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________________ उपसम्पदा है, उसे स्वीकार किया जाए या नहीं ? गच्छ की अनुमति हो तो उसे उपसम्पदा दी जाती है, अन्यथा प्रतिषेध कर दिया जाता है। यदि कुछ गच्छवासी मान्य करते हैं और कुछ अमान्य, तो अमान्य करने वालों को उस क्षपक की वैयावृत्त्य में बल प्रयोग से नियोजित नहीं किया जाता । अविकृष्ट तपस्वी को पूछा जाता है - पारणे में तुम्हारी स्थिति कैसी रहती है ? वह कहता है- गुरुदेव ! पारणक में मेरी स्थिति ग्लान जैसी हो जाती है। तब गुरु कहते हैंआयुष्मन् ! तुम तप मत करो। तुम्हारे में इतनी शक्ति नहीं है, अतः बहुगुणकारी स्वाध्याय करो । विकृष्ट तपस्वी पारणक में क्लांत भी हो सकता है। फिर भी उसे तपःकरण की अनुज्ञा दे दी जाती है, क्योंकि विकृष्ट तप महागुणकारी है । उसे भक्तपान, भैषज आदि लाकर दिए जाते हैं । तपस्वी की सेवा के मुख्य कार्य हैं• उसके उपकरणों का प्रतिलेखन करना। ० बिछौना करना । • उसके योग्य पानक लाकर देना। • यथासमय मात्रकत्रिक (उच्चारमात्रक, प्रस्रवणमात्रक, श्लेष्ममात्रक) लाकर देना और परिष्ठापन करना। २. गणसंक्रमण के पांच हेतु णाण दंसणट्ठा, चरितट्ठा एवमाइसंकमणं । संभोगट्ठा व पुणो, आयरियट्ठा व णातव्वं ॥ सुत्तस्स व अत्थस्स व उभयस्स व कारणा तु संकमणं । वीसज्जियस्स गमणं, भीओ य णियत्तई कोई ॥ कालियपुव्वगते वा, णिम्माओ जदि य अत्थि से सत्ती । दंसणदीवगहेडं, गच्छइ अहवा इमेहिं तू ॥ चरितट्ठ देस दुविहा, एसणदोसा य इत्थिदोसा य । गच्छम्मि विसीयंते, आतसमुत्थेहि दोसेहिं ॥ तिहट्टा संकमणं, एवं संभोइएस जं भणितं । तेसऽसति अण्णसंभोइए वि वच्चेज्ज तिण्हट्ठा ॥ (निभा ५४५८, ५४५९, ५५२३, ५५३९, ५५५३) एक गण से दूसरे गण में संक्रमण के पांच हेतु हैं— १. ज्ञानार्थ उपसम्पदा । ४. सम्भोजार्थ उपसम्पदा । ५. आचार्यार्थ उपसम्पदा । २. दर्शनार्थ उपसम्पदा । ३. चारित्रार्थ उपसम्पदा । १४२ Jain Education International आगम विषय कोश - २ १. ज्ञानार्थ उपसम्पदा - अपने आचार्य के पास सूत्रार्थ - ग्रहण के पश्चात् अभिनव सूत्र, अर्थ और सूत्रार्थग्रहण के लिए मुनि अपने आचार्य के द्वारा विसर्जित होने पर अन्य गण में जाए। वहां आचार्य के कठोर स्वभाव से डर कर यदि लौट आता है। तो वह प्रायश्चित्त का भागी होता है। २. दर्शनार्थ उपसम्पदा - मुनि कालिक श्रुत और पूर्वगतश्रुत में निपुण होने के पश्चात् यदि सामर्थ्य हो तो दर्शन ( स्व - पर मतों) के प्रकाशन के लिए उपसम्पदा स्वीकार करता है। ३. चारित्रार्थ उपसम्पदा - इसके दो हेतु हैं१. देशदोष - अपने क्षेत्र में एषणा - दोष स्त्री-संबंधी दोष उत्पन्न होने पर चारित्रविशोधि के लिए गणसंक्रमण करे। २. आत्मसमुत्थदोष — गुरु या सम्पूर्ण गच्छ चक्रवाल सामाचारी के पालन में श्लथ या खिन्न हो जाये तो उन्हें सावधान करे, पन्द्रह दिन प्रतीक्षा करे, परिवर्तन के अभाव में गणसंक्रमण करे। • सम्भोजार्थ उपसम्पदा : चारित्राचार में श्लथता संभोगा अवि हु तिहिं, कारणेहिं तत्थ चरणे इमो भेदो । संकमचउक्कभंगो, पढमे गच्छम्मि सीदंते ॥ पडिले दियतुट्टण, णिक्खवणाऽऽयाण विणय सज्झाते । आलोय-ठवण- भत्तट्ठ-भास पडलग-सेज्जातरादीसु ॥ चोदावेति गुरूण व सीदंतं गणं सयं व चोदेति । आयरियं सीदंतं, सयं गणेणं व चोदावे ॥ दोण्णि विविसीयमाणे, सयं च जे वा तहिं ण सीदंति । ठाणं ठाणासज्जतु, अणुलोमादीहि चोदावे ॥ भणमाण भणावेंतो, अयाणमाणस्स पक्ख उक्कोसो। लज्जा पंच तिण्णि व तुह किं ति व परिणते विवेगो ॥ (निभा ५५५४-५५५८) ज्ञान, दर्शन और चारित्र - इन तीन कारणों से संभोज उपसम्पदा ग्रहण की जाती है। जिसके पास ज्ञान - दर्शन हेतु उपसम्पदा स्वीकार की है, उसमें खिन्नता या श्लथता होने पर वहां से निर्गमन कर पुनः अन्य गण में संक्रमण करना चाहिये । जहां चारित्र के लिए उपसम्पन्न हुआ है, उस गच्छ में चारित्रपालन के प्रति श्लथता प्रतीत हो तो वहां से अन्य संविग्न गण में संक्रमण करे। संक्रमण हेतु के चार विकल्प हैं१. गच्छ श्लथ है, आचार्य नहीं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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