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________________ दशवका लिक..... कल्पावतं सिका सोहमीसा कप्पे जे कप्पविमाणा ते कप्पवडेंसया ते वण्णिता, तेसु य देवीओ जा जेण तवोविसेसेण ववण्णा तावण्णिता, ताओ य कप्पवडेंसिया भणिया । ( नन्दीच पृ ६० ) सौधर्म और ईशान कल्प में जो कल्पविमान हैं, वे कल्पावतंसक कहलाते हैं । तप-विशेष के कारण वहां उत्पन्न होने वाली देवियों का वर्णन जिस अध्ययन में है, उस अध्ययन का नाम कल्पावतंसिका है । पुष्पिका संजमभावविगसितो पुफितो, संजमभाववितोsवपुष्पितो, अगारभावं परिद्ववेत्ता पव्वज्जाभावेण विगसितो पच्छा सीयइ जो, तस्स इहभवे परभवे य विलंबणा दंसिज्जइ जत्थ ता पुफिया । ( नन्दीचू पृ ६० ) जो संयमभावना से विकसित है, वह पुष्पित है । संयम भाव से च्युत होने वाला अवपुष्पित है । जो गृहस्थ भाव को छोड़कर प्रव्रजित हो गया, पश्चात् प्रव्रज्याभाव में उदासीन हो गया, उसकी इस भव और परभव संबंधी विडम्बना जिसमें वर्णित है, वह पुष्पिका सूत्र है । वृष्णिदशा arrafort जे कुले ते अंधगसद्दलोवातो वहिणो भगिया । तेसि चरियं गती सिज्झणा य जत्थ भणिता ता वहिदसातो । दस त्ति अवस्था अज्झयणा वा । I ( नन्दीच पृ ६० ) अंधक और वृष्णिये दो कुल हैं । अंधकवृष्णिइस पद में अंधक का लोप कर वृष्णि कुल गृहीत है । इस कुल में उत्पन्न होने वालों के चारित्र, गति, सिद्धत्व की प्राप्ति आदि अवस्थाओं का वर्णन होने से इस अध्ययन का नाम है वृष्णिदशा । ७. उत्कालिकत की परिभाषा जं कालवेलवज्जं पढिज्जति तं उक्कालियं । (नन्दीचू पृ ५७ ) जिस सूत्र का पठन-पाठन / अध्ययन-अध्यापन काल की मर्यादा में बंधा हुआ नहीं है, वह उत्कालिक सूत्र है । Jain Education International ११ उक्कालियं अणेगविहं पण्णत्तं तं जहा १. दसवेयालियं २. कप्पियाकप्पियं १६. सूरपण्णत्ती १७. पोरिसिमंडलं १८. मंडलपवेसो १९. विज्जाचरणविणिच्छओ ३. चुल्लकप्पयं ४. महाकप्पयं ५. ओवाइयं ६. रायपसेणियं २१. भाणविभत्ती ७. जीवाजीवाभिगमो २२. मरणविभत्ती २०. गणिविज्जा ८. पण्णवणा २३. आय विसोही २४. वीयरागसुयं २५. संलेहणासु २६. विहारकप्पो ९. महापण्णवणा १०. पमायप्पमायं ११. नंदी १२. अणुओगदाराई २७. चरणविही १३. देविदत्थओ १४. तंदुल वेयालियं १५. चंदगविज्भयं उत्कालिक सूत्र अनेक प्रकार का है १. दशवेकालिक २. कल्पिक कल्पिक ३. क्षुल्लक कल्पश्रुत ४. महाकल्पश्रुत ५. औपपातिक ६. राजप्रश्नीय ७. जीवाजीवाभिगम ८. प्रज्ञापना ९. महाप्रज्ञापना १०. प्रमादाप्रमाद ११. नंदी १२. अनुयोगद्वार १३. देवेन्द्रस्तव १४. तन्दुल वैचारिक १५. चन्द्रवेध्यक २८. आउरपच्चक्खाणं २९. महापच्चक्खाणं । अंगबाह्य For Private & Personal Use Only ( नन्दी ७७ ) १६. सूर्य प्रज्ञप्ति १७. पौरुषीमंडल १८. मंडल प्रवेश १९. विद्याचरणविनिश्चय २०. गणिविद्या २१. ध्यानविभक्ति २२. मरणविभक्ति २३. आत्मविशोधि २४. वीतरागश्रुत २५. संलेखना २६. विहारकल्प २७. चरणविधि २८. आतुरप्रत्याख्यान २९. महाप्रत्याख्यान दशवेकालिक रचना का उद्देश्य और निर्ग्रहण .....सो पव्वइओ, पच्छा आयरिया उवउत्ता - केवइ कालं एस जीवति ? जाव छम्मासा, ताहे आयरियाण बुद्धी समुप्पण्णा इमस्स थोवयं आउं कि कायव्वंति ? तं चोदसपुव्वी कहिपि कारणे समुप्पण्णे णिज्जूहइ, दसव्वी पुण अपच्छिमो अवस्समेव णिज्जूहइ । ममंपि www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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