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________________ आगम विषय कोश - २ ३. परतरक - जो तपोबल से हीन हैं, केवल वैयावृत्त्य करते हैं। ४. अन्यतरक - जो तप और वैयावृत्त्य दोनों में समर्थ हैं किन्तु एक समय में एक ही कार्य कर सकते हैं। ४१७ उभयतरक और आत्मतरक - ये दोनों प्रायश्चित्त के अभिमुख होते हैं। परतरक और अन्यतरक जब तक वैयावृत्त्य करते हैं, तब तक उनका प्रायश्चित्त निक्षिप्त रहता है। ३३. छोटी त्रुटि की उपेक्षा : सारणि आदि दृष्टांत अवसो व रायदंडो, न एवमेवं तु होति पच्छित्तं । संकर - सरिसव-सगडे, मंडववत्थेण दिट्टंता ॥ राजदण्डोऽवश्यमवशेनाप्युह्यते, यदि पुनर्नेति नोह्यते ततः शरीरविनाशो भवति । प्रायश्चित्तमप्यवश्यं भवति वोढव्यं, तद्वहनाभावे चारित्रशरीरविनाशापत्तेः ।" संकरस्तृणाद्यवकरः '' यथा सारण्या क्षेत्रे पाय्यमाने सारणिस्त्रोतसि तृणशूकमेकं तिर्यग् लग्नं तैर्नापनीतं तन्निश्रया अन्यान्यपि तृणशूकानि लग्नानि तन्निश्रया प्रभूतः पंको लग्नः । तत एवं तस्मिन् स्त्रोतसि रुद्धे क्षेत्रे समस्तमपि शुष्कम् । एकः पाषाणः शकटे प्रक्षिप्तः स नापनीतः अन्यः प्रक्षिप्तः कोऽपि गरीयान् पाषाणो यस्मिन् प्रक्षिप्ते तच्छकटं भंक्ष्यति । एरण्डमण्डपे एकः सर्षपः प्रक्षिप्तः स नापपीतः अन्यः प्रक्षिप्तः सोऽपि नापनीतः ।" एरण्ड-मण्डपो भज्यते । शुद्धे वस्त्रे कर्दमबिन्दुः पतितः, स न प्रक्षालितः, अन्यः पतितः सर्वं तद्वस्त्रं कर्दमवर्णं संजातम् एवं तु शुद्धचारित्रं स्तोकायां स्तोकायामापतितायामापत्तौ प्रायश्चित्तेनाशोध्यमानायां कालक्रमेणाचारित्रं सर्वथा भवति । (व्यभा ५५५ वृ) मुनि को चारित्र की विशुद्धि के लिए स्वेच्छा से प्रायश्चित्त वहन करना चाहिए, न कि राजदण्ड की तरह विवश होकर । राजदण्ड वहन न करने पर शरीर का नाश तथा प्रायश्चित्त वहन न करने पर चारित्र का विनाश होता है। ० सारणि - एक सारणि से खेत की सिंचाई की जाती थी। उसमें एक तृणशूक फंस गया। उसे निकाला नहीं गया, फिर दूसरा फंस गया। कालांतर में धीरे-धीरे वह सारणि कचरे से भर गई । पानी का आगे बढ़ना बंद हो गया । खेत सूख गया। • शकट - एक गाड़ी में पत्थर भरे जाने लगे। एक काष्ठ टूटा। Jain Education International प्रायश्चित्त उसकी उपेक्षा की गई। भरते भरते एक बड़ा पत्थर गाड़ी में डाला गया और पूरी गाड़ी ही टूट गई। ० मण्डप - एरण्डमण्डप पर प्रतिदिन सरसों के दाने फेंके जाने लगे। एक दिन उनके अत्यधिक भार से मंडप भग्न हो गया। ० वस्त्र–स्वच्छ वस्त्र पर कीचड़ की एक बूंद गिरी, उसे साफ नहीं किया गया । पुनः पुनः बूंदें गिरने से एक दिन वह वस्त्र कर्दमवर्ण वाला हो गया। 1 इसी प्रकार छोटे-छोटे अपराधों की उपेक्षा कर प्रायश्चित्त से शुद्धि न करने पर एक दिन चारित्र अचारित्र हो जाता है। ३४. अप्रमत्त भी प्रायश्चित्तभागी परीषहाणामसहनेन श्रोत्रेन्द्रियादिविषयेष्विष्टानिष्टेषु रागद्वेषाभिगमनतो वा प्रायश्चित्तस्थानापत्त्या'''''। (व्यभा ६२६ की वृ) आवरिता वि रणमुहे, जधा छलिज्जंति अप्पमत्ता वि मूलगुण-उत्तरगुणे, जयमाणा वि हु तथा छलिजंति .... (व्यभा ६२७, ६२८) प्रमत्तमुनि प्रायश्चित्त का भागी होता है। इसके मुख्य हेतु दो हैं - १. परीषहों को सहन न कर पाना। २. इष्ट-अनिष्ट इन्द्रियविषयों में राग-द्वेष करना । जैसे रणभूमि में प्रविष्ट कवचधारी योद्धा भी शत्रुओं से छले जाते हैं, वैसे ही मूलगुण-उत्तरगुणों में जागरूक श्रमण भी परीषह और उपसर्गों से छले जाते हैं। ३५. निर्ग्रथ - संयत: कितने प्रायश्चित्त ? For Private & Personal Use Only पंचे नियंठा खलु, पुलाग - बकुसा कुसील-निग्गंथा । तह य सिणाया तेसिं, पच्छित्त जधक्कमं वोच्छं ॥ आलोयण पडिकमणे, मीस विवेगे तहा विउस्सग्गे । तत्तो तवे य छट्टे, पच्छित्त पुलाग छप्पेते ॥ बकुसपडिसेवगाणं, पायच्छित्ता हवंति सव्वे वि । थेराण भवे कप्पे, जिणकप्पे अट्ठहा होति ॥ आलोयणा विवेगो य, नियंठस्स दुवे भवे । विवेगो य सिणातस्स, एमेया पडिवत्तिओ ॥ पंचे संजता खलु, नातसुतेणं कधिय जिणवरेणं ...... सामाइसंजताणं, पच्छित्ता छेदमूलरहितऽट्ठा । थेराण जिणाणं पुण, तवमंतं छव्विधं होति ॥ www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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