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________________ स्वरमंडल • मध्यम प्राम की मूर्च्छना • बाम्धार ग्राम की मूर्च्छना ७. स्वर की उत्पत्ति, गीत की योनि ● गीत के दोष ● गीत के गुण • सप्तस्वर सीभर • गेम पदों के गुण के प्रकार • वृत्त • गीत की भाषा • रंग के आधार पर स्वर ८. काव्य के प्रकार ० गद्यकाव्य ० पद्यकाव्य ० येपकाव्य o चूर्ण काव्य ० १. स्वरों के प्रकार सज्जे रिसभे गंधारे, मज्झिमे पंचमे सरे । धेवए चेव नेसाए, सरा सत्त वियाहिया || स्वरों के सात प्रकार हैं१. षड्ज २. ऋषभ ३. गान्धार ४. मध्यम २. स्वरों के स्थान णाभिसमुत्यो अ सरो अविकारो पप्पं जं पदेसं तु । आभोगियरेणं वा उवकारकर सरद्वाणं ॥ जहा ( अनु २९८ ) ५. पंचम ६. चैत ७. निषाद । ( अनुच् पृ ४५) स्वर के उपकारी, विशेषता प्रदान करने वाले स्थान को स्वर स्थान कहा जाता है। जिस स्वर की उत्पत्ति में जिस स्थान का व्यापार प्रधान होता है, उसे उसी स्वर का स्थान कहा जाता है। गौण रूप से उसकी उत्पत्ति में दूसरे स्थान भी व्यापृत होते हैं । एएसि णं सतह सराणं सत्त सरद्वाणा पण्णत्ता, तं Jain Education International ७१८ सज्जं च अग्गजीहाए, उरेण रिसभं सरं । कंठुग्गएण गंधारं मज्जीहाए मज्झिमं ॥ जीवनिश्रित और अजीवनिश्रित स्वर नासाए पंचमं ब्रूया, दंतोट्ठेण य घेवतं । भमुहक्खेवेण नेसायं, सरद्वाणा वियाहिया ॥ ( अनु २९९ ) स्वर १. षड्ज २. ऋषभ ३. गान्धार ४. मध्यम ५. पंचम ६. पंत ७. निषाद स्थान जिल्ला का अग्रभाग । वक्ष । दांत और होठ का संयोग । भू-उत्क्षेप (जहां भौंह का उत्क्षेप होता है) । कज्जं करणावतं जीहा व सरस्स ता असंखेज्जा । सरसंख असंखेज्जा, करणस्स असंखयत्तातो ॥ जीवनिश्रित स्वर सात है कण्ठ । जिल्ला का मध्य भाग । नासिका । कार्य करण के अधीन होता है (ध्वनियां) असंख्येय हैं कारण (साधन) के कारण स्वरों की संख्या असंख्येय है । ३. जीवनिश्रित और अजीवनिश्रित स्वर सत्त सरा जीवनिस्तिया पण्णत्ता, तं जहा सज्जं रवइ मयूरो, कुक्कुडो रिसभं सरं । हंसो रas गंधारं मज्झिमं तु गवेलगा ॥ अह कुसुमसंभवे काले, कोइला पंचमं सरं । छट्ठे च सारसा कुंचा, नेसायं सत्तमं गजो ॥ सत्त सरा अजीवनिस्सिया पण्णत्ता तं जहा सज्जं रवइ मुयंगो, गोमुही रिसभं सरं । संखो रवइ गंधारं मज्झिमं पुण झल्लरी ॥ चउचलणपट्टाणा, गोहिया पंचमं सरं । आडंबगे घेवइयं महाभेरी य सत्तमं ॥ ( अनु ३००, ३०१) For Private & Personal Use Only ( अनु पृ ४५) स्वर की जिह्वा असंख्येय होने १. मयूर षड्ज स्वर में बोलता है । २. कुक्कुट ऋषभ स्वर में बोलता है। ३. हंस गान्धार स्वर में बोलता है। ४. गवेलक (मेमना ) मध्यम स्वर में बोलता है। ५. वसंत में कोयल पंचम स्वर में बोलता है । ६. क्रौंच और सारस धैवत स्वर में बोलते हैं। ७. हाथी निषाद स्वर में बोलता है । www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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