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________________ आगम विषय कोश-२ १६७ कल्पस्थिति इस क्रम से उसका धान्य कभी समाप्त नहीं होता। इसी ० बिना दोष प्रतिक्रमण क्यों? वैद्यत्रयी दृष्टांत प्रकार असंयत प्राणी के अल्प निर्जरा और बहत कर्मबंध होता ० मासकल्प है, उसका कभी मोक्ष नहीं होता। ०पर्युषणाकल्प कोई व्यक्ति एक बहुत बड़े धान्य के कोठे में से एक * कल्पस्थिति के विघ्न द्र परिमंथ कुंभ धान्य निकालता है और एक प्रस्थ धान्य डालता है, इस १. कल्पस्थिति के पर्याय क्रम से उसका धान्य एक दिन समाप्त हो जाता है। पलिमंथविप्पमुक्कस्स होति कप्पो अवट्ठितो णियमा। इसी प्रकार संयत व्यक्ति के अल्प कर्मबंध और बहुत कप्पे य अवट्ठाणं, वदंति कप्पट्ठितिं थेरा॥ निर्जरा होती है। वह अपश्चिम संयम-तप (यथाख्यात चारित्र .."ठिति त्ति मेर त्ति एगट्ठा॥ और शुक्ल ध्यान) के द्वारा समस्त कर्मों से मुक्त हो जाता है। पतिद्वा ठावणा ठाणं ववत्था संठिती ठिती। * पूर्वतप से देवायुबंध कैसे? द्र देव अवट्ठाणं अवत्था य, एकट्ठा......॥ कल्प-एक छेदग्रंथ, जिसमें साध्वाचार के विधि _(बृभा ६३४९, ६३५५, ६३५६) निषेधों का निरूपण है। द्र छेदसूत्र कल्पे-कल्प-शास्त्रोक्तसाधुसमाचारे स्थिति:कल्पस्थित-वह मुनि, जो परिहारविशुद्धि चारित्र की अवस्थानं कल्पस्थितिः कल्पस्य वा स्थिति:-मर्यादा साधना के समय गुरु का दायित्व निभाता कल्पस्थितिः। (क ६/२० की वृ) है। द्र परिहारविशुद्धि जो साधु संयम के विघ्नों से मुक्त होता है, उसके कल्पस्थिति मनि की आचार-मर्यादा, साधु सामाचारी नियमतः सर्वकालभावी कल्प होता है । स्थविरों ने आचारशास्त्र में अवस्थान । प्रथम-चरम और मध्यम तीर्थंकरों के शासन में प्ररूपित साधु के आचार में अवस्थिति को कल्पस्थिति कहा में होने वाला आचारव्यवस्था-भेद। है। अथवा आचारमर्यादा कल्पस्थिति है। स्थिति और मर्यादा एकार्थक हैं। प्रतिष्ठा, स्थापना, १. कल्पस्थिति के पर्याय स्थान, व्यवस्था, संस्थिति, स्थिति, अवस्थान और अवस्था२. कल्पस्थिति के प्रकार ०कल्पस्थिति का समवतरण ये सब स्थिति के एकार्थक हैं। ३. सामायिक संयत : स्थित-अस्थितकल्प २. कल्पस्थिति के प्रकार __ * सामायिक संयत द्र चारित्र छव्विहा कप्पट्ठिती पण्णत्ता, तं जहा-सामाइय४. कल्पस्थित-अकल्पस्थित कौन? संजयकप्पद्विती, छेदोवट्ठावणियसंजयकप्पद्विती, निव्वि_*जिनकल्प : स्थित-अस्थित कल्प समाणकप्पद्विती, निविट्ठकाइयकप्पट्टिती, जिणकप्प५. छेदोपस्थापनीयसंयम : दस स्थितिकल्प द्विती, थेरकप्पट्टिती। (क ६/२०) ० अचेल ० औद्देशिक वर्जन कल्पस्थिति के छह प्रकार हैं० शय्यातरपिण्ड वर्जन १. सामायिकसंयतकल्पस्थिति ० राजा और राजपिण्ड के प्रकार २. छेदोपस्थापनीयसंयतकल्पस्थिति ० कृतिकर्म ३. निर्विशमानकल्पस्थिति ०व्रत (चातुर्याम-पंचयाम): ऋजुप्राज्ञ आदि ४. निर्विष्टकायिककल्पस्थिति द्र परिहारविशुद्धि ० ज्येष्ठकल्प ५. जिनकल्पस्थिति द्र जिनकल्प ० प्रतिक्रमण ६. स्थविरकल्पस्थिति द्र स्थविरकल्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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