्ट हो होती है। इसी भांति स्त्री की पुरुष के प्रति अभिलाषा होती है। जाता है। मनुष्य पांच दिनों में, गाय और वृषभ पन्द्रह दिनों में तथा २. परुषवेद-कफ की उग्रता होने पर अम्ल वस्तु की इच्छा होती हाथी साठ दिनों में पौष्टिक आहार प्राप्त करके पुष्ट हो जाता है। है। इसी भांति पुरुष की स्त्री के प्रति अभिलाषा होती है। वद्धवास-स्थविर मनियों का स्थिरवास। द्र स्थविर ३. नपुंसकवेद-पित्त और श्लेष्म दोनों की उग्रता होने पर मंजिका (तुलसी) की अभिलाषा होती है। इसी भांति स्त्री और पुरुष दोनों वृषभ-गच्छ की कार्यचिन्ता में नियुक्त। द्र स्थविरकल्प के प्रति अभिलाषा होना नपुंसकवेद है। * वृषभ की चिकित्सा द्र वैयावृत्त्य (वेद का अर्थ है-'मैथुन की संवेदना उत्पन्न करने वाला * वृषभ संस्थान द्र अनशन मोहकर्म का परमाणु-स्कंध।' इसका दूसरा अर्थ है-'मैथुन की संवेदना।' इसका तीसरा अर्थ है-'मैथुन-क्रिया में उत्पन्न होने वेद-मैथुन की संवेदना। संवेदना को उत्पन्न करने वाला वाला लिंग।'.... संवेदना को भाववेद और अवयव को द्रव्य वेद मोहकर्म का परमाणुस्कंध। कहा जाता है।-भ २/७९ का भाष्य) १. स्त्री-पुरुष-नपुंसक वेद का स्वरूप २. तीन वेद : त्रिविध अग्नि से तुलना २. तीन वेद : त्रिविध अग्नि से तुलना थी पुरिसो अ नपुंसो, वेदो तस्स उ इमे पगारा उ। ३. वेदत्रयी का उदय ० वेद के उदय में अवस्था प्रमाण नहीं फुफुम-दवग्गिसरिसो, पुरदाहसमो भवे तइओ। * वेदोदय का मुख्य-गौण कारण द्र ब्रह्मचर्य उदयं पत्तो वेदो, भावग्गी होइ तदुवओगेणं। * जिनकल्पी में वेद द्र जिनकल्प भावो चरित्तमादी, तं डहई तेण भावग्गी। ४. नपुंसक के सोलह प्रकार (बृभा २०९८, २१५०) ५. पंडक नपुंसक के लक्षण और प्रकार त्रिविध वेद के ये तीन प्रकार हैं० वेदउपघात-उपकरणउपघात-दृष्टांत १. स्त्रीवेद करीष की अग्नि के समान है। कंडे की आग भीतर ही ६. क्लीब नपुंसक : स्वरूप और प्रकार ७. वातिक नपुंसक का स्वरूप भीतर से जलती है, परिस्फुट रूप से प्रज्वलित नहीं होती, न ही ८. दीक्षा के अर्ह-अनर्ह : नपुंसक बुझती है किन्तु चालित करने पर तत्क्षण ही उद्दीप्त हो जाती है। ० नपुंसक के दीक्षा-निषेध का हेतु २. पुरुषवेद दावाग्नि के समान है। दावाग्नि ईंधन का योग पाकर * नपुंसक के मुण्डापन आदि का निषेध द्र दीक्षा सहसा प्रज्वलित होकर बुझ भी जाती है। | ९. पंडक आदि की दीक्षा के अपवाद.... ३. नपुंसकवेद नगरदाह के समान है। यह अग्नि शुष्क में या आर्द्र में सर्वत्र प्रज्वलित हो जाती है। इसी प्रकार नपुंसकवेद स्त्री में, १. स्त्री-पुरुष-नपुंसक वेद का स्वरूप पुरुष में-सर्वत्र उद्दीप्त होता है, उपशांत नहीं होता। वेदस्त्रिविधः स्त्री-पुं-नपुंसकभेदात्। तत्र यत् स्त्रिया: उदय प्राप्त वेद स्त्री-अभिलाषा आदि के कारण भावाग्नि पित्तोदये मधुराभिलाष इव पुंस्यभिलाषो जायते स स्त्रीवेदः, है। वह चारित्र आदि भावों को जलाता है। यत् पुनः पुंसः श्लेष्मोदयादम्लाभिलाषवत् स्त्रियामभिलाषो भवति स पुंवेदः, यत्तु पण्डकस्य पित्त-श्लेष्मोदये मञ्जिका- ३. वेदत्रयी का उदय भिलाषवदुभयोरपि स्त्री-पुंसयोरभिलाषः समुदेति स नपुंसक- ...."तिविहम्मि वि वेदम्मि, तियभंगो होइ कायव्वो॥ _(बृभा ८३१ की वृ) (बृभा ५१४७) वेदः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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