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________________ लब्धि ५४८ जंघाचारण लब्धि विौषधि लम्धि कारित्वात् चक्षुरूपतामापन्नं, चक्षरपि श्रोत्रकार्यकारिवि ओसहिसामत्थजुत्तत्तण विप्पोसही भन्नति । त्वात् तद्रूपतामापन्नमित्येवं संभिन्नानि यस्य परस्परबिप्पोसधी य रोगाभिभूत अप्पाणं वा परं वा छिवत्ति तं मिन्द्रियाणि स संभिन्नश्रोता: । (आवमव प ७८) तक्खणा चेव ववगयरोगायंकं करेति । (आवचू १ पृ६८) श्रोत का अर्थ है-इन्द्रियां । संभिन्न का अर्थ हैजिसका मल औषधि-सामर्थ्य से यक्त हो जाता है. परस्पर एकरूप हो जाना । जैसे श्रोत्र चक्ष का कार्य वह विघुट् औषधि लब्धि सम्पन्न होता है। उसके मल के करने पर वह चक्षुरूप हो जाता है और चक्षु भी श्रोत्र स्पर्श से रोगाभिभूत व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है। का कार्य करने पर श्रोत्ररूप हो जाता है । इस प्रकार जिसकी इन्द्रियां परस्पर एकरूप हो जाती हैं, वह संभिन्नश्रोत लब्धि संभिन्नश्रोता है। जो सुणइ सव्वओ मुणइ सव्वविसए व सव्वसोएहिं ।। सर्व-औषधि लब्धि सुणइ बहुए व सद्दे भिन्ने संभिन्नसोओ सो॥ सव्वोसधी नाम सब्वाओ ओसधीओ आमोसधि (विभा ७८३) मादीयाओ एगजीवस्स चेव जस्स समुप्पण्णाओ स सम्वोजो सर्वतः सुनता है, सब श्रोतों-इन्द्रियों से सब सधी भन्नति । अहवा सव्वसरीरेण सव्वसरीरावयवेहिं विषयों को जानता है अथवा एक साथ अनेक प्रकार के वा खेलोसधिमादीहि जो ओसहिसामथजत्तो सो सव्वोशब्दों को भिन्न-भिन्न रूप में (अपने-अपने गुणधर्मों के । सधी भन्नति अहवा सव्ववाहीणं जो निग्गहसमत्थो सो अनुरूप) सुन लेता है, वह संभिन्नश्रोता है। सम्वोसधी भन्नति । (आवचू १ पृ ६८, ६९) संभिन्नसोयरिद्धी नाम जो एगतरेणवि शरीरदेसेण जिस किसी एक व्यक्ति में आमषिधि आदि सर्व पंचवि इंदियविसए उवलभति सो संभिन्नसोयत्ति औषधि से संबद्ध लब्धियां उत्पन्न हो जाती है, वह सर्वभन्नति । संभिन्नसोतो णाम जति बारसजोयणचक्कवट्टि- औषधिलब्धि संपन्न कहलाता है। खंधावारे जमग-समग बोल्लेज्जा सव्वेसि पत्तेयं पत्तेयं . अथवा जो पुरे शरीर से या शरीर के सभी अवजाणति । एगेण वा इदिएणं पंचवि इंदियत्थे उवलभति। यवों से श्लेष्मौषधि आदि से औषधियों का सामर्थ्य प्राप्त अहवा सम्वेहि अंगोवंगेहि। अहवा चक्कवट्टिखंधावारे कर लेता है. वह सषिधि है। सव्वतराणं विसेसं उवलभति । एस संभिन्नसोओ भन्नति । ० अथवा जो सभी व्याधियों का निग्रह करने में (आवच १६८, ७०) समर्थ होता है वह सओषधिलब्धि सम्पन्न कहलाता है। • जो शरीर के किसी एक भाग से पांचों इन्द्रिय चारण लब्धि विषयों को जान लेता है, वह संभिन्नश्रोता है। अतिशयवद्गमनागमनरूपाच्चारणाच्चारणाः सातिजो बारह योजन विस्तृत चक्रवर्ती की सेना में एक शयगमनाऽऽगमनल ब्धिसम्पन्ना: साधुविशेषा एव । साथ बोले जाने वाले नाना प्रकार के शब्दों को एक साथ (विभामवृ १ पृ ३२२) सुनकर पृथक्-पृथक् जान लेता है, वह संभिन्नश्रोता है। अतिशायी गमन और आगमन की क्षमता चारण० जो किसी एक इन्द्रिय से पांचों इन्द्रियविषयों को लब्धि है। अतिशायी गमनागमन की शक्ति से सम्पन्न जान लेता है, वह संभिन्नश्रोता है । विशिष्ट साधु ही होते हैं । ० जो अंग-उपांगों से सभी इन्द्रिय-विषयों को ते च द्विधा-जंघाचारणा विद्याचारणाश्च । जानता है, वह संभिन्नश्रोता है। . (नन्दीमव प १०६) • जो चक्रवर्ती की सेना में एक साथ सुनाई देने चारण के दो प्रकार हैं-जंघाचारण और विद्यावाली सभी वाद्यों की ध्वनियों को पृथक-पृथक जान लेता चारण। है, वह संभिन्नश्रोता है। जंघाचारण लब्धि श्रोतांसि --इन्द्रियाणि, संभिन्नानि-परस्परत ये चारित्रतपोविशेषप्रभावतः समुद्भूतगमनविषयएकरूपतामापन्नानि यस्य स तथा, श्रोत्रं चक्षुःकार्य- लब्धिविशेषास्ते जङ्घाचारणाः। (नन्दीमवृ प १०६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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