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________________ सप्तभंगी ७१७ भिव्यक्ततज्ज्ञानमुत्पद्यते, न पुनरसत्यामेव तस्यामपेक्षा मात्रत एव ह्रस्वज्ञानमुपजायते । ( विभा १७१५ मवृ पृ ६२५ ) वस्तु का अस्तित्व केवल आपेक्षिक ही नहीं है । किन्तु स्वविषयक ज्ञान उत्पन्न करने के कारण अर्थक्रियाकारित्व भी अस्तित्व का बोधक है । इसलिए हस्व, या तदुभय-यह वस्तु-विषयक ज्ञान यदि उत्पन्न होता है। तो ये तीनों धर्म हैं ही। उनको असिद्ध कैसे माना जा सकता है ? ''प्रत्येक वस्तु अनन्तधर्मात्मक है । प्रदेशिनी अंगुली में भी अनन्त धर्म हैं । ह्रस्वत्व, दीर्घत्व आदि धर्म उसमें स्वतंत्र रूप से विद्यमान हैं। सहकारी कारणों से जब जो धर्म अभिव्यक्त होता है तब उस वस्तु के उस रूप का बोध होता है । जो धर्म उस वस्तु में है ही नहीं, असत् है, उसका अपेक्षामात्र से ज्ञान नहीं हो जाता। प्रदेशिनी में यदि ह्रस्वत्व धर्म नहीं है तो अपेक्षामात्र से उसका ज्ञान नहीं हो सकता । अत्थित्ति तेण भणिए घडोघडो वा घडो चूओऽचूओ व दुमो चूओ उ जहा उ अत्थेव । दुमो नियमा ॥ (विभा १७२४) घट की सत्ता घटधर्मता के कारण है, इसलिए वह घट ही है, पट आदि से भिन्न है । पट आदि अघट हैं। सबमें अपनी-अपनी सत्ता है । 'घट' कहने पर 'घट है ही ' क्योंकि उसकी सत्ता का सद्भाव उसमें ही है । जैसे द्रुम कहने पर आम्र और अनाम्र - नीम आदि का ग्रहण होता है क्योंकि उन सबमें द्रुमत्व है। किंतु आम्र कहने पर द्रुम का ही ग्रहण होगा, अद्रुम का नहीं । ... दीहंति व हस्सं ति व न उ सत्ता सेसधम्मा वा ॥ इहरा हस्ताभावे सव्वविणासो हवेज्ज दीहस्स । नय सो तम्हा सत्तादयोऽणवेक्खा घडाईणं ॥ सम्भावासम्भावोभयप्पिओ स-परपज्जओभयओ । कुंभाऽकुंभाऽवत्तव्योभयरूवाइभेओ सो ॥ स्वर मंडल तदेवं स्याद्वाददृष्टं सप्तभेदं घटादिकमर्थं यथाविवक्षमेकेन केनापि भङ्गकेन विशेषिततरमसौ शब्दनयः प्रतिपद्यते नयत्वात्, ऋजुसूत्राद् विशेषिततरवस्तुग्राहित्वाच्च, स्याद्वादिनस्तु सम्पूर्ण सप्तभंग्यात्मकमपि प्रतिपद्यन्ते । ( विभा २२३२ मवृ पृ १५) सद्भाव (अस्तित्व) और असद्भाव ( नास्तित्व) तथा स्वपर्याय और परपर्याय से विशिष्ट वस्तु के सात भंग बनते हैं Jain Education International १. स्व पर्याय की अपेक्षा घट है । २. पर पर्याय की अपेक्षा घट नहीं है । ३. युगपत् स्व-पर पर्याय की अपेक्षा घट अवक्तव्य है । ४. स्व पर्याय की अपेक्षा घट है, पर पर्याय की अपेक्षा वह नहीं है । ५. स्व पर्याय की अपेक्षा घट है, युगपत् स्व-पर पर्याय की अपेक्षा वह अवक्तव्य है । ६. पर पर्याय की अपेक्षा घट नहीं है, युगपत् स्व-पर पर्याय की अपेक्षा वह अवक्तव्य है । ७. स्व पर्याय की अपेक्षा घट है, पर पर्याय की अपेक्षा वह नहीं है । युगपत् स्व-पर पर्याय की अपेक्षा वह अवक्तव्य है । स्वयंबुद्ध सिद्ध - किसी बाहरी निमित्त के बिना अपने आप संबुद्ध होकर मुक्त होने वाले । ( द्र. सिद्ध ) ( विभा १७१४, १७१५ ) स्वरमंडल - षड्ज, ऋषभ आदि सात स्वर । वस्तु की सत्ता आपेक्षिक नहीं है। दीर्घ, ह्रस्व, रूप, रस आदि धर्म केवल आपेक्षिक ही नहीं हैं । यदि ह्रस्व के कारण दीर्घ की सत्ता मानी जाये तो ह्रस्वत्व के विनाश से दीर्घत्व का भी विनाश हो जायेगा । अतः घट आदि की सत्ता और रूप आदि धर्म अन्य की अपेक्षा से नहीं हैं। सप्तभंगी इस प्रकार स्याद्वाद से प्रतिपादित सप्तभंगयुक्त घट आदि पदार्थ किसी एक भंग से विशेषित होने पर शब्द नय और ऋजुसूत्र नय के विषय बनते हैं । स्याद्वाद का विषय सातों विकल्प । इनमें प्रथम तीन भंग सकलादेश और शेष चार भंग विकलादेश कहलाते हैं । १. स्वरों के प्रकार २. स्वरो के स्थान ३. जीवनिश्रित और अजीवनिश्रित स्वर ४. स्वरों के लक्षण ५. स्वरों के ग्राम ६. ग्राम की मूच्र्छनाएं • षड्ज ग्राम की मूच्र्छना For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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