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________________ आचार्य हूं।' ) आचार्य अपने शिष्यों और प्रतीच्छकों को कहते हैं- मैं वृद्ध हो गया हूं, मैंने अमुक को गणधर स्थापित किया है, अब तुम विनयपूर्वक उसके आदेश निर्देश का पालन करो। १. युवराज दृष्टांत - राजा जिस राजकुमार को राजपद पर स्थापित करना चाहता है, उसके लिए वह सुभटों और योद्धाओं को कहता है - तुम अमुक कुमार की सेवा करो, मैं अत्यंत वृद्ध हो गया हूं । ८२ राजा उन्हें वृत्ति भी कुमार से दिलवाता है (जिससे कुमार के प्रति उनका अनुराग पैदा हो ) । फिर परीक्षापूर्वक उसे युवराज बनाता है । २. परमान्न और कुत्ते - राजकुमार बहुत हैं, उनमें से किसे युवराज बनाऊं - यह सोचकर राजा परीक्षा हेतु सभी कुमारों को बुलाता है, प्रत्येक के सामने पायस परोसा हुआ एक-एक थाल रखवाकर खाने के लिए कहता है और उधर श्रृंखलाबद्ध कुत्तों को छुड़वाता है। वे वेग के साथ कुमारों के पास आ जाते हैं। एक कुमार उनके भय से भाग जाता है, दूसरा कुमार डंडे से कुत्तों को हटाकर परमान्न का भोजन करता है । तीसरा कुमार स्वयं खाता है और साथ-साथ कुत्तों को भी खिलाता है । तीसरे को राज्य दिया जाता है, पहले और दूसरे को नहीं । पहला कुमार शत्रुसेना के आने पर भाग जाएगा । दूसरा कुमार सुभटों को यथेष्ट वृत्ति नहीं देगा तो वे शत्रुसेना के साथ युद्ध नहीं करेंगे। अतः दोनों कुमार राज्य के लिए अयोग्य हैं। तीसरा कुमार कोश की रक्षा करेगा और भृत्यों को पर्याप्त वृत्ति देगा, इस कारण से वे शत्रुसेना के साथ युद्ध कर उसे भगा देंगे। अतः यह कुमार राज्य की परिपालना के लिए योग्य है- यह जानकर राजा उसे राज्यभार सौंप देता है। २७. निरपेक्ष राजा की मृत्यु और मूलदेव दृष्टांत निरवेक्खे कालगते, भिन्नरहस्सा तिगिच्छऽमच्चोय | अहिवास आस हिंडण, वज्झो त्ति य मूलदेवो उ॥ आसस्स पट्टिदाणं, आणयणं हत्थचालणं रण्णो । अभिसेग भोइ परिभव, तण-जक्ख निवायणं आणा ॥ तिवातियसेसा, सरणगता जेहि तोसितो पुव्वं । ते कुव्वंती रण्णो, अत्ताण परे य निक्खेवं ॥ (व्यभा १८९५- १८९७) Jain Education International आगम विषय कोश- २ निरपेक्ष राजा कालधर्म को प्राप्त हो गया है - इस रहस्य को दो ही व्यक्ति जानते थे- वैद्य और मंत्री । राजा के कोई संतान नहीं थी । राजपुरुषों ने नये राजा के चयन के लिए घोड़े को अधिवासित कर नगर में घुमाया। रास्ते में मूलदेव चोर मिला, जिसे वध के लिए ले जाया जा रहा था। (राजा ने ही उसे चोरी के आरोप में वध्य घोषित किया था और कुछ क्षणों के पश्चात् ही राजा स्वयं दिवंगत हो गया ।) अश्व मूलदेव के पास जाकर अपनी पीठ नीचे की । मूलदेव को उस पर बिठाकर वहां लाया गया, जहां पर्दे के पीछे राजा का शव रखा हुआ था। वहां वैद्य और मंत्री बैठे थे। उन्होंने राजा के हाथ को ऊपर उठाकर हिलाया और बोले- राजा बोल नहीं सकते, अतः अपना हाथ हिलाकर यह अनुमति देते हैं कि मूलदेव का राज्याभिषेक किया जाए। मूलदेव राजा बन गया। कुछ सामंत राजा का परिभव करने लगे। उन्हें अनुशासित करने के लिए एक दिन मूलदेव अपने मुकुट में तीक्ष्ण तृण लगाकर सभा में आया। कुछ सामंत कानाफूसी करने लगे--- राजा की चोरी की आदत नहीं छूटी है। लगता है किसी तृणगृह में चोरी करने गया है और वहां तिनके सिर पर लगे हैं। यह बात मूलदेव ने सुनली और वह अत्यन्त रुष्ट होकर बोला है कोई मेरी चिंता करने वाला, जो इन सामंतों को दंडित करे? इतना कहते ही उसके पुण्य प्रभाव से राज्यदेवता से अधिष्ठित चित्रगत प्रतीहार प्रकट हुए, जिनके हाथों में तीखी तलवारें थीं। उन्होंने कुछेक सामंतों के सिर काट डाले। इस यक्षकृत विनाश को देख शेष सभी सामंतों ने मूलदेव की शरण स्वीकार कर राजाज्ञा के अनुसार चलने का संकल्प किया। जो राजा को पहले तुष्ट कर चुके थे, उन्होंने अपने आपको और अपने निश्रित दूसरों को राजा के चरणों में इस शब्दावलि में समर्पित किया- आज से हम और ये आपके हैं । २८. नए आचार्य के अभिषेक की विधि आसुक्कारोवरते, अट्ठविते गणहरे इमा मेरा । चिलिमिलि हत्थाणुण्णा, परिभव सुत्तत्थहावणया ॥ तम्मिगणे अभिसित्ते, सेसगभिक्खूण अप्पनिक्खेवो । जे पुण फड्डगवतिया, आतपरे तेसि निक्खेवो ॥ (व्यभा १८९९, १९१४) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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