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________________ लेश्याओं की स्थिति लेश्या ८. लेश्याओं को स्थिति दस उदही पलिओवम, असंखभागं च उक्कोसा ।। मुहत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीस सागरा मुहुत्तहिया । दस उदही पलियमसंखभागं जहन्निया होइ । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा किण्हलेसाए । तेत्तीससागराइं उक्कोसा, होइ किण्हाए । मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, (उ ३४।४१-४३) दस उदही पलियमसंखभा गमब्भहिया । नारकीय जीवों के कापोत लेश्या की जघन्य स्थिति उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा नीललेसाए । पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागर की मृहुत्तद्धं तु जहन्ना, होती है। तिण्णुदही पलियमसंखभागमभहिया । नील लेश्या की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा काउलेसाए । भाग अधिक तीन सागर और उत्कृष्ट स्थिति पल्योमुहुत्तद्धं तु जहन्ना, पम के असंख्यातवें भाग अधिक दश सागर की होती है। दोउदही पलियमसंखभागमब्भहिया । कृष्ण लेश्या की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा तेउलेसाए । भाग अधिक दश सागर और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस मुहत्तद्धं तु जहन्ना, दस होंति सागरा मुहुत्तहिया। सागर की होती है। उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा पम्हलेसाए ॥ भवनपति-व्यंतर-लेश्या-स्थिति मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीस सागरा मुहुत्तहिया ।। उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा सुक्कलेसाए । दस वाससहस्साई, किण्हाए ठिई जहन्निया होइ । (३४.३४-३९) पलियमसंखिज्जइमो, उक्कोसा होइ किण्हाए ॥ कृष्ण लेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्महत और जा किण्हाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया । उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहर्त अधिक तेतीस सागर की होती जहण्णेणं नीलाए, पलियमसंखं तु उक्कोसा ।। जा नीलाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया । नील लेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और जहन्नेणं काऊए, पलियमसंखं च उक्कोसा ।। उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दश (उ ३४।४८-५०) भवनपति और वानव्यन्तर देवों के कृष्ण लेश्या की सागर की होती है। जघन्य स्थिति दश हजार वर्ष और उत्कष्ट स्थिति कापोत लेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहर्त और पल्योपम के असंख्यातवें भाग की होती है। उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन कृष्ण लेश्या की जो उत्कृष्ट स्थिति है, उसमें एक सागर की होती है। समय मिलाने पर वह नील लेश्या की जघन्य स्थिति होती तेजो लेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और है और उसकी उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें उत्कष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो भाग जितनी है। सागर की होती है। नील लेश्या की जो उत्कृष्ट स्थिति है, उसमें एक पद्म लेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहर्त और समय मिलाने पर वह कापोत लेश्या की जघन्य स्थिति उत्कृष्ट स्थिति मुहूर्त अधिक दश सागर की होती है। शुक्ल लेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और . होती है और उसकी उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग जितनी है। उत्कृष्ट स्थिति मुहूर्त अधिक तेतीस सागर की होती है । (भवनपति देवों की जघन्य स्थिति दश हजार नरक-लेश्या-स्थिति वर्ष की और उत्कृष्ट स्थिति सातिरेक एक सागर दस वाससहस्साई, काऊए ठिई जहन्निया होइ । की है। वानव्यंतर देवों की जघन्य स्थिति दश तिण्णदही पलिओवम, असंखभागं च उक्कोसा ॥ हजार वर्ष की और उत्कृष्ट स्थिति एक पल्पोपम तिण्ण दही पलियमसंखभागा जहन्नेण नीलठिई। की है । अतः प्रस्तुत श्लोक में जो उत्कृष्ट स्थिति है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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