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________________ (दअचू पृ८५) शक्याः । लब्धि के सतरह प्रकार ५४७ लब्धि ६. रात्रिभोजन के द्रव्य, क्षेत्र... अभ्यास से प्राप्त या गुणहेतुक शक्तिविशेष को रातीभोयणे चउविहे पण्णते, तं जहा—दव्वतो लाब्ध कहत ह । खेत्ततो कालतो भावतो। दव्वतो असणे वा पाणे वा लब्धिरिति यः अतिशयः, स तावल्लब्धिरहितखादिमे वा सादिमे वा । खेत्ततो समयखेत्ते । कालतो सामान्यजीवेभ्यो विशेष उच्यते । ते च विशेषाः कर्मक्षयराती । भावतो तित्ते वा कडुए वा कसाए वा अंबिले वा क्षयोपशमादिवैचित्र्याज्जीवानामपरिमिता: संख्यातुममहरे वा लवणे वा। (विभामवृ १ प ३२८) रात्रिभोजन के चार प्रकार हैं लब्धि का अर्थ है वे अतिशय, जो कर्मों के क्षय, द्रव्यत'--अशन, पान, खादिम, स्वादिम । क्षयोपशम आदि से उत्पन्न होते हैं । वे अपरिमित हैं। क्षेत्रतः-समयक्षेत्र। उनकी गणना संभव नहीं है। कालतः-रात्रि। २. लब्धि के सतरह प्रकार भावतः--तिक्त, कटु, कषैला, खट्टा, मधुर अथवा "इड्ढी एसा (ओही) वण्णिज्जइ त्ति तो लवण रस । सेसियाओऽवि ।। रुचि-यथार्थ तत्त्वश्रद्धा। (द्र. सम्यक्त्व) आमोसहि विप्पोसहि खेलोसहि जल्लमोसही चेव । रौद्रध्यान-हिंसा, असत्य, चोरी और विषयभोगों संभिन्नसोउज्जुमइ, सम्वोसहि चेव बोद्धव्वो ॥ की रक्षा के निमित्त होने वाली चारणआसीविस केवली य मणनाणिणो य पुव्वधरा । चिन्तन की एकाग्रधारा । (द्र. ध्यान) अरहंतचक्कवट्टी, बलदेवा वासुदेवा य । (आवनि ६८-७०) लब्धि-ऋद्धि, योगज विभूति । लब्धि के सतरह प्रकार ये हैं१. लब्धि की परिभाषा १. अवधिज्ञान १०. आशीविष २. लन्धि के सतरह प्रकार २. आमर्ष-औषधि ११ केवली . आमर्ष-औषधि आदि लब्धिय ३. विपुडौषधि १२. मनःपर्यवज्ञानी ३. लब्धि के बीस प्रकार ४. श्लेष्मौषधि (विपुलमति) • कोष्ठबुद्धि आदि लब्धियां ५. जल्लौषधि १३. पूर्वधर ४. अन्य लब्धियां ६. संभिन्नश्रोत १४. तीर्थंकर • तेजोलब्धि ७. ऋजुमति (मनःपर्यवज्ञान) १५. चक्रवर्ती ० पुलाकलब्धि ८. सर्व-औषधि १६. बलदेव ० आकाशगामी विद्या ९. चारण १७. वासुदेव • घतानवलब्धि आमर्ष-औषधि ० व्यञ्जनलन्धि संफुरिसणमामोसो.......। (विभा ७८१) ० गन्धौषधि आमोसधी नाम रोगाभिभूतं अत्ताणं परं वा जं चेव ५. लन्धि का अधिकारी तिगिच्छामित्ति संचितेऊण आमसति तं तक्खणा चेव ६. लब्धि और साकारोपयोग ववगयरोगातंकं करोति, सा य आमोसधीलद्धी सरीरेगदेसे ७. लब्धि और औदयिक आदि भाव वा सम्वसरीरे वा समुप्पज्जतित्ति । (आवच १ पृ६८) ८. लब्धियों की निष्पत्ति आमर्ष का अर्थ है-स्पर्श करना । आमर्ष-औषधि९. मनःपर्यव लब्धि आदि बारह बातों का विच्छेद लब्धि सम्पन्न व्यक्ति 'मैं चिकित्सा करता हूं'-ऐसा * अवधिज्ञान आदि क्षयोपशम लन्धि (द्र. ज्ञान) संकल्प कर स्वयं का या दूसरे रोगी का स्पर्श करता है १. लब्धि की परिभाषा तो उस स्पर्श से रोगी तत्काल रोग तथा आतंक से मुक्त गुणप्रत्ययो हि सामर्थ्य विशेषो लब्धिः । हो जाता है । यह आमषिधिलब्धि शरीर के किसी एक (आवमवृ प ७९) भाग में अथवा पूरे शरीर में उत्पन्न हो सकती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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