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________________ काल १८२ आगम विषय कोश एक अहारोत्र के कालमान से , भाग कम तिथि का भोगश्चैकविंशतिः सप्तषष्टा भागा इति तैरभ्यधिकानि कालमान है, अर्थात् अहोरात्र में एक तिथि पूरी होती है। सप्तविंशतिरहोरात्राणि सकलनक्षत्रमण्डलोपभोगकालो इस प्रकार ६१ अहोरात्र में ६२ तिथियां होती हैं। प्रत्येक नक्षत्रमास उच्यते। (बृभा ११२८ की वृ) अहोरात्र में अगली तिथि का भाग प्रवेश करता है। अतः छह नक्षत्र चन्द्रमा के साथ पन्द्रह मुहूर्त तक योग करते ६१ वें अहोरात्र में ६२ वीं तिथि समा जाती है। हैं-भरणि, आर्द्रा, अश्लेषा, स्वाति, ज्येष्ठा, शतभिषक् । अहोरात्र की उत्पत्ति सूर्य से और तिथि की उत्पत्ति छह नक्षत्र पैंतालीस मुहूर्त तक चन्द्रमा के साथ योग चन्द्रमा से होती है। उ २६/१५ का टि। करते हैं-उत्तराषाढा, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराभाद्रपदा, पुनर्वसु, ० चन्द्रमण्डल और कृष्ण-शुक्ल पक्ष-ध्रुवराहु (सदा चन्द्र रोहिणी, विशाखा। शेष पन्द्रह नक्षत्र तीस मुहूर्त तक चन्द्रमा के के पास ही संचरण करने वाला राह) कृष्णपक्ष की प्रतिपदा साथ योग करते हैं। से प्रतिदिन चन्द्रलेश्या का पन्द्रहवां भाग आवृत करता है, सत्ताईस नक्षत्र कुल मिलाकर आठ सौ दस मुहूर्त तक जैसे-प्रतिपदा के दिन पहला पन्द्रहवां भाग. द्वितीया के दिन चन्द्रमा के साथ योग करते हैं। तीस मुहूर्त का एक अहोरात्र दसरा पन्द्रहवां भाग यावत अमावस्या के दिन पन्द्रहवां भाग- होता है। अतः आठ सौ दस में तीस का भाग देने पर सम्पूर्ण चन्द्रमंडल। वही ध्रुवराहु शुक्लपक्ष में प्रतिदिन एक- (८१०३०२७) सत्ताईस अहोरात्र होते हैं। एक पन्द्रहवें भाग को उद्घाटित करता है। चन्द्र-लेश्या के अभिजित्नक्षत्रभोग के १ भाग मिलाने पर सर्वसोलह भाग होते हैं। एक भाग सदा उद्घाटित रहता है और नक्षत्रमण्डल का उपभोग काल २७३२ होता है, यही नक्षत्रशेष पन्द्रह भाग कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक मास है। प्रतिदिन एक-एक भाग के अनुपात से आवृत होते जाते हैं। * नक्षत्र और उनके अधिष्ठाता देव द्र श्रीआको १ नक्षत्र इसी प्रकार शुक्लपक्ष में प्रतिपदा से पूर्णिमा तक, एक-एक (जम्बूद्वीप में अभिजित् नक्षत्र को छोड़कर शेष सत्ताईस भाग के अनुपात से उद्घाटित होते रहते हैं। नक्षत्रों से व्यवहार चलता है। उत्तराषाढा नक्षत्र के चौथे पाये में पूर्ण चन्द्रमंडल के ९३१ भाग होते हैं। इनमें एक अभिजित् नक्षत्र का समावेश होने से इसे अलग नहीं गिना गया भाग अवस्थित रहता है, शेष बढ़ते-घटते हैं। शुक्लपक्ष है।-सम २७/२ वृ .. का चन्द्र प्रतिदिन बासठ भाग बढ़ता है और पूर्णिमा के दिन अभिजित् ९ मुहूर्त तक चन्द्र के साथ योग करता चन्द्रमंडल पूर्णरूप से प्रकाशित हो जाता है। इसी प्रकार है। प्रत्येक नक्षत्र एक अहारोत्र में अमुक-अमुक क्षेत्र का कृष्णपक्ष का चन्द्र प्रतिदिन बासठ भाग घटता हैऔर अमावस्या अवगाहन करता है। अभिजित् नक्षत्र द्वारा एक अहारोत्र में के दिन वह मंडल पूर्णरूप से आच्छादित हो जाता है। अवगाढक्षेत्र के यदि सड़सठ भाग किए जाएं तो नक्षत्र इक्कीस -सम १५/३; ६२/३) भाग तक चन्द्र के साथ योग करता है अर्थात् क्षेत्र की दृष्टि से अभिजित् नक्षत्र का सीमा विष्कम्भ है।-सम ६७/४ वृ) ३. नक्षत्रमास : नक्षत्रों का चन्द्र के साथ योग चन्द्रस्य भरण्याा -ऽश्लेषा-स्वाति-ज्येष्ठा-शत- ४. अभिवर्धितवर्ष और चन्द्रवर्ष भिषग्नामानि षड् नक्षत्राणि पञ्चदशमुहूर्तभोगीनि, जत्थ अधिकमासो पडति वरिसे तं अभिवड्डयवरिसं तिन उत्तराः पुनर्वसू रोहिणी विशाखा चेति षट् पञ्च भण्णति। जत्थ ण पडति तं चंदवरिसं।सो य अधिगमासो चत्वारिंशन्मुहर्त्तभोगीनि, शेषाणित पञ्चदश नक्षत्राणि जुगस्स अंतेमझे वा भवति।जति अंते तोणियमा दोआषाढा त्रिंशन्मुहूर्तानीतिजातानि सर्वसंख्यया मुहर्तानामष्टशतानि भवंति। अह मझे तो दो पोसा। (निभा ३१५२ की चू) दशोत्तराणि, एतेषां च त्रिंशन्मुहूर्तेरहोरात्रमिति कृत्वा त्रिंशता जिसमें अधिक मास होता है, वह अभिवर्धित वर्ष और भागो ह्रियते लब्धानि सप्तविंशतिरहोरात्राणि, अभिजिद्- जिसमें अधिक मास नहीं होता, वह चन्द्रवर्ष कहलाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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