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________________ अनशन के परिणाम अनशन - • पूर्व जन्म के वैर की स्मृति होने पर कोई देव भक्तप्रत्याख्यान अनशन नियमतः सप्रतिकर्म होता प्रायोपगमन अनशन में स्थित मुनि का संहरण कर उसे है। प्रतिकर्म का अर्थ है-उद्वर्तन-परिवर्तन (करवट पाताल में ले जाता है, तब भी वह चरमशरीरी मुनि बदलना) आदि क्रियाएं करना । किसी वेदना का संवेदन नहीं करता। विधि . ० कोई देव स्नेहवश उसे देवकानन अथवा इन्द्रभवन में ले जाता है, जहां सब प्रकार के सुख उपलब्ध हैं, वहां भक्तप्रत्याख्याने गच्छमध्यवर्ती गुरुदत्तालोचनो भी वह उन कामभोगों में लुब्ध नहीं होता। मरणायोद्यतो विधिना संलेखनां विधाय ततस्त्रिविधं वह दैविक, मानुषिक और तैरश्चिक उपसर्गों से चतुर्विधं वाऽऽहारं प्रत्याचष्टे । स च समाश्रितमृदुसंस्तारक: अभिभूत नहीं होता। समुत्सृष्टशरीराद्युपकरणममत्वः स्वयमेवोद्ग्राहितनमस्कारः पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण —चारों दिशाओं से __ समीपवत्तिसाधुदत्तनमस्कारो वा । सत्यां शक्तौ स्वयमुद्वर्त्तते। शक्तिविकलतायां चापरैरपि किञ्चित्कारयति । आने वाली वायु से जैसे मेरु प्रकंपित नहीं होता, वैसे ही उपसर्ग आने पर वह मुनि ध्यान से विचलित नहीं होता। (उशावृ प ६०२) __ भक्तप्रत्याख्यान अनशन के लिए उद्यत मुनि संघ में ५. इङ्गिनीमरण रहता हआ गुरु के पास आलोचना कर विधिपूर्वक इंगियमरणविहाणं आपव्वज्जं तु वियडणं दाउं । संलेखना करता है। फिर तीनों अथवा चारों आहारों का संलेहणं च काउं जहासमाही जहाकालं । त्याग करता है । वह मृदु संस्तारक पर सोता है, शरीर पच्चक्खति आहारं चउव्विहं णियमओ गुरुसगासे । और उपकरणों पर ममत्व नहीं करता, नमस्कार महामंत्र इंगियदेसंमि तहा चेलैंपि हु इंगियं कुणइ ॥ का स्वयं जप करता है तथा दूसरों से सुनता है । शक्ति उव्वत्तइ परियत्तइकाइयामाईसु होइ उ विभासा । होने पर स्वयं अपना कार्य करता है । शक्ति न होने पर किच्चंपि अप्पणुच्चिय मुंजइ नियमेण धीबलिओ। दूसरों से भी अपना कार्य करवाता है । (उशात् प६०२) इंगिनीमरण अनशन के लिए उद्यत मुनि गुरु के पास ७. अनशन के परिणाम आलोचना कर संलेखना प्रारंभ करता है। फिर अवसर भत्तपच्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? भत्तदेखकर यथासमाधि गुरु के समक्ष नियमत: चारों आहारों पच्चक्खाणेणं अणेगाइं भवसयाई निरुंभइ। (उ २९/४१) (अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य) का प्रत्याख्यान करता है। वह भन्ते ! भक्तप्रत्याख्यान अनशन से जीव क्या इंगित निर्दिष्ट सीमित स्थान में सीमित प्रवृत्ति करता प्राप्त करता है ? भक्तप्रत्याख्यान से जीव अनेक सैकड़ों है। वह धुतिसम्पन्न मुनि उद्वर्तन-परिवर्तन आदि क्रियाएं जन्म-मरणों का निरोध करता है। .. तथा अपनी सारी आवश्यक प्रवृत्तियां स्वयं करता है। तथाविधदृढाध्यवसायतया संसाराल्पत्वापादनात् । ६. भक्तप्रत्याख्यान की परिभाषा (उशाव प ५८९) । सव्वं च असणपाणं चउव्विहं जा य बाहिरा उवही। भक्तप्रत्याख्यान अनशन का परिणाम है-जन्म अभितरं च उहिं जावज्जीवं च वोसिरे। परम्परा का अल्पीकरण । इसका हेतु है-आहार-त्याग (उशावृ प २३५) तथा ममत्वत्याग का दृढ अध्यवसाय।। भत्तपच्चक्खाणं नियमा सपडिकम्मं । पडिकम्म एयं पच्चक्खाणं अणुपालेऊण सुविहिओ सम्म । उव्वत्तण-परियत्तणादि । (दअचू पृ १२) वेमाणितो व देवो हवेज्ज अहवाऽवि सिज्झिज्जा ॥ भक्तपरिज्ञा अनशन में चारों आहार (अशन-पान (उशाव प २३६) खाद्य-स्वाद्य), बाह्य तथा आभ्यन्तर उपधि का याव- अनशनपूर्वक जीवन यात्रा सम्पन्न करने वाला मुनि ज्जीवन के लिए त्याग किया जाता है। या तो वैमानिक देव होता है या वह सिद्ध होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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