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________________ अगमिकश्रुत अंगुल गुलाण, तं एवं सहस्सगुणं भवति । (अनुचू पृ ५६) एएसि णं सेढीअंगुल-पयरंगुल-घणंगुलाणं कयरे भरत चक्रवर्ती का एक आत्मांगुल एक प्रमाणांगुल कयरेहितो अप्पे वा बहुए वा तुल्ले वा विसेसाहिए वा? के समान था। उनका शरीर अपने आत्मांगुल से सव्वत्थोवे सेढीअंगुले, पयरंगुले असंखेज्जगुणे, घणंगुले १२० अंगुल का था। उत्सेध अंगुल से वे ५०० धनुष असंखेज्जगुणे। (अनु ४११,४१२) के थे। एक धनुष ९६ अंगुल के समान होता है। प्रमाण अंगुल के तीन प्रकार हैं---- ५०० धनुष के ४८००० अंगुल होते हैं। श्रेणी अंगुल, प्रतर अंगुल और घन अंगुल । १ धनुष-९६ अंगुल असंख्य कोडाकोड़ योजन की एक श्रेणी होती है। ५०० धनुष=५००४९६-४८००० अंगुल श्रेणी को श्रेणी से गणित करने पर प्रतर और प्रतर को भरत चक्रवर्ती आत्मांगुल (प्रमाणांगुल) से १२. श्रेणी से गुणित करने पर लोक होता है। अंगल के थे और उत्सेध अंगुल से ४८००० अंगुल के लोक को संख्येय से गणित करने पर संख्येय लोक थे। इसलिए एक प्रमाणांगुल ४८०००१२०-४०० और असंख्येय से गणित करने पर असंख्येय लोक होते उत्सेध अंगुल का होता है। उत्सेधांगुल का बाहल्य हैं। (मोटाई) २३ अंगुल होता है। इसलिए ४००४२३= इन श्रेणी अंगुल, प्रतर अंगुल और घन अंगुल में १००. अंगुल हो गए। १००० उत्सेध अंगुल का एक कौन किससे अल्प, अधिक, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? प्रमाणांगुल जो माना है, वह बाहल्य (मोटाई) की अपेक्षा श्रेणी अंगुल सबसे छोटा है, प्रतर अंगुल उससे से है। असंख्येय गुना है, और घन अंगुल उससे असंख्येय गुना प्रमाणांगुल का प्रयोजन एएणं पमाणंगुलेणं पुढवीणं कंडाणं पातालाणं भव अंतःशल्यमरण-मरण का एक भेद। द्र. मरण) णाणं भवणपत्थडाणं निरयाणं निरयावलियाणं निरय- अतकृतदशा--जैन आगम, आठवां अंग। पत्थडाणं कप्पाणं विमाणाणं विमाणावलियाणं (द्र. अंगप्रविष्ट) विमाणपत्थडाणं टंकाणं कूडाणं सेलाणं सिहरीणं पब्भाराणं अंतरायकर्म-आत्मशक्ति के विकास और प्रयोग विजयाणं वक्खाराणं वासाणं वासहराणं पव्वयाणं वेलाणं में बाधा डालने वाला कर्म । वेइयाणं दाराणं तोरणाणं दीवाणं समूहाणं आयाम " (द्र. कर्म) विक्खंभ-उच्चत्त-उव्वेह-परिक्खेवा मविज्जति । अंतपिज-अंतर्वीपों में उत्पन्न होने वाले। (अनु ४१०) (द्र. मनुष्य) इस प्रमाण अंगुल से रत्नप्रभा आदि पृथ्वियां, अतमुहूत्त-दा समय से लेकर अड़तालीस मिनिट रत्नकाण्ड आदि काण्ड, पाताल, भवन, भवन-प्रस्तट, में एक समय कम तक का कालमान । नरक, नरकावलि, नरक-प्रस्तट, कल्प, विमान, (द्र. काल विमान श्रेणी, विमान-प्रस्तट, टंक, कूट, शैल, शिखरी, अकर्मभूमिज-जहां प्राकृतिक साधनों से जीविका प्राग्भार, विजय, वक्षस्कार, वर्ष, वर्षधर पर्वत, वेला, चलाई जाती है, वह अकर्मभूमि वेदिका, द्वार, तोरण तथा द्वीप-समुद्रों की लम्बाई, है । उसमें उत्पन्न होने वाले अकर्मचौड़ाई, ऊंचाई, गहराई और परिधि मापी जाती है। भूमिज कहलाते हैं। (द्र. मनुष्य) प्रमाणांगल के प्रकार अक्रियावाद-(द्र. वाद)। ___ से समासओ तिविहे पण्णत्ते, तं जहा -सेढीअंगुले अक्षरश्रुत-प्रतिपाद्य भावों का अक्षरों के द्वारा पयरंगुले घणंगुले । असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ कथन करना । श्रुतज्ञान का एक भेद । सेढी, सेढी सेढीए गुणिया पयर, पयरं सेढीए गुणियं (द्र. श्रुतज्ञान) लोगो, संखेज्जएणं लोगो गुणितो संखेज्जा लोगा, असंखे- अगमिकश्रुत-असदृश पाठ वाला श्रुत । श्रुतज्ञान ज्जएणं लोगो गुणितो असंखेज्जा लोगा। का एक भेद। (द्र. श्रुतज्ञान) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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