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________________ परिषद् ३२८ आगम विषय कोश-२ नीहम्मियम्मि पूरति, रणो परिसा न जा घरमंतीति। लोइय-वेइय-सामाइएसु सत्थेसु जे समोगाढा। जे पुण छत्तविदिन्ना, अयंति ते बाहिरं सालं॥ ससमय-परसमयविसारया य कुसला य बुद्धिमती॥ जे लोग-वेय-समएहिं कोविया तेहिँ पत्थिवो सहिओ। आसन्नपतीभत्तं, खेयपरिस्समजतो तहा सत्थे। समयमतीतो परिच्छइ, परप्पवायागमे चेव॥ कहमुत्तरं च दाहिसि, अमुगो किर आगतो वादी॥ जे रायसत्थकुसला, अतक्कुलीया हिता परिणया य। पुव्वं पच्छा जेहिं, सिंगणादितविही समणुभूतो। माइकुलीया वसिया, मंतेति निवो रहे तेहिं॥ लोए वेदे समए, कयागमा मंतिपरिसा उ॥ कुविया तोसेयव्वा, रयस्सला, वारअण्णमासत्ता। गिहवासे अस्थसत्थेहिँ कोविया केइ समणभावम्मि। छण्ण पगासे य रहे, मंतयते रोहिणिज्जेहिं॥ कज्जेसु सिंगभूयं, तु सिंगनादिं भवे कज्जं॥ याऽपि कन्या यौवनप्राप्ता तामपि राज्ञः कथयन्ति। ....भत्तोवहिवोच्छेदे, अभिवायण-बंध-घायादी॥ (बृभा ३७९-३८३ ७) वितहं ववहरमाणं, सत्थेण वियाणतो निहोडेइ । लौकिक परिषद् के पांच प्रकार हैं अम्हं सपक्खदंडो, न चेरिसो दिक्खिए दंडो॥ १. पूरयन्तिका परिषद्-महाजनों की परिषद् । राजा प्रस्थान करता सल्लुद्धरणे समणस्स चाउकण्णा रहस्सिया परिसा। है और जब तक घर नहीं लौटता, तब तक जो महान् जन राजा अज्जाणं चउकण्णा, छक्कण्णा अट्ठकण्णा वा ।। का अनुगमन करते हैं, वह परिषद्। (बृभा ३८४-३९१) २. छत्रान्तिका परिषद्-छत्रप्राप्त श्रेष्ठ पुरुषों की परिषद् । राजा ने ___लोकोत्तर परिषद् के पांच प्रकार हैंजिन्हें छत्र प्रदान किया है, वे राजा तथा योद्धा और भोजिक (ग्राम १. पूरयन्तिका परिषद्-आवश्यक सूत्र से सूत्रकृतांग पर्यंत आगमों का मुखिया) बाह्य शाला में साथ-साथ आते हैं, शेष को रोक दिया। का अध्ययन करने वाली परिषद्। जाता है, वह परिषद्। २. छत्रान्तिका परिषद्-दशा श्रुतस्कंध आदि उपरितन आगमों का ३. बद्धि परिषद-जो लौकिक, वैदिक और आगमिक शास्त्रों में अध्ययन करने वाली परिषद। पारिणामिक शिष्य ही इसमें प्रवेश अध्ययन करने वाली शिट पनि शिय टी निपुण हैं, अवसर आने पर राजा उनको साथ लेकर पर-प्रवादियों पा सकते हैं। के आगमों की परीक्षा करता है, वह बुद्धि परिषद् है। ३. बुद्धिमती परिषद्-जिन्होंने लौकिक, वैदिक और सामयिक ४. मंत्री परिषद्-जो राजनीति शास्त्र (कौटिल्य आदि) में कुशल (आगमिक) शास्त्रों का गहराई से अवगाहन किया है, जो स्वसमय हैं. जो राजा के पितकुल-संबंध सं संबद्ध हैं, जो राज्य के हितचिन्तक और परसमय में विशारद हैं. कशल हैं. वह परिषद। हैं, वय से परिणत हैं, मातृकुलीन (राजा के मातृकुल से संबंधित) बुद्धि परिषद् के साथ निरंतर श्रम करने से आसन्नप्रतिभत्व हैं, राजा के अधीन हैं तथा जिनके साथ राजा एकान्त में मंत्रणा (तत्काल उत्तर देने का सामर्थ्य) उत्पन्न होता है। शास्त्रों के करता है, वह मंत्री परिषद् है। अभ्यास में जो कष्ट और श्रम होता है, उससे विजय होती है। ५. रोहिणीया (राहस्यिकी) परिषद्-जो कुपित रानी को संतुष्ट बुद्धि परिषद् यह सिखाती है-अमुक वादी आ गया तो तुम वाद करने के लिए राजा के द्वारा भेजी जाती है, जो ऋतुस्नात रानी के करते समय उसको उत्तर कैसे दोगे? क्रम के विषय में निवेदन करती है, राजकन्या विवाह योग्य है ४. मंत्री परिषद्-जिसने गृहवास और श्रमणभाव में श्रृंगनादित इसकी सूचना देती है, अमुक रानी अन्य व्यक्ति में आसक्त है विधियों का अनुभव किया है, जो लौकिक, वैदिक और सामयिक इसकी सूचना देती है, जो गुप्त और प्रकट रतिकार्यों के विषय में शास्त्रों का ज्ञाता है, गहवास में जो अर्थशास्त्र में कोविद था तथा राजा के साथ मंत्रणा करती है, वह रोहिणीया परिषद है।। श्रमणभाव में जो स्वसमय और परसमय में कोविद है, वह परिषद् । ४. लोकोत्तर परिषद् के प्रकार सब कार्यों में जो शृंगभूत (प्रधान) कार्य होता है, उसे आवासगमादी या, सुत्तकड पुरंतिया भवे परिसा। शृंगनादित कार्य कहा जाता है। जैसेदसमादि उवरिमसुया, हवति उ छत्तंतिया परिसा॥ ० मुनियों के आहार और उपधि का व्यवच्छेद होता हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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