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________________ श्रमण की पृष्ठभूमि श्रमण मोणं चरिस्सामि समिच्च धम्म --यह कल या परसों काम आएगा---इस विचार से जो सहिए उज्जुकडे नियाणछिन्ने । न सन्निधि (संचय) करता है और न कराता है-वह संथवं जहिज्ज अकामकामे भिक्षु है। ___ अन्नायएसी परिव्वए जे स भिक्खू ॥ जो हाथों से संयत है, पैरों से संयत है, वाणी से जं किंचि आहारपाणं विविहं संयत है, इन्द्रियों से संयत है, अध्यात्म में रत है, भलीखाइमसाइमं परेसिं लदधं । भांति समाधिस्थ है और जो सत्र और अर्थ को यथार्थ जो तं तिविहेण नाणुकंपे रूप से जानता है वह भिक्षु है। मणवयकायसुसंवुडे स भिक्खू ।। वादं विविहं समिच्च लोए, गिहिणो वेयावडियं न कुज्जा, सहिए खेयाणगए य कोवियप्पा। अभिवायणं वंदण पूयणं च । पन्ने अभिभूय सव्वदंसी असंकिलिलैंहिं समं वसेज्जा, उवसंते अविहेडए स भिक्खू ।। मुणी चरित्तस्स जओ न हाणी।। न या लभेज्जा निउणं सहायं, __(उ १५॥१,१२,१५) गुणाहियं वा गुणओ समं वा। 'धर्म को स्वीकार कर मुनि-व्रत का आचरण करूंगा' एक्को वि पावाइं विवज्जयतो, -जो ऐसा संकल्प करता है, जो सहिष्णु है. जिसका अनु विहरेज्ज कामेसु असज्जमाणो।। ष्ठान ऋजु है, जो वासना के संकल्प का छेदन करता है, (दचूला २।९,१०) जो परिचय का त्याग करता है, जो काम-भोगों की साधु गृहस्थ का वैयावृत्य न करे, अभिवादन, वंदन अभिलाषा को छोड़ चुका है, जो तप आदि का परिचय और पूजन न करे । मुनि संक्लेश रहित साधुओं के साथ दिए बिना भिक्षा की खोज करता है, जो अप्रतिबद्ध रहे जिससे कि चारित्र की हानि न हो। विहार करता है वह भिक्षु है। यदि कदाचित् अपने से अधिक गुणी अथवा अपने गृहस्थों के घर से जो कुछ आहार, पानक और समान गुण वाला निपुण साथी न मिले तो पाप-कर्मों का विविध प्रकार के खाद्य-स्वाद्य प्राप्त कर जो गृहस्थ की वर्जन करता हआ काम-भोगों में अनासक्त रह अकेला ही मन, वचन और काया से अनुकम्पा नहीं करता- उन्हें (संघ-स्थित विहार करे। आशीर्वाद नहीं देता. जो मन, वचन और काया से : २. श्रमण (अनगार) के सत्ताईस गुण सुसंस्कृत होता है - वह भिक्ष है। वयछक्कमिदियाणं च निग्गहो भाव करणसच्चं च । जो लोक में विविध प्रकार के वादों को जानता है, खमया विरागयाविय (चिय?) मणमाईणं णिरोहो य । जो सहिष्णु है, जो संयमी है, जिसे आगम का परम अर्थ प्राप्त हुआ है, जो प्राज्ञ है, जो परीषहों को जीतने वाला कायाण छक्क जोगम्मि जुत्तया वेयणाहियासणया । और सब जीवों को आत्म-तुल्य समझने वाला है, जो तह मारणंतियहियासणया एएऽणगारगुणा ॥ (उशाव प ६१६) उपशान्त और किसी को भी अपमानित न करने वाला श्रमण के सत्ताईस गुण हैं होता है वह भिक्ष है। १. प्राणातिपातविरमण ११. स्पर्शनेन्द्रियनिग्रह तहेव असणं पाणगं वा, २. मृषावादविरमण १२. भावसत्य विविहं खाइमसाइमं लभित्ता। ३. अदत्तादानविरमण १३. करणसत्य होही अट्ठो सुए परे वा, ४ मैथुनविरमण १४. क्षमा तं न निहे न निहावए जे स भिक्ख । ५. परिग्रहविरमण १५. वैराग्य हत्थसंजए पायसंजए, - वायसंजए संजइंदिए। ६. रात्रिभोजनविरमण १६. मनोनिग्रह अज्झप्परए सुसमाहियप्पा, ७. श्रोत्रेन्द्रियनिग्रह १७. वचननिग्रह सुत्तत्थं च वियाणई जे स भिक्खू ॥ ८. चक्षुरिन्द्रियनिग्रह १८. कायनिग्रह (द १०८, १५) ९. घ्राणेन्द्रियनिग्रह १९. पृथ्वीकायसंयम विविध अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य को प्राप्त कर १०. रसनेन्द्रियनिग्रह २०. अप्कायसंयम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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