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________________ लेश्या लेश्याओं का स्पर्श अयसीपुप्फसंकासा, कोइलच्छदसन्निभा । त्रिकटु-सूठ, पिप्पल और कालीमिर्च तथा गजपारेवयगीवनिभा, काउलेसा उ वण्णओ ।। पीपल का रस जैसा तीखा होता है, उससे भी अनन्त हिंगुलुयधाउसंकासा, तरुणाइच्चसन्निभा । गुना तीखा रस नीललेश्या का होता है। सुयतुंडपईवनिभा, तेउलेसा उ वण्णओ ।। कच्चे आम और कच्चे कपित्थ का रस जैसा कसैला हरियालभेयसंकासा, हलिहाभयसंनिभा । होता है, उससे भी अनन्त गूना कसैला रस कापोत लेश्या सणासणकुसुमनिभा, पम्हलेसा उ वण्णओ। का होता है। पके हुए आम और पके हए कपित्थ का रस संखककुंदसंकासा, खीरपूरसमप्पभा । जैसा खट-मीठा होता है, उससे भी अनन्त गुना खटरययहारसकासा, सुक्कलेसा उ वण्णओ ।। (उ ३४॥४-९) मीठा रस तेजोलेश्या का होता है। कृष्ण लेश्या का वर्ण स्निग्ध मेघ, महिष, द्रोण प्रधान सुरा, विविध आसवों, मधु और मैरेयक काक, खञ्जन, अञ्जन व नयनतारा के समान होता है। मदिरा का रस जैसा अम्ल-कसैला होता है, उससे भी नील लेश्या का वर्ण नीलअशोक, चाष पक्षी के परों अनन्त गुना मीठा, मधुर और अम्ल-कसैला रस पद्मऔर स्निग्ध वैडूर्य मणि के समान होता है। लेश्या का होता है। ___ खजूर, दाख, क्षीर, खांड और शक्कर का रस जैसा कापोत लेश्या का वर्ण अलसी के पुष्प, तैल-कंटक मीठा होता है, उससे भी अनन्त गुना मीठा रस शुक्ल व कबूतर की ग्रीवा के समान होता है। लेश्या का होता है। तेजोलेश्या का वर्ण हिंगुल, धातु-गेरु, नवोदित सूर्य, ६. लेश्याओं की गंध तोते की चोंच, प्रदीप की लौ के समान होता है । जह गोमडस्स गंधो, सुणगमडगस्स व जहा अहिमडस्स । ___ पदम लेश्या का वर्ण भिन्न हरिताल, भिन्न हल्दी, एत्तो वि अणंतगुणो, लेसाणं अप्पसत्थाणं ।। सण और असन के पुष्प के समान होता है। जह सुरहिकुसुमगंधो, गंधवासाण पिस्समाणाणं । शुक्ल लेश्या का वर्ण शंख, अंकमणि, कुंदपुष्प, दुग्ध एत्तो वि अणतगुणो, पसत्थलेसाण तिण्हं पि ।। प्रवाह, चांदी व मुक्ताहार के समान होता है । (उ ३४.१६,१७) ५. लेश्याओं का रस गाय, श्वान और सर्प के मृत कलेवर की जैसी गन्ध होती है, उससे भी अनन्त गुना गन्ध तीनों अप्रशस्त जह कडुयतुंबगरसो, निबरसो कडुयरोहिणिरसो वा । लेश्याओं की होती है। एत्तो वि अणंतगुणो, रसो उ किण्हाए नायव्वो ॥ सुगन्धित पुष्पों और पीसे जा रहे सुगन्धित पदार्थों जह तिगडयस्स य रसो,तिक्खो जह हथिपिप्पलीए वा। की जैसी गंध होती है, उससे भी अनन्त गूना गंध तीनों एतो वि अणंतगुणो, रसो उ नीलाए नायव्वो ॥ प्रशस्त लेश्याओं की होती है। जह तरुणअंबगरसो, तुवरकविट्ठस्स वावि जारिसओ । ७. लेश्याओं का स्पर्श एत्तो वि अणंतगुणो, रसो उ काऊए नायव्वो॥ जह करगयस्स फासो, गोजिब्भाए व सागपत्ताणं । जह परिणयंबरसो, पक्ककविद्वस्स वावि जारिसओ । एत्तो वि अणंतगुणो, लेसाणं अप्पसत्थाणं ।। एत्तो वि अणंतगुणो, रसो उ तेऊए नायव्वो ॥ जह बरस्स व फासो, नवणीयस्स व सिरीसकुसुमाणं । वरवारुणीए व रसो, विविहाण व आसवाण जारिसओ। एत्तो वि अणंतगुणो, पसत्थलेसाण तिण्हं पि ॥ महमेरगस्स व रसो, एत्तो पम्हाए परएणं ।। (उ ३४६१८,१९) खज्जरमुद्दियरसो, खीररसो खंडसक्कररसो वा । __ करवत, गाय की जीभ और शाक वृक्ष के पत्रों का एत्तो वि अणंतगुणो, रसो उ सुक्काए नायव्वो ।। स्पर्श जैसा कर्कश होता है, उससे भी अनंत गुना कर्कश (उ ३४११०-१५) स्पर्श तीनों अप्रशस्त लेश्याओं का होता है। कडुवे तुम्बे, नीम व कटुक रोहिणी का रस जैसा बूर, नवनीत और शिरीष के पुष्पों का स्पर्श जैसा कड़वा होता है, उससे भी अनन्त गुना कड़वा रस कृष्ण मृद्र होता है, उससे अनन्त गूना मृदू स्पर्श तीनों प्रशस्त लेश्या का होता है। लेश्याओं का होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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