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________________ पचार अनाचार २६ बावन अनाचार अनाचार-विहित आचार का अतिक्रमण । १. औद्देशिक-निर्ग्रन्थ के निमित्त बनाया गया आहार आदि लेना। १. अनाचार के अर्थ २. क्रीतकृत-निर्ग्रन्थ के निमित्त खरीदा गया आहार २. बावन अनाचार आदि लेना। ३. अनाचार के हेतु ३. नित्याग्र-आदरपूर्वक निमन्त्रित कर प्रतिदिन * औद्देशिक आदि अनाचार : एषणा के दोष दिया जाने वाला आहार आदि लेना।' (द्र. एषणा) • अनाचीर्ण का प्रतिक्रमण ४. अभिहृत-निर्ग्रन्थ के निमित्त दूर से सम्मुख लाया (उ. प्रतिक्रमण) * आचार के स्थान (द्र. आचार) गया आहार आदि लेना। ५. रात्रि-भक्त-रात्रि-भोजन करना। १. अनाचार के अर्थ ६. स्नान-नहाना। अणायारो अकरणीयं वत्थु । (दअचू पृ १९३) ७. गंध-गंध सूंघना या गंध-द्रव्य का विलेपन अणायारो उम्मग्गोत्ति वुत्तं भवइ । करना। (दजिचू पृ २८५) ८. माल्य-माला पहनना। अनाचारं सावद्ययोगम् । (दहावृ प २३३) ९. वीजन-पंखा झलना। अनाचार के तीन अर्थ हैं.---अकरणीय कार्य, १०. सन्निधि-खाद्यवस्तु का संग्रह करना--रात-बासी उन्मार्ग-गमन और सावध प्रवृत्ति ।। रखना। २.बावन अनाचार ११. गृहि-अमत्र-गृहस्थ के पात्र में भोजन करना । उद्देसियं कीयगडं, नियागमभिहडाणि य । १२. राजपिण्ड-मूर्धाभिषिक्त राजा के घर से भिक्षा राइभत्ते सिणाणे य, गंधमल्ले य वीयणे ।। लेना । सन्निही गिहिमत्ते य, रायपिंडे किमिच्छए । १३. किमिच्छक --'कौन क्या चाहता है ?' यों पूछकर संबाहणा दंतपहोयणा य, संपुच्छणा देहपलोयणा य॥ दिया जाने वाला भोजन आदि लेना। अट्ठावए य नालीय, छत्तस्स य धारणढाए । १४. संबाधन-अंग-मर्दन करना । तेगिच्छं पाणहा पाए, समारंभं च जोइणो ।। १५. दंत-प्रधावन-दांत पखारना । सेज्जायरपिंडं च, आसंदीपलियंकए । १६. संप्रच्छन-गृहस्थ को कुशल पूछना । गिहतरनिसेज्जा य, गायस्सुव्वट्टणाणि य ।। १७ देह-प्रलोकन-दर्पण आदि में शरीर देखना। गिहिणो वेयावडियं जा य आजीववित्तिया। १८. अष्टापद- शतरंज खेलना । तत्तानिव्वुडभोइत्तं आउरस्सरणाणि य ॥ १९. नालिका-नलिका से पासा डाल कर जुआ मूलए सिंगबेरे य, उच्छुखंडे अनिव्वुडे । खेलना। कंदे मूले य सच्चित्ते, फले बीए य आमए । २०. छत्र-विशेष प्रयोजन के बिना छत्र धारण सोवच्चले सिंधवे लोणे, रोमालोणे य आमए । करना। सामुद्दे पंसुखारे य, कालालोणे य आमए । २१. चैकित्स्य-रोग का प्रतिकार करना, चिकित्सा धवणेत्ति वमणे य, वत्थीकम्म विरेयणे । __ करना। अंजणे दंतवणे य, गायाभंगविभूसणे ॥ २२. उपानत्-जूते पहनना। (द ३२-९) २३. ज्योतिःसमारम्भ-अग्नि जलाना। बावन अनाचार जो निर्ग्रन्थ के लिए अनाचीर्ण हैं वे २४. शय्यातरपिण्ड-स्थान-दाता के घर से भिक्षा इस प्रकार हैं लेना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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