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________________ आगम विषय कोश-२ ४८५ रात्रिभोजनविरमण ० अभिनव श्रुतग्रहण के लिए। अपने गुरु से सम्पूर्ण श्रुत और अर्थ १४. राज्य में होने वाले उत्सव प्राप्त कर लिया, किन्तु श्रुतग्रहण का सामर्थ्य अभी विद्यमान है, ... समवाएसु वा पिंडनियरेसु वा इंदमहेसु वा खंदमतब शिष्य अपने ही देश में साधर्मिक कुल के आचार्य के पास, हेसु वा रुद्दमहेसु वा मुगुंदमहेसु वा भूतमहेसु वा जक्खमहेसु उसके अभाव में दूसरे कुल के आचार्य के पास जाकर शेष श्रुत को वा णागमहेसु वा थूभमहेसु वा, चेतियमहेसु वा रुक्खमहेसु ग्रहण करे। स्वदेश में उस प्रकार के बहुश्रुत आचार्य न होने पर वा गिरिमहेसु वा दरिमहेसु वा, अगडमहेसु वा तडागमहेसु अन्य देश में जाए। उनमें भी पहले निकटस्थ एक वाचना वाले वा दहमहेसु वा णदिमहेसु वा सरमहेसु वा सागरमहेसु वा आचार्य के पास जाए। सम्पूर्ण श्रुत के ग्रहण के बाद प्रतिभा का आगरमहेस वा.....। (नि ८/१४) सामर्थ्य होने पर दर्शन-विशुद्धि करने वाले गोविन्दनियुक्ति, मूर्धाभिषिक्त राजा के राज्य में अनेक प्रकार के मह (उत्सव) सन्मतितर्क, तत्त्वार्थ सूत्र आदि ग्रंथों का अध्ययन करने के लिए होते थे। यथा-समवाय (गोष्ठीभक्त), पितृपिण्डदानमह, इन्द्रमह, प्रमाणशास्त्र में कुशल आचार्यों के पास जाए। स्कन्दमह, रुद्रमह, मुकुन्दमह, भूतमह, यक्षमह, नागमह, स्तूपमह, ० राज्यनिर्गमन -वैराज्यप्रवेश की विधि चैत्यमह, वृक्षमह, गिरिमह, दरीमह, कूपमह, तडागमह, द्रहमह, आपुच्छिय आरक्खिय-सेट्ठि-सेणावई-अमच्च-राईणं। नदीमह, सरोवरमह, सागरमह, आकरमह । अइगमणे निग्गमणे, एस विही होइ नायव्वो॥ रात्रिभोजनविरमण-रात्रिभोजन का वर्जन। आरक्खितो विसज्जइ, अहव भणिज्जा स पुच्छह तु सेटुिं। जाव निवो ता नेयं, मुद्दा पुरिसो व दूतेणं । | १. रात्रिभोजन के विकल्प - * रात्रिभोजनविरमण : छठा व्रत द्र महाव्रत जत्थ वि य गंतुकामा, तत्थ वि कारिंति तेसि नायं तु। २. रात्रिभोजन : मूलगुणप्रतिसेवना आरक्खियाइ ते वि य, तेणेव कमेण पुच्छंति॥ ___ * रात्रिभोजन : शबलदोष द्र चारित्र (बृभा २७८६-२७८८) ३. कालातिक्रांत रात्रिभोजन वैराज्य में जाने के इच्छुक मुनि को अनुज्ञा लेनी होती ४. उद्गार निगलने का प्रायश्चित्त है। अनुज्ञा-पृच्छा के लिए पांच व्यक्ति अधिकृत होते हैं ० उद्गार और अन्नगंध से व्रतभंग नहीं आरक्षिक, नगरसेठ, सेनापति, अमात्य और राजा। गमन हेतु १. रात्रिभोजन के विकल्प पूछने पर यदि आरक्षिक अनुज्ञा दे देते हैं तो अच्छा है और जे भिक्खूदिया असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा यदि वे कहें कि नगरसेठ आदि की आज्ञा लें तो वैसा करना पडिग्गाहेत्ता दिया भुंजति॥"दिया असणं वा "पडिग्गाहेत्ता होता है। अनुज्ञाप्राप्ति के पश्चात् उनके पास से मुद्रापट्टक रत्तिं भुजति"""""रत्तिं असणं वा..."पडिग्गाहेत्ता दिया अथवा दूत की अन्वेषणा करनी चाहिए, जिससे राज्य के भुंजति रत्तिं असणं वा""पडिग्गाहेत्ता रत्तिं ,जति ॥ स्थानपालक आदि यह विश्वास कर सकें कि ये मुनि राजा "आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घातियं॥ आदि के द्वारा अनज्ञात हैं । परराज्य में प्रवेश और पूर्व राज्य से __(नि ११/७५-७८, ९३) निर्गमन की यह विधि है। रात्रिभोजन के चार विकल्प हैंजिस राज्य में वे जाना चाहते हैं, वहां यदि साध पहले से १. जो भिक्षु दिन में अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का प्रतिग्रहण ही विद्यमान हों तो उन्हें लेखप्रेषण या संदेशकप्रेषण द्वारा पहले ही कर दिन में (गृहस्थ द्वारा प्रथम दिन सोद्देश्य स्थापित आहार को सूचित कर देना चाहिए कि हम वहां आना चाहते हैं। आप दूसरे दिन ग्रहण कर) खाता है, आरक्षिक आदि से पूछ लें। उनके द्वारा अनुज्ञा की सूचना मिलने २. दिन में (सूर्यास्त से पहले) अशन आदि का प्रतिग्रहण कर पर मुनि वहां के लिए प्रस्थान करें। रात्रि में (सूर्यास्त के पश्चात्) खाता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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