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________________ आगम विषय कोश-२ २६७ जीवनिकाय हवंति जस्स मूलस्स कट्ठातो छल्ली बहलतरी भवे। (जिस भज्यमान मूल यावत् बीज के विषम भंग होते सा छल्ली. जा याऽवऽन्ना तहाविहा॥ हैं, वह प्रत्येकजीवी मल यावत प्रत्येकजीवी बीज है। जिसकी "यथा शतावर्याः, अनन्तजीवा तु सा छल्ली। छाल मूल, कंद, स्कंध और शाखा के काष्ठ से पतली होती है, काष्ठमपि तस्यानन्तजीवं द्रष्टव्यम्। वह प्रत्येकजीवी छाल है।-प्रज्ञा १/४८/२०-२९, ३४-३७) (बृभा ९६७-९६९, ९७१ वृ) ११. वृक्ष के प्रकार जो क्षीरयुक्त या क्षीररहित पत्ता गूढ-अनुपलक्षित संखेज्जजीविता खलु, असंखजीवा अणंतजीवा य। शिराओं वाला होता है, जिसके पत्रार्धद्वय का संधिभाग तिविहा रुक्खा .......॥ सर्वथा अनुपलक्ष्यमाण होता है, उसे अनंतकायिक पत्ता जानो। (निभा ४०३९) जिसको तोड़ने पर चक्राकार भंग-सम टुकड़े होते हैं, वृक्ष के तीन प्रकार हैंजिसके पर्वस्थान में चूर्णघन होता है, भेदन के समय ग्रंथिभाग संख्येय जीव-ताड़, तमाल, पूगफल, खजूर, नालिकेर आदि। में सघन चूर्ण उड़ता हुआ दिखाई देता है अथवा पृथ्वी असंख्येय जीव-आम्र आदि। (केदार आदि की उपरिवर्ती शुष्क पपड़ी या श्लक्ष्ण खटिका) अनंत जीव-थूहर, शृंगबेर आदि। (वृक्ष केये तीन प्रकार अनेक के भेदन के समान जिसका सम भेद होता है. उसे अनंतकायिक नामों के साथ भ ८/२१६-२२१ में प्रतिपादित हैं।) वनस्पति जानो। ""एगट्ठिय ............ बहुबीए॥..... जिस भज्यमान मूल का सम भंग होता है, वह अनंतकायिक मूल है। इसी प्रकार स्कंध आदि भी सम खंडों में "एगट्ठि त्ति एगबीयं जहा अंबगो। विभक्त होते हैं। जिस मूल के काष्ठ से त्वचा मोटी होती है, (निभा २५६ चू) वह अनंतकायिक त्वचा है। जैसे-शतावरी की छाल, वैसी अन्य असंख्येयजीविक वृक्ष के दो प्रकार हैंछाल भी अनंतकायिक है। उसका काष्ठ भी अनंतजीव हैं। १. एकास्थिक-एक बीज वाले फलों के वक्ष। जैसे-आम्र, (मूल से बीजपर्यंत वनस्पति के दस प्रकार हैं। मूल नीम, बकुल, पलाश, धातकी, श्रीपर्णी, अशोक आदि। आदि का भेदन करने पर जिनके सम भंग होते हैं, वे अनंतजीवी २. बहुबीजक-कपित्थ, आम्रातक, न्यग्रोध, नन्दिवृक्ष आदि। मूल यावत् अनंतजीवी बीज हैं। जिसकी छाल मूल, कंद, (आम्र, कपित्थ आदि वृक्षों के मूल, कंद, स्कंध, स्कंध और शाखा के काष्ठ से मोटी होती है, वह अनंतजीवी त्वचा, शाखा और प्रवाल असंख्येयजीविक, पत्ते प्रत्येकजीविक छाल है। -प्रज्ञा १/४८/१०-१९, ३०-३३) तथा पुष्प अनेकजीविक होते हैं। प्रज्ञा १/३४-३६) • प्रत्येक वनस्पति के लक्षण ० वृक्ष के दस अंग जस्स मूलस्स भग्गस्स, हीरो भंगे पदिस्सए। मूले कंदे खंधे, तया य साले पवाल पत्ते य। परित्तजीवे उ से मूले, जे याऽवऽन्ने तहाविहे॥ पुण्फे फले य बीए....."दस भेया॥ जस्स मूलस्स कट्ठातो, छल्ली तणुयतरी भवे। (बृभा ८५४ की वृ) परित्तजीवा तु सा छल्ली, याऽवष्ण्णा तहाविहा॥ ___वृक्ष के दस अंग हैं-१. मूल २. कंद ३. स्कंध ४. (बृभा ९७०, ९७२) त्वचा ५. शाखा ६. प्रवाल ७. पत्र ८. पुष्प ९. फल १०. बीज। जिस वनस्पति के मूल, स्कंध आदि के विषम भंग (वनस्पतिकायिक जीव प्रावृट् और वर्षाऋतु में सबसे होते हैं, वह प्रत्येक वनस्पति है। जिस मूल के काष्ठ से अधिक आहार करते हैं, ग्रीष्म ऋतु में सबसे अल्प आहार त्वचा पतली होती है, वह प्रत्येक वनस्पति की त्वचा है; करते हैं। मूल मूल के जीव से स्पृष्ट और पृथ्वी के जीव से यथा सहकार आदि की छाल। प्रतिबद्ध होता है, इसलिए वह भूमि से अपना आहार खींच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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