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________________ आगम विषय कोश-२ १८३ काल अधिक मास युग के अंत में या मध्य में होता है। यदि इसमें तीन चन्द्रसंवत्सर और दो अभिवर्धित संवत्सर होते हैं। अंत में होता है तो नियमत: दो आषाढ़ और मध्य में होता है तो चन्द्रसंवत्सर में (२९३३x १२) ३५४ १२ दिन होते हैं और दो पौष होते हैं। अभिवर्धित संवत्सर में (३११२१४ १२) ३८३४ दिन होते हैं। (संवत्सर पांच प्रकार का होता है ३. प्रमाण (दिवस आदि के परिमाण से उपलक्षित) संवत्सर १. नक्षत्रसंवत्सर ४. लक्षणसंवत्सर के ऋतुसंवत्सर में ३६० दिन होते हैं। कर्मसंवत्सर और २. युगसंवत्सर ५. शनिश्चरसंवत्सर सावनसंवत्सर इसके पर्यायवाची हैं। आदित्यसंवत्सर में ३. प्रमाणसंवत्सर ३६६ दिन-रात होते हैं, क्योंकि इसके प्रत्येक मास में साढ़े युगसंवत्सर पांच प्रकार का होता है-१. चन्द्र २. चन्द्र ३. तीस अहोरात्र होते हैं। अभिवर्धित ४. चन्द्र ५. अभिवर्धित। ४. लक्षणसंवत्सर-लक्षणों से जाना जाने वाला संवत्सर। प्रमाणसंवत्सर पांच प्रकार का होता है-१. नक्षत्र २. चन्द्र ५. शनिश्चरसंवत्सर-जितने समय में शनिश्चर एक नक्षत्र ३. ऋतु ४. आदित्य ५. अभिवर्धित। अथवा बारह राशियों का भोग करता है, उतने काल परिमाण लक्षणसंवत्सर के प्रकार और स्वरूप को शनिश्चरसंवत्सर कहा जाता है।-स्था ५/२१०-२१३ वृ १. नक्षत्र संवत्सर-जिस संवत्सर में नक्षत्र समतया-अपनी नक्षत्रों के आधार पर शनिश्चरसंवत्सर के अठाईस प्रकार तिथि का अतिवर्तन न करते हुए तिथियों के साथ योग करते हैं-अभिजित्, श्रवण यावत् उत्तराषाढा। यह महाग्रह हैं, ऋतुएं समतया-अपनी काल-मर्यादा के अनुसार परिणत शनिश्चरसंवत्सर तीस संवत्सरों में सम्पूर्ण नक्षत्रमंडल का होती हैं, न अति गर्मी होती है और न अति सर्दी तथा जिसमें परिभोग करता है। सूर्य १०/१३० पानी अधिक गिरता है, उसे नक्षत्रसंवत्सर कहते हैं। युगसंवत्सर-प्रत्येक चन्द्र संवत्सर में बारह चन्द्रमास और २. चन्द्र संवत्सर-जिस संवत्सर में चन्द्रमा सभी पूर्णिमाओं प्रत्येक अभिवर्धित संवत्सर में तेरह चन्द्रमास होते हैं। इस का स्पर्श करता है, अन्य नक्षत्र विषमचारी-अपनी तिथियों प्रकार तीन चन्द्रसंवत्सरों में छत्तीस पूर्णिमाएं और छत्तीस का अतिवर्तन करने वाले होते हैं, जो कटुक-अतिगर्मी और अमावस्याएं तथा दो अभिवर्धित संवत्सरों में छब्बीस पूर्णिमाएं अतिसर्दी के कारण भयंकर होता है तथा जिसमें पानी अधिक और छब्बीस अमावस्याएं होती हैं। कुल बासठ पूर्णिमाएं और गिरता है, उसे चन्द्रसंवत्सर कहते हैं। बासठ अमावस्याएं होती हैं।- सम ६२/१) ३. कर्म (ऋतु) संवत्सर-जिस संवत्सर में वृक्ष असमय में ५. अप्रशस्त नक्षत्र : संध्यागत आदि अंकुरित हो जाते हैं, असमय में फूल तथा फल आ जाते हैं, संझागतं रविगतं, विड्डेरं सग्गहं विलंबिं च। वर्षा उचित मात्रा में नहीं होती, उसे कर्मसंवत्सर कहते हैं। राहुहतं गहभिण्णं, च वज्जए सत्त णक्खत्ते॥ ४. आदित्य संवत्सर-इस संवत्सर में वर्षा अल्प होने पर भी संझागतम्मि कलहो, होति कुभत्तं विलंबिणक्खत्ते। सूर्य पृथ्वी, जल तथा फूलों और फलों को मधुर और स्निग्ध विड्डेरे परविजयो, आइच्चगते अणेव्वाणी॥ रस प्रदान करता है तथा फसल अच्छी होती है। जं सग्गहम्मि कीरइ, णक्खत्ते तत्थ वुग्गहो होति। ५. अभिवर्धित संवत्सर-इस संवत्सर में सूर्य के ताप से क्षण, राहुहतम्मि य मरणं, गहभिण्णे सोणिउग्गालो॥ लव, दिवस और ऋतु तप्त जैसे हो उठते हैं तथा आंधियों से जम्मि उदिते सूरो उदेति तं संझागतं । जत्थ सूरो ठितो स्थल भर जाता है। तं रविगतं । जं सूरस्स पिट्ठतो अणंतरं तं विलंबी। संवत्सरों का कालमान __ अण्णे भणंति-जं सूरस्स पिट्ठतो अग्गतो वा अणंतरं १. नक्षत्रसंवत्सर में (२७६ x १२)३२७ १८ दिन होते हैं। तं संझागयं। जं पुण पिट्टतो सूरगतातो ततितं विलंबी।जं २. युगसंवत्सर-पांच संवत्सरों का एक युगसंवत्सर होता है। जत्थ गमणकम्मसमारंभादिसु अण-भिहियं तं विड्डेरं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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