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________________ आगम विषय कोश-२ १७७ कायक्लेश कर्मनिर्जरा कर सकती है। मध्यम के वैकल्पिक प्रकार इस प्रकार हैंसाधुओं के लिए भी गांव के बाहरी प्रदेश में आतापना . मध्यम-उत्कृष्ट-गोदोहिका में ली जाने वाली आतापना। लेना, विशिष्ट अभिग्रह स्वीकार करना आदि यथासम्भव ० मध्यम-मध्यम-उकडू आसन में ली जाने वाली आतापना। विकल्पनीय हैं ० मध्यम-जघन्य-पर्यंकासन में ली जाने वाली आतापना। सिंह आदि से अभिभव, देवआकम्पन आदि कारणों से जघन्य आतापना के तीन प्रकार हैंगीतार्थ या अगीतार्थ तीव्र अभिग्रह कर सकते हैं। अगीतार्थ १. जघन्य-उत्कृष्ट-हस्तिशुण्डिका में ली जाने वाली आतापना। निष्कारण अभिग्रह नहीं कर सकते। गीतार्थ कर्मनिर्जरा के लिए २. जघन्य-मध्यम-एकपादिका में ली जाने वाली आतापना। निष्कारण भी अभिग्रह कर सकते हैं। अचेलता आदि भी ३. जघन्य-जघन्य-समपादिका में ली जाने वाली आतापना। जिनकल्प स्वीकार करने वाले गीतार्थ के लिए विहित है। ४. लेटकर ली जाने वाली आतापना उत्कृष्ट ३. आतापना के नौ प्रकार सव्वंगिओ पतावो, पताविया घम्मरस्सिणा भूमी। आयावणा य तिविहा, उक्कोसा मज्झिमा जहण्णा य। ण य कमइ तत्थ वाओ, विस्सामो णेव गत्ताणं॥ उक्कोसा उणिवण्णा, णिसण्ण मज्झा ठिय जहण्णा॥ (बृभा ५९४९) तिविहा होइ निवण्णा, ओमत्थिय पास तइयमुत्ताणा। भूमि पर लेटकर ली जाने वाली आतापना से शरीर के उक्कोसक्कोसा उक्कोसमज्झिमा उक्कासगजहण्णा॥ सारे अंग प्रकष्टरूप से तप्त हो जाते हैं। भूमि सर्य की मज्झक्कोसा दुहओ, वि मज्झिमा मज्झिमाजहण्णा या रश्मियों से अत्यंत तापित होती है, उस पर वाय का संचरण. अहमुक्कोसाऽहममज्झिमा य अहमाहमा चरिमा॥ नहीं होता, तब शरीर के किसी भी अवयव को ताप से पलियंक अद्ध उक्कुडुग, मो यतिविहा उमज्झिमा होइ। विश्राम नहीं मिलता। तइया उ हत्थिसुंडेगपाद, समपादिगा चेव ॥ (भगवान् महावीर ग्रीष्म ऋतु में सूर्य का आतप लेते थे। __ क्वचिदादर्श'मध्यमोत्कृष्टा गोदोहिका, मध्यम'मध्यमा उत्कटिका, मध्यमजघन्या पर्यंकासनरूपा। ऊकडू आसन में वायु के अभिमुख होकर बैठते थे। (बृभा ५९४५-५९४८ वृ) -आ ९/४/४ आतापना के तीन प्रकार हैं आचार्य भिक्षु निर्जल उपवास करते, सहयोगी संतों के साथ धर्मोपकरण साथ में लेकर प्रातः गांव के बाहर चले ० उत्कृष्ट-गर्म शिला आदि पर लेट कर ताप सहना। ० मध्यम-बैठकर आतापना लेना। जाते। वे सरिताचर में अत्युष्ण रेतीली धरती पर लेट जाते, ० जघन्य-खड़े-खड़े आतापना लेना। आतापना के साथ ध्यान-स्वाध्याय भी करते। पारणे के दिन इनमें से प्रत्येक के तीन-तीन प्रकार होने से आतापना गांव से यथाप्राप्त आहार-पानी लेकर जंगल में जाते, वृक्ष की के कुल नौ प्रकार हैं। छाया में आहार-पानी रखकर आतापना लेते, फिर आहार उत्कृष्ट आतापना के तीन प्रकार हैं करते, सायंकाल गांव में लौट आते। लगभग दो वर्ष तक यह १. उत्कृष्ट-उत्कृष्ट-छाती के बल लेट कर ताप सहना। क्रम चला।-शासन समुद्र भाग १ पृ १०३ । २. उत्कृष्ट-मध्यम-एक पार्श्व में सोकर ताप सहना। घोरतपस्वी मुनिश्री सुखलालजी ग्रीष्म ऋतु में लगभग ३. उत्कृष्ट-जघन्य-उत्तानशयन-पीठ के बल लेट कर सात माह (चैत्र से आश्विन) तक मध्याह्न में राजस्थान की ताप सहना। कड़ी धूप में आतापना लेते-एक कछोटा लगाकर आंखों पर मध्यम आतापना के तीन प्रकार हैं पट्टी बांधकर दो-दो घंटे तक (कभी-कभी पांच घंटे भी) १. मध्यम-उत्कृष्ट-पर्यंकासन में बैठकर ताप सहना। शिलापट्ट पर लेटे रहते। उत्कृष्ट गर्मी के कारण शिलापट्ट पसीने २. मध्यम-मध्यम-अर्धपर्यंकासन में बैठकर ताप सहना। से ठंडा हो जाता तो वे बीच-बीच में पार्श्ववर्ती दूसरे पत्थर पर ३. मध्यम-जघन्य-उकडू आसन में बैठकर ताप सहना। लेट जाते। लेटे-लेटे स्वाध्याय में लीन हो जाते। प्रतिवर्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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