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________________ • अनुयोग द्रव्य अनुयोग अनुयोग के सात निक्षेप हैं नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, वचन और भाव । नाम अनुयोग नामस्स जोऽणुओगो अहवा जस्साभिहाणमणुओगो। नामेण व जो जोग्गो जोगो नामाणओगो सो॥ (विभा १३८९) नाम अनुयोग के तीन रूप हैं. वीर आदि नामों का अनुयोग/व्याख्या करना नामानु काष्ठ, पुस्त (लेप्य), चित्र, श्रीगहिक, पौण्ड (कमल) और पथदर्शक । पढमो रूवागारं थलावयवोवदंसणं वीओ। तइओ सव्वावयवे निहोसे सव्यहा कुणइ ॥ कटुसमाणं सुत्तं तदत्थरूवेगभासणं भासा। थुलत्थाण विभासा सव्वेसि वत्तियं नेयं ।। (विभा १४२६, १४२७) एक व्यक्ति काष्ठपट्टिका को सामान्य आकार देता है। दूसरा उसे स्थूल अवयवों के रूप में निष्पादित करता है। तीसरा सुव्यवस्थित रूप में संपूर्ण अंगोपांगों का निर्माण कर सुन्दर कृति के रूप में प्रस्तुत करता है। प्रस्तुत संदर्भ में काष्ठ के समान है --सूत्र । प्रथम व्यक्ति के समान है भाषक, दूसरे के समान है विभाषक और तीसरे के समान है वार्तिककार । चार दृष्टियां दव्वेणेगं दव्वं संखाईयप्पएसओगाढं। कालेऽणाइ अनिहणो भावे नाणाइयाणंता ।। (विभा १३९४) जीव द्रव्य का अनुयोग चार दृष्टियों से किया गया किसी वस्तु का 'अनुयोग' नाम रखना नामानुयोग ० नाम के साथ जो कोई योग्य योग-अनुरूप संबंध है, वह नामानुयोग है। जैसे-दीप नाम का अनुकूल दीप के साथ संबंध । स्थापना अनुयोग ठवणाए जोऽणुओगो अणुओग इति वा ठविज्जए जं च । जा वेह जस्स ठवणा जोग्गा ठवणाणुओगो सो॥ (विभा १३९०) स्थापना अनुयोग के तीन रूप हैं० स्थापना का अनुयोग/व्याख्यान करना स्थापनानुयोग द्रव्य से-एक द्रव्य क्षेत्र से असंख्य प्रदेशावगाढ काल से-अनादि-अनन्त भाव से-ज्ञान आदि अनन्त अगुरुलघु पर्याय । द्रव्य, क्षेत्र आदि में नियमा-भजना दव्वे नियमा भावो न विणा ते यावि खेत्त-कालेहिं । खेत्ते तिण्ह वि भयणा कालो भयणाए तीसु पि ॥ (विभा १४०८) द्रव्य में भाव/पर्याय निश्चित रूप से होता है। क्षेत्र और काल के बिना द्रव्य-भाव नहीं होते । क्षेत्र में द्रव्यकाल-भाव की भजना है-लोकक्षेत्र में तीनों होते हैं, अलोकक्षेत्र में नहीं होते । द्रव्य-क्षेत्र-भाव में काल की भजना है-काल समयक्षेत्रवर्ती द्रव्य-क्षेत्र-भाव में होता है, उसके बाहर नहीं । अनुयोग के निक्षेप नाम ठवणा दविए खेत्ते काले वयण-भावे य। एसो अणओगस्स उ निक्खेवो होइ सत्तविहो॥ (विभा १३८८) ० अनुयोग करते हुए आचार्य आदि की काष्ठ आदि में स्थापना करना स्थापनानुयोग है। ० अनुयोगकर्ता आचार्य की लेप्यकर्म आदि में तदाकार स्थापना स्थापनानुयोग है। द्रव्य अनुयोग दव्वस्स जोऽण ओगो दव्वे दव्वेण दवहेऊ वा । दव्वस्स पज्जवेण व जोगो दव्वेण वा जोग्गो ।। बहवयणओ वि एवं नेओ जो वा कहे अणवउत्तो । दव्वाण ओग एसो एवं खेत्ताइयाणं पि॥ (विभा १३९१, १३९२) ० द्रव्य का अनुयोग- व्याख्या करना। ० निषद्या आदि द्रव्य पर स्थित (व्यक्ति) का अनुयोग करना । क्षीर, प्रस्तरखण्ड आदि करणभूत द्रव्यों के द्वारा अनुयोग करना। शिष्य-द्रव्य को प्रतिबोध देने के लिए अनुयोग करना । ० द्रव्य का पर्याय के साथ योग्य संबंध करना । • अनुपयुक्त/उपयोगशून्य अवस्था में अनुयोग करना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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