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________________ सिद्धों के गुण २. अधोलोक - अधोलोक के ग्राम से जीव सिद्ध होते हैं ( महाविदेह की दो विजय मेरु के रुचक प्रदेशों से हजार योजन नीचे तक चली जाती है । तिर्यक् लोक की सीमा नौ सो योजन है। उससे आगे अधोलोक की सीमा आ जाती है।) ३. तिर्यक्लोक - अढाई द्वीप समुद्र प्रमाण तिरछे लोक में कहीं से भी जीव सिद्ध हो सकते हैं। ८. सिद्धों के गुण सिद्धा: - सिद्धिपदप्राप्तास्तेषामादी - प्रथमकाल एवातिशायिनो वा गुणा: सिद्धादिगुणा: सिद्धातिगुणा वा संस्थानादिनिषेधरूपा एकत्रिंशत् । डिसेणसं ठाणो य । गंधर सफासवेए पणपण दुपट्टतिहा इगती समकाय संग रुहा ॥ अहवा कम्मे णव दरिसणंमि चत्तारि आउए पंच आइमे अंते । सेसे दो दो भैया, खीणभिलावेण इगतीसं ॥ ( उशावृ प ६१८ ) सिद्धों के आदिगुण का अर्थ है- सिद्धि पद प्राप्ति के प्रथम क्षण में होने वाले गुण । उनकी संख्या इकतीस है । यह संख्या दो प्रकार से बताई गई है । (क) आठ कर्मों के क्षय की निष्पत्ति के आधार पर १. अभिनिवोधिक ज्ञानावरण का क्षय २. श्रुत ज्ञानावरण का क्षय ३. अवधि ज्ञानावरण का क्षय ४. मनः पर्यव ज्ञानावरण का क्षय ५. केवल ज्ञानावरण का क्षय ६. चक्षुदर्शनावरण का क्षय ७. अचक्षु दर्शनावरण का क्षय ८. अवधि दर्शनावरण का क्षय ९. केवल दर्शनावरण का क्षय १०. निद्रा का क्षय ११. निद्रा-निद्रा का क्षय १२. प्रचला का क्षय १३. प्रचलाप्रचला का क्षय १४. स्त्यानद्धि का क्षय १५. सातावेदनीय का क्षय १६. असातावेदनीय का क्षय १७. दर्शनमोहनीय का क्षय ७०७ Jain Education International १८. चारित्रमोहनीय का क्षय १९. नैरयिक आयुष्य का क्षय २० तिर्यंच आयुष्य का क्षय २१. मनुष्य आयुष्य का क्षय २२. देव आयुष्य का क्षय २३. उच्च गोत्र का क्षय २४. नीच गोत्र का क्षय २५. शुभ नाम का क्षय २६. अशुभ नाम का क्षय २७. दानान्तराय का क्षय २८. लाभान्तराय का क्षय २९. भोगान्तराय का क्षय ३०. उपभोगान्तराय का क्षय ३१. वीर्यान्तराय का क्षय (ख) संस्थान आदि के निषेध के आधार पर पांच संस्थान - १. दीर्घ ह्रस्व २. वृत्त ३. त्यस्र ४. चतुरस्र और ५. परिमंडल से रहित । पांच वर्ण – ६. कृष्ण ७. नील ८. लोहित ९ हारिद्र और १०. शुक्ल वर्ण से रहित । सिद्ध दो गंध - ११. सुरभि गंध और १२. दुरभि गंध से रहित । पांच रस- १३. तिक्त १४. कटुक १५. कषाय १६. अम्ल १०. मधुर रस से रहित । आठ स्पर्श - १०. कर्कश १९. मृदु २०. लघु २१. गुरु २२. शीत २३. उष्ण २४, स्निग्ध २५. रूक्ष स्पर्श से रहित । तीन वेद- २६. स्त्रीवेद २७ पुरुषवेद २८. नपुंसकवेद से रहित । २९. अशरीरी ३० असंग ३१ अजन्मा । न पुणो तस्स पसूई बीयाभावादिहं कुरस्सेव । बीयं च तस्स कम्मं न य तस्स तयं तओ निच्चो ।। ( विभा १८४१ ) जैसे बीज के अभाव में अंकुर उत्पन्न नहीं होता, वैसे ही कर्मरूपी बीज के अभाव में मुक्त जीवों का पुनः संसार में आगमन नहीं होता, इसलिए मुक्तात्मा नित्य होता है । ६. सिद्धों का सुख ...''अउलं सुहं संपत्ता, उवमा जस्स नत्थि उ ॥ For Private & Personal Use Only (३६/६६) www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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