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________________ तीर्थंकर २९० आगम विषय कोश-२ वर्षावास-क्षेत्र चातुर्मास-संख्या अपापा नगरी में हस्तिपाल राजा की रज्जुकसभा में किया। अस्थिकग्राम (प्रथम वर्षावास) कार्तिक कृष्णा अमावस्या की रात्रि के समय श्रमण भगवान चम्पा और पृष्ठचम्पा महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए। उस समय चन्द्र नाम का दूसरा वैशाली और वाणिज्यग्राम संवत्सर, प्रीतिवर्द्धन मास, नन्दिवर्धन पक्ष, अग्निवेश दिनराजगृह नगर और नालंदा जिसे उपशम कहा जाता है, देवानंदा रात्रि-जिसे निर्ऋति भी मिथिला कहा जाता है, अर्चि लव, मुहूर्त प्राण, स्तोक सिद्ध, नाग भद्रिका करण, सर्वार्थसिद्ध मुहूर्त और स्वाति नक्षत्र के साथ चन्द्र का आलभिका योग था। श्रावस्ती श्रमण भगवान महावीर तीस वर्ष गृहवास में, बारह वज्रभूमि (अनार्य देश) वर्ष से भी अधिक समय छद्मस्थ श्रमण पर्याय में, तीस वर्ष से मध्यम पावा (अंतिम वर्षावास) कुछ कम केवलि-पर्याय में रहे, कुल बयालीस वर्ष तक २३. महावीर का निर्वाण, सर्वआयु, अंतिम देशना । श्रमण-पर्याय का पालनकर, बहत्तर वर्ष की आयु पूर्णकर, __ तत्थ णं जेसे पावाए मज्झिमाए हत्थिपालगस्स रण्णो ___ वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र कर्म क्षीण होने पर इस रज्जुगसभाए अपच्छिमं अंतरावासं वासावासं उवागए।" अवसर्पिणीकाल का दुःषम-सुषमा नामक चतुर्थ आरा प्रायः कत्तियबहुलस्स पन्नरसी-पक्खेणं जासा चरमा रयणी तं व्यतीत होने पर तथा उस चतुर्थ आरे के तीन वर्ष और साढ़े आठ रयणिंच णं समणे भगवं महावीरे कालगए"चंदे नाम से महीने शेष रहने पर, एकाकी, अद्वितीय, षष्ठ तप (दो दिन के दोच्चे संवच्छरे, पीतिवद्धणे मासे नंदिवद्धणे पक्खे उपवास) में, प्रत्यूषकाल के समय पर्यंकासन में बैठे हुए, अग्गिवेसे नाम से दिवसे उवसमेत्ति पवुच्चइ, देवाणंदा नामं कल्याण-फलविपाक के पचपन अध्ययन और पाप-फल विपाक सा रयणी निरतित्ति पवुच्चइ, अच्चे लवे, मुहुत्ते पाणू, के पचपन अध्ययन तथा छत्तीस अपृष्ट व्याकरणों को कहकर, थोवे सिद्धे, नागे करणे, सव्वट्ठसिद्धे मुहुत्ते, साइणा प्रधान अध्ययन का निरूपण करते-करते सिद्ध, बुद्ध और नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं॥ मुक्त हुए। "तीसं वासाई अगारवासमझे वसित्ता, साइरेगाइं २४. निर्वाण-रात्रि में घटित घटना प्रसंग दुवालस वासाइं छउमत्थपरियागं", देसूणाई तीसं वासाइं जंरयणिं च णं समणे भगवं महावीरे कालगए". केवलिपरियागं", बायालीसं वासाइं सामण्णपरियायं __ तं रयणिं च णं जेठुस्स गोयमस्स इंदभूइस्स अणगारस्स पाउणित्ता, बावत्तरिं वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता, खीणे अंतेवासिस्स नायए पेज्जबंधणे वोच्छिन्ने अणंते...... वेयणिज्जाउयनामगोत्ते इमीसे ओसप्पिणीए दुसमसुसमाए केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने॥ समाए बहुवीइक्कंताए तिहिं वासेहिं अद्धनवमेहिं य "तं रयणिं च णं नव मल्लई नव लिच्छई कासीमासेहिं सेसेहिंएगे अबीए छटेणं भत्तेणं अपाणएणं । कोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो अमावसाए पाराभोयं पच्चूसकालसमयंसि संपलियंकनिसन्ने पणपन्नं अज्झ- पोसहोववासं पट्ठविंसु गते से भावुज्जोए दव्वुज्जोयं करियणाई कल्लाणफलविवागाइं, पणपन्नं अज्झयणाइं स्सामो॥ पावफलविवागाई, छत्तीसं च अपट्टवागरणाइं वागरित्ता "तं रयणिं च णं खुद्दाए भासरासी महग्गहे पधाणं नाम अज्झयणं विभावेमाणे विभावेमाणे "सिद्धे दोवाससहस्सट्ठिई समणस्स भगवओ महावीरस्स जम्मनबुद्धे मुत्ते"। (दशा ८ परि सू८४, १०६) क्खत्तं संकंते॥"तप्पभियं च णं समणाणं निग्गंथाणं श्रमण भगवान महावीर ने अंतिम वर्षावास मध्यम निग्गंथीण य नो उदिए-उदिए पूयासक्कारे पवत्तति॥" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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