SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कल्पस्थिति १६८ आगम विषय कोश-२ ०कल्पस्थिति का समवतरण २. औद्देशिक-एक साधु के उद्देश्य से कृत आधाकर्मिक तइय-चउत्था कप्पा, समोयरंति तु बियम्मि कप्पम्मि। भोजन आदि दूसरे साधुओं के लिए कल्पनीय हो जाता है। पंचम-छट्ठठितीसुं, हेट्ठिल्लाणं समोयारो॥ केवल उसके लिए कल्पनीय नहीं होता, जिसके उद्देश्य से (बृभा ६४८१) वह बनाया गया है। निर्विशमान और निर्विष्टकायिक कल्प का छेदो- ३. प्रतिक्रमण- वे अतिचार लगने पर प्रतिक्रमण करते हैं पस्थापनीय कल्प में समवतार होता है। प्रथम चारों कल्पों अन्यथा नहीं करते। का जिनकल्प और स्थविरकल्प दोनों में समवतार होता है। ४. राजपिण्ड-दोष की संभावना होने पर राजपिण्ड का ३. सामायिक संयत : स्थित-अस्थितकल्प परिहार करते हैं, अन्यथा ग्रहण भी करते हैं। सिज्जायरपिंडे या, चाउज्जामे य पुरिसजेटे य। ५. मासकल्प-दोष की संभावना न होने पर वे एक क्षेत्र में कितिकम्मस्स य करणे, चत्तारि अवद्रिया कप्पा॥ पूर्वकोटि वर्ष तक रह सकते हैं। दोष की संभावना होने पर आचेलक्कुद्देसिय, सपडिक्कमणे य रायपिंडे य। मासकल्प पूर्ण होने या न होने पर भी विहार कर सकते हैं। मासं पज्जोसवणा, छऽप्पेतऽणवद्रिता कप्पा॥ ६. पर्युषणाकल्प-वर्षाकालीन विहरण में दोषों की संभावना आचेलक्यम्... षडप्येते कल्पा मध्यमसाधनां होने पर एक क्षेत्र में रहते हैं और दोषों की संभावना न होने पर विदेहसाधूनां चानवस्थिताः। तथाहि-यदि तेषां वस्त्र वर्षारात्र में भी विहार करते हैं। प्रत्ययो रागो द्वेषो वा उत्पद्यते तदा अचेलाः, अथ न ४. कल्पस्थित-अकल्पस्थित कौन? रागोत्पत्तिस्ततः सचेलाः, महामूल्यं प्रमाणातिरिक्तमपिच जे कडे कप्पट्ठियाणं कप्पड़ से अकप्पट्ठियाणं, नो वस्त्रं गृह्णन्तीति भावः । औद्देशिकं नाम साधनद्दिश्य कृतं से कप्पइ कप्पट्ठियाणं।जे कडे अकप्पट्ठियाणं नो से कप्पड़ भक्तादिकम् आधाकर्मेत्यर्थः, तदप्यन्यस्य साधोराय कृतं कप्पट्ठियाणं कप्पइ से अकप्पट्ठियाणं। कप्पे ठिया तेषां कल्पते, तदर्थं तु कृतं न कल्पते। प्रतिक्रमण-मपि कप्पट्ठिया, अकप्पे ठिया अकप्पट्ठिया॥ (क ४/१५) यदि अतिचारो भवति ततः कुर्वन्ति अतिचाराभावे न जो वस्तु कल्पस्थित के लिए कृत है, वह अकल्पस्थित कुर्वन्ति। राजपिण्डे यदि वक्ष्यमाणा दोषा भवन्ति ततः के लिए कल्पनीय (ग्राह्य) है, कल्पस्थित के लिए नहीं। परिहरन्ति अन्यथा गृह्णन्ति। मासकल्पे यदि एकक्षेत्रे जो अकल्पस्थित के लिए कृत है, वह कल्पस्थित के तिष्ठतां दोषा न भवन्ति ततः पूर्वकोटीमप्यासते, अथ दोषा लिए कल्पनीय नहीं है, अकल्पस्थित के लिए कल्पनीय है। भवन्ति ततो मासे पूर्णेऽपूर्णे वा निर्गच्छन्ति। पर्युषणायामपि जो अचेल, राजपिण्ड आदि कल्पों में स्थित है, वह यदि वर्षास विहरतां दोषा भवन्ति तत्र एकत्र क्षेत्रे आसते, कल्पस्थित है। जो अकल्प में स्थित है, वह अकल्पस्थित है। अथ दोषा न भवन्ति ततो वर्षारानेऽपि विहरन्ति। कप्पट्ठियाणं पणगं, अकप्प-चउजाम सेहे य॥ (बृभा ६३६१, ६३६२७) (बृभा ५३४०) मध्यवर्ती तीर्थंकरों के साधुओं के तथा महाविदेह क्षेत्र के कल्पस्थित के पांच महाव्रत होते हैं । चतुर्यामप्रतिपत्ता साधुओं के चार कल्प अवस्थित होते हैं और शैक्ष (प्रथम या अंतिम तीर्थंकर के अनुपस्थापित१. शय्यातरपिण्ड वर्जन ३. पर्याय ज्येष्ठ सामायिकसंयत शिष्य)-ये अकल्पस्थित हैं। २. चातुर्याम धर्म ४. कृतिकर्म ५. छेदोपस्थापनीयसंयत : दस स्थितकल्प छह कल्प अनवस्थित होते हैं दसठाणठितोकप्पो, पुरिमस्सयपच्छिमस्सय जिणस्स" १. अचेल-वे वस्त्र संबंधी राग-द्वेष होने पर अचेल रहते आचेलक्कुद्देसिय, सिज्जायर रायपिंड कितिकम्मे। हैं, अन्यथा सचेल रहते हैं और उस स्थिति में महामूल्यवान् वत जेट्ठ पडिक्कमणे, मासं-पज्जोसवणकप्पे॥ व प्रमाण से अधिक वस्त्र भी ग्रहण करते हैं। (बृभा ६३६३, ६३६४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy