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________________ पर्युषणाकल्प ३५२ आगम विषय कोश-२ भिक्षु गृहपति के घर में प्रवेश कर पानकवर्ग को जाने- जिनकल्पी नित्य नियमतः लोच करते हैं। स्थविरकल्पी के तिलोदक, तुषोदक, यवोदक, ओसामन, कांजी, उष्णोदक अथवा लिए वर्षावास में लोच की अनिवार्यता है। असहिष्णु और ग्लान इस प्रकार का कोई पानकजात हो तो पहले ही आलोचना करे मुनि भी पर्युषणरात्रि का अतिक्रमण नहीं करते। (कहे)-आयुष्मन् ! भगिनि! इनमें से कोई पानकजात मुझे दोगी? केशलोच क्यों? उसके ऐसा कहने पर गृहस्थ कहे-आयुष्मन्तो! श्रमणो! तुम ही जे भिक्खू पज्जोसवणाए गोलोममाइं पि वालाई इस पानकजात को पात्र से उलीचकर, उंडेलकर ग्रहण करो-वैसे उवाढणावेति..........॥ (नि १०/३८) पानकजात को स्वयं ग्रहण करे अथवा गृहस्थ दे-उसे प्रासक और णिसुढंते आउवधो, उल्लेसु य छप्पदीउ मुच्छंति। कल्पनीय मानता हआ मिलने पर ग्रहण करे। ता कंडूय विराहे, कुज्जा व खयं तु आयाते॥ आम्रपानक, आम्रातक पानक, कैथपानक, बिजौरा-पानक, ..."उडु तरुणे चउमासो, खुर-कत्तरि छल्लहू गुरुगा॥ द्राक्षापानक, दाडिमपानक, खजूरपानक, नारियलपानक, केरपानक, पक्खिय-मासिय-छम्मासिए य थेराण तू भवे कप्यो। बेरपानक, आमलक पानक, इमली-पानक-इसी प्रकार का अन्य कोई पानकजात, जो गुठली, छाल और बीजसहित हो, उसे गृहस्थ कत्तरि-छुर-लोए वा, बितियं असहू गिलाणे य॥ भिक्षु के उद्देश्य से वंशपिटक, वस्त्र या वालज से एक बार या ___(निभा ३२१२-३२१४) बार-बार मसलकर, छानकर लाकर दे-वैसे पानकजात को अप्रासक जो भिक्षु पर्युषणा में गोरोम जितने बाल रखता है, वह और अनेषणीय मानता हुआ मिलने पर ग्रहण न करे। प्रायश्चित्त का भागी होता है। केश न काटने पर उन पर वर्षा की (हरिभद्र ने पानक का अर्थ आरनाल 'कांजी' किया है। बूंदें टिक जाती हैं, उससे जलकायिक जीवों की विराधना होती ..... प्रवचनसारोद्धार के अनुसार सुरा आदि को 'पान', साधारण है। गीले बालों में यूका आदि पैदा हो जाती हैं। खुजलाने से जल को 'पानीय' और द्राक्षा, खजूर आदि से निष्पन्न जल को उनकी तथा चमड़ी क्षत होने पर अपनी विराधना होती है। 'पानक' कहा जाता है। ...... ऋतुबद्धकाल में तरुण और वृद्ध चार माह से लोच करवाते सुश्रुत के अनुसार गुड़ से बना खट्टा या बिना अम्ल का हैं, वृद्ध उत्कृष्टतः छह मास से भी करवा सकते हैं। पानक गुरु और मूत्रल होता है। द्राक्षा से बना पानक श्रम, मूर्छा, क्षुर और कैंची से लोच करवाने पर क्रमशः षडलघु और दाह और तृषा का नाशक है। फालसे से और बेरों से बना पानक चतुर्गुरु प्रायश्चित्त आता है। हृदय को प्रिय तथा विष्टम्भि होता है। -द ५/४७ का टिप्पण) असहिष्णुता, शिरोरोग, आंख की ज्योति की मंदता आदि १३. पर्युषणा में लोच की अनिवार्यता आपवादिक स्थितियों में कैंची से पाक्षिक तथा क्षर से मासिक लोच वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा किया जाता है। अपवादरूप में छह मास से भी किया जा सकता है। निग्गंथीण वा परं पज्जोसवणाओ गोलोमप्पमाणमित्ते वि केसे तं रयणिं उवाइणावित्तए..."छम्मासिए लोए संवच्छरिए पात्र-भाजन। धातु, मिट्टी आदि से निर्मित पात्र। द्र उपधि वा थेरकप्पे। (दशा ८ परि सू २८१) पात्रैषणा- मुनि द्वारा ग्राह्य पात्र की गवेषणा। द्र उपधि __ वर्षावास में स्थित साधु और साध्वियां पर्युषणा के पश्चात् पानैषणा-पेय द्रव्य-कांजी आदि की एषणा। द्र पिण्डैषणा उस रात्रि का अतिक्रमण कर गोरोम-प्रमाणमात्र भी केश नहीं रख * पानक के विविध प्रकार द्र पर्युषणाकल्प सकतीं। स्थविरकल्प में षाण्मासिक या सांवत्सरिक लोच होता है। ० जिनकल्पी आदि और लोच पारांचित-दसवां प्रायश्चित्त, अवहेलनापूर्वक पुनः व्रतारोपण। धवलोओ य जिणाणं, णिच्चं थेराण वासवासास। १. पारांचित के निर्वचन असहू गिलाणस्स व, तं रयणिं तू णऽतिक्कामे॥ | २. पारांचित के प्रकार और चारित्र की भजना (निभा ३१७३) ३. आशातना पारांचित के स्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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