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________________ लोक लोक के विभाग माहेन्द्र और ब्रह्मलोक में पद्मलेश्या और उनसे आगे के धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव--ये कल्पों में शुक्ललेश्या होती है। बादर पृथ्वीकाय, छह द्रव्य हैं। यह षड्द्रव्यात्मक जो है, वही लोक है। अप्काय और प्रत्येक वनस्पतिकाय में प्रारम्भ की चार पंचत्थिकायमइयं लोगमणाइणिहणं जिणक्खायं।.. लेश्यायें, गर्भज मनुष्यों और तिर्यञ्चों में छह लेश्यायें । (आवहावृ २ पृ.७३) तथा शेष जीवों में प्रथम तीन लेश्यायें होती हैं। देखें जहां धर्म, अधर्म, आकाश, पुदगल और जीव-ये पांच अस्तिकाय हों, वह लोक है। लोक अनादि-अनन्त पण्णवणा पद १७) लोक--विश्व, जगत् । योऽसावाकाशास्तिकायः स संपूर्णोऽलोके, लोके तु तस्य देश: प्रदेशाश्च । (आवचू २ पृ ९) १. लोक का निर्वचन आकाशास्तिकाय की सम्पूर्णता अलोक में होती है। * लोक-अलोक : आकाश के भेद (द्र. अस्तिकाय) । लोक में उसके देश और प्रदेश हैं । • लोक-अलोक की परिभाषा २. लोक-अलोक के विभाजन का हेतु २. लोक-अलोक के विभाजन का हेतु तम्हा धम्मा-ऽधम्मा लोयपरिच्छेयकारिणो जुत्तो। ३. लोक के विभाग इहरागासे तुल्ले लोगोऽलोगो त्ति को भेओ? || लोकस्थिति (विभा १८५२) ४. लोक-अलोक का संस्थान धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय ही लोक का विभाजन ५. लोक का प्रमाण करते हैं। अन्यथा लोक और अलोक-दोनों में आकाश ६. लोकाकाश के प्रतर तो समान है। वह विभाजक नहीं होता। ७. रुचकप्रदेश : दिशा-विदिशा का प्रवर्तक लोगविभागाभावे पडिघायाभावओऽणवत्थाओ। ८. दिशा के प्रकार संववहाराभावो संबंधाभावओ होज्जा ।। ९. दिशाओं के संस्थान (विभा १८५३) १०. मनुष्यलोक-समयक्षेत्र लोकविभाग के अभाव में निम्न दोष आते हैं११. असंख्य द्वीप-समुद्र १. अप्रतिघात -लोक और अलोक के विभाग के अभाव १. लोक का निर्वचन में जीव और पुदगल की अप्रतिहत गति होगीलोक्यते-केवलिप्रज्ञया परिच्छिद्यत इति लोकः । गति का प्रतिघात नहीं होगा। (अनुमवृ प ८०) २. अनवस्था-प्रतिघात के अभाव में गति का अवस्थान केवली अपनी प्रज्ञा से जिसे विभागपूर्वक जानते हैं, नहीं होगा। वह लोक है। ३. संबंध अभाव --आकाश अनंत होने से जीव और लोक-अलोक की परिभाषा पुद्गल का सम्बन्ध नहीं होगा। ४. व्यवहार अभाव-सम्बन्ध के अभाव में सुख-दुःख, जीवा चेव अजीवा य, एस लोए वियाहिए। बंध-मोक्ष आदि का व्यवहार नहीं होगा। अजीवदेसमागासे, अलोए से वियाहिए। (उ ३६२) ३. लोक के विभाग • यह लोक जीव और अजीवमय है। जहां अजीवदेश अहोलोए, तिरियलोए, उड्ढलोए। (अनु १७७) अर्थात् अजीव के चार विभागों में से केवल एक विभाग अधोव्यवस्थितो लोकोऽधोलोकः, अथवा अधःशब्दोआकाश ही है, उसे अलोक कहा गया है। ऽशुभपर्यायः, · तत्र च क्षेत्रानुभावाद् बाहुल्येनाशुभ एव । धम्मो अधम्मो आगासं, कालो पूग्गलजंतवो। परिणामो द्रव्याणां जायते ।" उपरि व्यवस्थापितो लोक: - एस लोगो त्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहि ॥ ऊर्ध्वलोकः । अथवा तत्र च क्षेत्रस्य शुभत्वात्तदनुभावाद् (उ २८७) द्रव्याणां प्राय: शुभा एव परिणामा भवन्ति ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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