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________________ आलोचना आगम विषय कोश-; २७. किस आलोचना से शुद्धि ० मायापूर्ण आलोचना से प्रायश्चित्तवद्धि * आलोचना में आराधना की नियमा द्र आराधना २८. आलोचना से निष्पन्न गुण * पृथक् वसति :आलोचनाविधि द्र सामाचारी १. आलोचना के स्थान भिक्ख-वियार-विहारे, अन्नेसु य एवमादिकज्जेसु। अविगडियम्मि अविणओ, होज्ज असुद्धे व परिभोगो॥ अन्नं च छाउमत्थो, तधन्नहा वा हवेज्ज उवजोगो। आलोएंतो ऊहइ, सोउं च वियाणते सोता॥ (व्यभा ५७.५८) वस्त्र, पात्र, भक्तपान, औषधि आदि ग्रहण कर वसति में आने पर. उच्चारभमि. विहारभमि आदि से आकर तथा इसी प्रकार के अन्यान्य कार्यों से निवृत्त होकर गुरु के पास आलोचना न करने वाला अविनय और अशुद्ध परिभोग-इन दो दोषों से दूषित होता है। छद्मस्थ साधु का उपयोग अयथार्थ या विपरीत भी हो सकता है। आचार्य आदि बहुश्रुतों के पास आलोचना करता हुआ मुनि ऊहापोह के द्वारा स्वयं ही शुद्ध- अशुद्ध को जान लेता है अथवा वहां आने-जाने वाले अन्य श्रोताओं से भी शुद्धाशुद्धि की बात सुनकर स्वयं शद्धाशद्धि का विवेक कर सकता है। (प्रत्युपेक्षण, प्रमार्जन, वैयावृत्त्य, स्वाध्याय, तपश्चरण, आहार-विहार आदि अवश्यकरणीय क्रियाओं में जागरूक रहते हुए भी जो प्रमाद होता है, उनमें अतिचार लगता है तो उसकी शुद्धि आलोचना मात्र से हो जाती है।-तसू ९/२२ वृ विद्या और ध्यान के साधनों को ग्रहण करने आदि में विनय के बिना प्रवृत्ति करना दोष है, उसका प्रायश्चित्त है आलोचना।-तवा ९/२२) २. आलोचनीय क्या? चेयणमचित्तदव्वे, जणवयमद्धाण होति खेत्तम्मि। दिण-निसि सुभिक्ख-दुभिक्खकाले भावम्मि हडितरे॥ (व्यभा ३१६) आलोचना के चार पहलू हैं द्रव्य-सचित्त और अचित्त क्षेत्र-जनपद आदि स्थान काल-दिन-रात या सुभिक्ष-दुर्भिक्ष भाव-स्वस्थ या ग्लान अवस्था इनसे सम्बद्ध विहित आचार का अतिक्रमण होने पर आलोचना की जाती है। ३. आलोचना की इयत्ता बितिए नस्थि वियडणा, वा उविवेगे तधा विउस्सग्गे" (व्यभा ५५) प्रतिक्रमणार्ह प्रायश्चित्त में आलोचना नहीं की जाती है। विवेकाह और व्युत्सर्गार्ह प्रायश्चित्त में आलोचना वैकल्पिक है-कभी की जाती है, कभी नहीं की जाती। ४. आलोचना के तीन प्रकार ........ आलोयणा तिविहा॥ विहारालोयणा, उवसंपयालोयणा, अवराहालोयणा या (निभा ६३१० चू) आलोचना के तीन प्रकार हैं१. विहार आलोचना-बल-वीर्य होने पर भी तप-उपधान आदि में उद्यम न करने की आलोचना। २. उपसम्पदा आलोचना-उपसम्पदा हेतु उपस्थित मुनि द्वारा की जाने वाली आलोचना। ३. अपराध आलाचना--आतक्रमण का विशुद्धि के लिए का जाने वाली आलोचना। ५. विहार आलोचना के प्रकार तं पुण ओहविभागे, दरभुत्ते ओह जाव भिण्णो उ। तेण परेण विभाओ, संभमसत्थादिसं भइतं॥ ओहे एगदिवसिया, विभागतो एगऽणेगदिवसा तु। रत्तिं पि दिवसओ वा, विभागओ ओहओ दिवसे॥ अप्पा मूलगुणेसुं, विराहणा अप्पउत्तरगुणेसुं। अप्पा पासत्थाइसु, दाणग्गह संपओगोहा।। (निभा ६३१४-६३१६) विहार आलोचना के दो प्रकार हैं-ओघ और विभाग। ० ओघ विहार आलोचना-एक क्षेत्र में प्रवासी मनि आहारकार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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