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________________ वीर्य ५१४ आगम विषय कोश-२ करणवीर्य क्रियात्मकता या प्रवृत्ति है। जिसमें उत्थान, कर्म, बल, (क) औरस्यबल-शारीरिक बल। इसके अन्तर्गत मनोवीर्य वीर्य, पुरुषकार और पराक्रम होता है, वह करणवीर्य की दृष्टि से वागवीर्य, कायवीर्य तथा आनापान वीर्य का समावेश होता है। सवीर्य होता है। जिसमें उत्थान आदि नहीं होते, वह करणवीर्य (ख) इन्द्रिय बल-श्रोत्र आदि पांच इन्द्रियों का अपने-अपने की दृष्टि से अवीर्य होता है।-भ १/३७६, ३८१ भाष्य विषय के ग्रहण का सामर्थ्य। वीर्य के चार प्रकार हैं (ग) आध्यात्मिक बल-इसके अनेक प्रकार हैं१. द्रव्य वीर्य-इसके तीन प्रकार हैं-सचित्त, अचित्त और मिश्र। ० उद्यम-ज्ञान आदि के अनुष्ठान में उत्साह। सचित्त द्रव्यवीर्य के तीन भेद हैं ० धृति-कष्टों में अक्षुब्धता। ० द्विपद-अर्हत, चक्रवर्ती, बलदेव आदि का वीर्य अथवा स्त्री- शौण्डीर्य-त्याग करने का उत्कृष्ट सामर्थ्य । जैसे-चक्रवर्ती का रत्न का वीर्य अथवा जिस द्रव्य का जो वीर्य हो, वह। मन अपने षखंड राज्य को छोड़ते समय भी प्रकम्पित नहीं • चतुष्पद--अश्वरत्न, हस्तिरत्न आदि का वीर्य अथवा सिंह, होता। अथवा आपदा में अविषण्णता। अथवा कठिन कार्य को व्याघ्र, शरभ आदि का वीर्य। करने में भी हर्षानुभूति। ० अपद-गोशीर्षचन्दन आदि का शीत-उष्णकाल में उष्ण-शीत ० क्षमा-दूसरों के द्वारा आक्रोश किए जाने पर भी किंचित् भी वीर्य परिणाम। क्षुब्ध न होने का सामर्थ्य। अचित्त द्रव्य वीर्य के तीन प्रकार हैं ० गाम्भीर्य-परीषहों तथा उपसर्गों को सहने में अधृष्यता अथवा ० आहारवीर्य-आहार की शक्ति। जैसे सद्यः बनाए हुए 'घेवर' । अपने चमत्कारी अनुष्ठान में भी अहंकारशून्यता। प्राणकारी, हृद्य तथा कफनाशक होते हैं। औषधियों की शल्योद्धरण, ० उपयोग-साकार उपयोग तथा अनाकार उपयोग से युक्त। व्रण-संरोहण, विषापनयन, मेधाकरण आदि जो शक्तियां हैं, वह ० योग-मनोवीर्य, वचनवीर्य तथा कायवीर्य से युक्त। रसवीर्य है। चिकित्साशास्त्र आदि में विपाकवीर्य तथा योनिप्राभृत ० तप- बारह प्रकार के तपोनुष्ठान को अग्लानभाव से करना। ग्रंथ में नानाविध द्रव्यवीर्य प्रतिपादित है। ० संयम-सप्तदशविध संयम में प्रवृत्ति । -सूनि ९१-९७ वृ ० आवरणवीर्य-कवच आदि की शक्ति। वीर्य दो प्रकार का है० प्रहरणवीर्य-चक्र आदि शस्त्रों की शक्ति। १. कर्मवीर्य-कर्मों के उदय से निष्पन्न शक्ति को कर्मवीर्य कहा २. क्षेत्रवीर्य-क्षेत्रगत शक्ति । जैसे देवकुरु, उत्तरकुरु आदि क्षेत्रों में जाता है। यह बालवीर्य है। उत्पन्न सभी द्रव्य उत्कृष्ट शक्ति वाले होते हैं। २. अकर्मवीर्य-वीर्यान्तराय कर्म के क्षय से उत्पन्न शक्ति को ३. कालवीर्य-एकान्तसुषमा आदि काल में अथवा विभिन्न ऋतुओं अकर्मवीर्य कहा जाता है। इसमें कर्म-बंधन नहीं होता और न यह में विभिन्न द्रव्यों की विशिष्ट शक्ति। अथवा भिन्न-भिन्न पदार्थों कर्म-बंध में हेतुभूत ही होता है। यह पंडितवीर्य है। में कालहेतुक बल होता है-'वर्षा ऋतु में नमक, शरद् ऋतु में प्रमाद को कर्म और अप्रमाद को अकर्म कहा गया है। जो पानी, हेमन्त में गाय का दूध, शिीशर में आंवले का रस, बसन्त में कषाय के बंधन से मुक्त, प्रमाद या हिंसा में प्रवृत्त नहीं होने वाला घी और ग्रीष्म में गुड़-ये अमृततुल्य हो जाते हैं।' अकर्मवीर होता है, उसी का वीर्य अकर्मवीर्य कहलाता है, इससे ग्रीष्म ऋतु में हरीतकी (हरड़) बराबर गुड़ के साथ, वर्षा कर्म का क्षय होता है। -सू १/८/२, ३, १० चू) ऋतु में सैन्धव नमक के साथ, शरद् ऋतु में बराबर शक्कर के साथ, ३. अवस्था, आहार और बल हेमन्त ऋतु में सौंठ के साथ, शिशिर में पीपल के साथ और बसंत ऋतु पणपन्नगस्स हाणी, आरेणं जेण तेण वा धरइ।" में मधु के साथ सेवन करने से समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं। एग पणगऽद्धमासं, सट्ठी सुण-मणुय-गोण-हत्थीणं।" ४. भाववीर्य-वीर्यशक्ति से युक्त जीव में वीर्यविषयक अनेक (बृभा १५२८, १५३०) प्रकार की लब्धियां होती हैं। उनके मुख्य तीन प्रकार हैं पचपन वर्ष की अवस्था में मनुष्य का बल विशिष्ट आहार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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