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________________ तव्यतिरिक्त : एकभविक आदि भेद ५०३ मंगल कहा जाता है। दोनों देशों में 'वन्दनवार' को शरीर जीवयुक्त होता है। वर्तमान में सर्वथा आगम मंगल कहा जाता है। यह मंगल अर्थ में रूढ़ रहित होने से यहां 'नो' शब्द सर्वथा निषेधवाची है। शब्द है। शरीर भूत और भावी ज्ञान का कारण होने से यहां स्थापनामंगल-अर्हत्, इन्द्र आदि तथा स्वस्तिक, अक्ष 'नो' शब्द एक देशवाची भी है। आदि आकृतियों की स्थापना करना जाणय-भव्वसरीराइरित्तमिह दव्वमंगलं होइ । स्थापनामंगल है। जा मंगल्ला किरिआ तं कुणमाणो अणुवउत्तो ।। ४. द्रव्यमंगल के भेद (विभा ४६) नोआगमतः द्रव्य मंगल का तीसरा भेद हैदव्वमंगलं दुविहं ---आगमतो णोआगमतो य । ज्ञशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त । इसमें अनुपयुक्त होकर (आवचू १ पृ ५) प्रत्युपेक्षण-प्रमार्जन आदि मांगलिक क्रियाएं की जाती द्रव्य मंगल के दो प्रकार हैं हैं । उपयोगरूप आगम के अभाव में क्रिया करने से यह आगमतः द्रव्यमंगल और नोआगमतः द्रव्यमंगल । नोआगमतः तद्व्यतिरिक्त है। आगमत : द्रव्यमंगल जं भूयभावमङ्गलपरिणामं तस्स वा जयं जोग्गं । आगमओऽणुवउत्तो मंगलसद्दाणुवासिओ वत्ता । जं वा सहावसोहणवन्नाइगुणं सुवण्णाइ ।। तन्नाणलद्धिसहिओ वि नोवउत्तो त्ति तो दव्वं ॥ तं पि य हु भावमंगलकारणओ मंगलं ति निद्दिठं । (विभा २९) नोआगमओ दव्वं नोसद्दो सव्वपडिसेहे ।। एक पुरुष मंगल शब्द से अनुवासित है, उसके अर्थ (विभा ४७,४८) की ज्ञानलब्धि से सम्पन्न है, किन्तु मंगल शब्द के अर्थ में नोआगमतः तद्व्यतिरिक्त के अन्य प्रकारउपयुक्त (दत्तचित्त) नहीं है, वह आगम अथवा ज्ञान की ० अतीत में जिसने चरण-करण आदि क्रियाएं की, अपेक्षा द्रव्यमंगल है। किन्तु वर्तमान में उनसे शून्य है, वह शरीर या नोआगमतः द्रव्यमंगल जीवद्रव्य भी तद्व्यतिरिक्त है। नोआगमतस्त्रिविधं द्रव्यमङ्गलं, तद्यथा-ज्ञशरीर- ० जो मंगलक्रिया करने योग्य शरीर या जीव है, वह द्रव्यमङ्गल भव्यशरीरद्रव्यमङ्गलं ज्ञशरीरभव्यशरीरव्य- भा तद्व्यतिरिक्त है। तिरिक्तम् । (आवडाव १५३) ० जो प्रशस्त गुणसम्पन्न स्वर्ण, रत्न, कलश आदि नोआगमतः द्रव्यमंगल के तीन प्रकार हैं मंगल द्रव्य हैं वे भी तदव्यतिरिक्त हैं। १. ज्ञशरीर द्रव्यमंगल-मंगल शब्द के ज्ञाता का मृत ये सब भावमंगल का कारण होने से द्रव्य मंगल हैं। शरीर। यहां नोआगमतः का अर्थ है-आगम (ज्ञान) का सर्वथा २. भव्यशरीर द्रव्यमंगल-वह शरीर जो मंगल शब्द अभी का ज्ञाता बनेगा। ५. तव्यतिरिक्त : एकभविक आदि भेद ३. तद्व्यतिरिक्त द्रव्यमंगल—भूत और भावी पर्याय जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ता दव्वसंखा से अतिरिक्त केवल क्रियाकारी मंगल । तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-एगभविए बद्धाउए अभिमूहमंगलपयत्थजाणयदेहो भव्वस्स वा सजीवोत्ति । नामगोत्ते य । नोआगमओ दव्वं आगमरहिओ त्ति जं भणि ।। एगभविए''जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अहवा नो देसम्म नोआगमओ तदेगदेसाओ। पुव्वकोडी। भूयस्स भाविणो वाऽऽगमस्स जं कारणं देहो। ____ बद्धाउए""जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी (विभा ४४,४५) तिभागं । मंगल पदार्थ को जानने वाला ज्ञशरीर जीवमुक्त अभिमूह नामगोत्ते "जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं होता है। मंगल पदार्थ को भविष्य में जानेगा, वह भव्य- अंतोमुहत्तं । (अनु ५६८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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