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________________ लोक - अलोक का संस्थान व्यवस्थितो समयपरिभाषया तिर्यग्— [- मध्ये लोकस्तिर्यग्लोकः । अथवा तिर्यक्शब्दो मध्यमपर्याय: । ( अनुमवृप ८० ) लोक के तीन विभाग हैं१. अधोलोक - यह लोक के अधोभाग में व्यवस्थित का परिणमन - । यहां क्षेत्र के प्रभाव प्राय: अशुभ ही होता है । पृथ्वियां अधोलोक में हैं । २. तिर्यक्लोक - यह लोक के मध्य में है । का परिणमन प्रायः मध्यम होता है । ३. ऊर्ध्वलोक - यह लोक के ऊर्ध्व भाग में व्यवस्थित है । शुभ क्षेत्र के कारण यहां द्रव्यों का परिणमन प्रायः शुभ ही होता है सौधर्म से सर्वार्थसिद्ध पर्यंत विमान ऊर्ध्वलोक में (द्र. देव) हैं । लोकस्थिति से द्रव्यों रत्नप्रभा आदि सात ( द्र. नरक ) यहां द्रव्यों ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी ऊर्ध्वलोक में है । खिइवलयदीवसागरन रयविमाणभवणाइसंठाणं । विहाणं ॥ मापट्टा निययं ( द्र. ईषत्प्राग्भारा ) Jain Education International ( आवहावृ २ पृ७४) लोकस्थिति इस प्रकार है ० क्षिति - घर्मा आदि सात तथा ईषत्प्राग्भारा - ये आठ पृथ्वियां हैं। ० वलय - घनोदधि, घनवात और तनुवात । घर्मा आदि सात भूमियों के परिक्षेप के रूप में इक्कीस वलय हैं । • द्वीप - जम्बूद्वीप से स्वयंभूरमण पर्यंत असंख्य द्वीप हैं । • समुद्र - लवणसमुद्र से स्वयंभूरमण पर्यंत असंख्य समुद्र हैं । ० नरक - सीमंतक से अप्रतिष्ठान पर्यंत संख्येय नरकावास हैं । ० विमान - ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के असंख्येय विमान हैं । ० भवन आदि - भवनपति देवों के संख्येय आवास और व्यंतर देवों के असंख्येय नगर हैं । ० व्योमप्रतिष्ठान - आकाश, वायु आदि प्रतिष्ठान । लोकस्थिति के ये प्रकार शाश्वत हैं । का ५६५ এইএ मध्यलोक अधोलोक लोक को संस्थिति For Private & Personal Use Only Ja भ ४ अनुतर लोक - जब ग्रैवेयक - ११ आरण १२ अच्युत -- आनत १०. प्राणत सहस्त्रार 1--6 महाशुक्र ६ भांतक - ५ ब्रह्मलोक ३ सनत्कु४- माहेन्द्र १ सौधर्म २ - ईशान ज्योतिष - न भवनपति --2 शर्कराप्रमा - व्यन्तर -३ बालुकाप्रमा पंकजना धूम उम नमधुन ४. लोक- अलोक का संस्थान हेट्ठा मज्झे उवरि छन्बीझल्लरिमुइंगसंठाणे । लोगो अ ( उ ? ) द्वागारो अ ( उ ? ) द्वखेत्तागिई नेओ । ( आवहावृ २ पृ७३) लोए सुपतिट्ठासंठिते । अलोए सुसिरगोलकसंठिते । ( आवचू २८५) अधोलोक वंशपिटक - ऊर्ध्व आयत तथा ऊपर से कुछ संकरा - के संस्थान वाला है । मध्यलोक www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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