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________________ लेश्या की परिभाषा लेश्या यह सद्भाव है ---तीर्थकर द्वारा प्रतिपादित वास्तविक | १०. लेश्यापरिणामों के प्रकार सचाई है। जो इसे नहीं जानते, वे चारित्र का नाश कर | ११. लेश्यापरिणति और मृत्यु देते हैं। १२. श्रुत आदि सामायिक और लेश्या लिंग का मूल्य १३. लेश्या के स्थान सक्के देविदे देवराया आगओ भणति-दवलिंग * लेश्या और ध्यान (द्र. ध्यान) ___ * चित्त का एक नाम लेश्या पडिवज्ज, जाहे निक्खमणमहिमं करेमि । ततो तेण पंच (द्र. आत्मा) मट्रिओ लोओ कओ । देवरायाए रओहरणपडिग्गहादि १. लेश्या की परिभाषा उवकरणमुवणीयं । (आवमवृ प २४६) । कृष्णादिद्रव्यसाचिव्यात्, परिणामो य आत्मनः । . चक्रवर्ती भरत को आदर्शगृह में केवलज्ञान उत्पन्न स्फटिकस्येव तत्रायं, लेश्याशब्दः प्रयुज्यते ।। होने पर देवेन्द्र ने उपस्थित होकर भरत से कहा-आप (उशावृ प ६५६) द्रव्यलिंग (मुनि का वेश) धारण करें, जिससे हम आपका कृष्ण आदि छह प्रकार के पुद्गल द्रव्यों के सहयोग निष्क्रमण महोत्सव मना सकें । भरत ने पंचमुष्टि लोच से स्फटिक के परिणमन की तरह होने वाला आत्मकिया, तब देवेन्द्र ने रजोहरण, प्रतिग्रह आदि उपकरण परिणाम लेश्या है । उपहृत किये। कायाद्यन्यतमयोगवतः कृष्णादिद्रव्यसंबंधादात्मनः कृष्णादिपरिणामाः। (आवमवृ प ४०) लेश्या- भावधारा। भावधारा की उत्पत्ति में काय, वचन और मन-इनमें से किसी भी योग हेतुभूत पुद्गल द्रव्य। वाले प्राणी के कृष्ण आदि द्रव्य के संबंध से होने वाले १. लेश्या की परिभाषा आत्मा के कृष्ण आदि परिणाम लेश्या है। ० कर्मद्रव्य लेश्या लेस्सत्ति--रस्सीयो (नन्दीच पृ४) ० नोकर्म जीवद्रव्य लेश्या : आभामंडल लेश्या का अर्थ है रश्मि । • अजीव द्रव्य लेश्या ('रस्सी' का संस्कृत रूप बनता है...रश्मि । रस्सी २. लेश्या और योग देशी शब्द भी है । उसका अर्थ है रज्जु । भावधारा को ३. लेश्या के प्रकार रश्मि और रज्जु दोनों रूपों से अंकित किया जा सकता ० अप्रशस्त-प्रशस्त लेश्या है। हमारे परिणाम तेजस शरीर से प्रभावित होकर ० विशुद्ध लेश्या विद्युतीकरण को प्राप्त कर इस स्थूल शरीर-औदारिक ४. लेश्याओं का वर्ण और वैक्रिय शरीर में संक्रांत होते हैं।) ५. लेश्याओं का रस लेण्याभिरात्मनि कर्माणि संश्लिष्यन्ते। योगपरिणामो ६. लेश्याओं की गंध लेस्या। (आवचू २ पृ ११२) ७. लेश्याओं का स्पर्श योगपरिणाम लेश्या है । लेश्या के द्वारा कर्मपुद्गलों ८. लेश्याओं की स्थिति का आत्मा के साथ संश्लेष होता है। ० नरक-लेश्या-स्थिति सयोगिकेवली शुक्ललेश्यापरिणामेन विहृत्यान्तमहत्त • भवनपति-ध्यंतर-लेश्या-स्थिति शेषे योगनिरोधं करोति, ततोऽयोगित्वमलेश्यत्वं च • वैमानिक-लेश्या-स्थिति प्राप्नोति, अतोऽवगम्यते योगपरिणामो लेश्या । ० तियंच-मनुष्य-लेश्या-स्थिति (उशावृ प ६५०) ९. लेश्याओं के परिणाम सयोगीकेवली में शुक्ल लेश्या होती है। वे अंतर्मुहूर्त ० जम्बूखादक का दृष्टांत आयु शेष रहने पर योगनिरोध करते हैं, तत्पश्चात् वे ० ग्रामवध का दृष्टांत अयोगी और अलेश्यी हो जाते हैं। इससे जाना जा सकता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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