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________________ संज्ञा खओवसमिया णाणावरणखओवसमेण आभिणिबोहियनाणसण्णा भवति । ..... कम्मोदइया चतुव्विहा । ( आवचू २ पृ८० ) ६५४ संज्ञा के दो प्रकार हैं १. क्षायोपशमिक संज्ञा कर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न, जैसे— ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से होने वाली आभिनिबोधिक संज्ञा । २. कमौदयिक संज्ञा कर्म की भिन्न-भिन्न प्रकृतियों के उदय से होने वाली आहार आदि संज्ञाएं । ..... चउहि सण्णाहि आहारसण्णाए भयसण्णाए मेहुणा परिग्गहसण्णाए । ( आव ४ ( ८ ) कर्मोदय से निष्पन्न संज्ञा के चार प्रकार हैं -आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा और परिग्रहसंज्ञा । (संज्ञा के दस प्रकार भी हैं - आहार, भय, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, लोक और ओघ संज्ञा । नैरयिकों में भय संज्ञा, तिर्यंचों में आहार संज्ञा, मनुष्यों में मैथुन संज्ञा और देवों में परिग्रह संज्ञा की प्रधानता होती है । देखें - पण्णवणा पद ८ ) २. संज्ञाओं के अर्थ तथा उत्पत्ति के कारण आहारसण्णा नाम आहाराभिलाससंज्ञानं, आहाररागसंवेदनमित्यर्थः, तीए चत्तारि उदयहेतुणो 'चउहि ठाणेहिं आहारसणा समुपज्जति - ओमकोट्ठताए, छुहावेद णिज्जस्स कम्मस्स उदएणं, मतीए तदट्ठोवयोगेणं, तत्थ मती सोतुं दठ्ठे आघातुं रसेणं फासेणं वा भवति, तदट्ठोवयोगेणं आहारं चितेति, सुत्तत्थतदुभएहिं वा अप्पाणं वावडं न करेतित्ति । भय सण्णानाम भयाभिनिवेसो भयमोहोदय संवेदनमित्यर्थः तीए चत्तारि हेतुणो- चउहि ठाणेहिं भयसण्णा उप्पज्जति - हीणसत्तयाए भयमोह णिज्जउदएणं मतीए तदट्ठोवयोगताए । मेहुणाणाम स्त्याद्यभिलाससंज्ञानं, वेदमोहोदयसंवेदनमित्यर्थः, तीए चत्तारि हेतु 'चउहि ठाणेहि मेहुणसण्णा समुपज्जति, तं जहा - चितमंससोणितयाए वेदमोहणिज्जोदणं मतीए तदट्ठोवयोगेणं । परिग्गहसण्णा णाम परिग्गहाभिलाससण्णाणं, परिगहरागसंवेदनमित्यर्थः, तीसे हेतुणो- अविवित्तताए लोभोदणं मतीए तदट्ठोवयोगेणं । (आवचू २ पृ ८०,८१) उपयोगमात्र मोघसंज्ञा, लोकसंज्ञा स्वच्छन्दविकल्पिता Jain Education International एकेन्द्रिय असंज्ञी क्यों ? विश्वगमा लौकिकैराचरिता, तद्यथा - " अनपत्यस्य न सन्ति लोका" इत्यादि, अन्ये तु व्याचक्षते - ओघसंज्ञा दर्शनोपयोगः, , लोकसंज्ञा ज्ञानोपयोगः । ( नन्दीहावृ पृ ६१ ) १. आहारसंज्ञा - आहार की अभिलाषा का संज्ञान, आहार के प्रति राग का संवेदन | इसके चार कारण हैं - १. पेट के खाली हो जाने पर २. क्षुधावेदनीय कर्म के उदय से ३. आहार की बात सुनने, आहार देखने, गंध लेने आदि से उत्पन्न मति से ४. सूत्रार्थ के चितन से शून्य होकर आहार के विषय में सतत चिंतन से । २. भयसंज्ञा - भय का अभिनिवेश अर्थात् भयमोह का संवेदन | इसके चार कारण हैं - १. सत्त्वहीनता से २. भयमोहनीय कर्म के उदय से ३. भय की बात सुनने से उत्पन्न मति से ४. भय के सतत चिंतन से । ३. मैथुनसंज्ञा- स्त्री आदि की अभिलाषा रूप संज्ञान अर्थात् वेदमहोदय कर्म का संवेदन | इसके चार कारण हैं- १. अत्यधिक मांस- रक्त का उपचय होने से २ वेदमोहनीय कर्म के उदय से ३. मैथुन की मति से ४ मैथुन का सतत चिंतन करने से । ४. परिग्रहसंज्ञा - परिग्रह की अभिलाषा रूप संज्ञान, परिग्रह के प्रति रागभाव का संवेदन | इसके चार कारण हैं - १. परिग्रह से विविक्त न होने से २. लोभमोहनीय कर्म के उदय से ३. परिग्रह की मति से ४ परिग्रह का सतत चिंतन होने से । ५८. क्रोध आदि चारों संज्ञाएं- क्षेत्र, वास्तु, शरीर और उपधि के कारण उत्पन्न होती हैं । (देखें - ठाणं ४/८०-८३) ९. ओघसंज्ञा - सामान्य अवबोध, दर्शनोपयोग । यह उपयोगमात्र निर्विभाग ज्ञान है । इन्द्रिय और मन से नहीं होता । इसकी उत्पत्ति स्वाभाविक है । १०. लोकसंज्ञा - विशेष अवबोध, ज्ञानोपयोग | स्वच्छंद सूत्र में विकल्पित लौकिक मान्यता । जैसे— पुत्रहीन की गति नहीं होती, आदि । (इन दस संज्ञाओं में प्रथम आठ संवेगात्मक और अंतिम दो ज्ञानात्मक हैं । इनकी उत्पत्ति बाह्य और For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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