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________________ मंगल भूति के तीन अर्थ हैं-मंगल वृद्धि और रक्षा । जिससे यथार्थ -- सत्य जाना जाता है वह प्रज्ञा है । भूतिप्रज्ञ के तीन अर्थ हैं जिसकी प्रज्ञा मंगलमय होती है। o • जिसकी प्रज्ञा प्रवृद्ध होती है । ० जिसकी प्रज्ञा सब जीवों की रक्षा में है । मंगल - कल्याण, विघ्नविनयन । १. मंगल का निर्वचन २. मंगल के निक्षेप ३. नाममंगल स्थापनामंगल ४. द्रव्यमंगल के ● आगमतः द्रव्य मंगल • नोआगमतः द्रव्य मंगल ५. तद्व्यतिरिक्त एकभविक आदि भेद ६. भावमंगल • उत्कृष्ट मंगल ७. द्रव्यमंगल और भावमंगल में अन्तर ८. मंगल का प्रयोजन * कायोत्सर्ग से अमंगल निवारण * प्रथम मंगल १. मंगल का निर्वचन प्रवृत्त होती Jain Education International ( द्र. कायोत्सर्ग) ( इ. नमस्कार महामंत्र ) ते तयं मंगिएऽधिगम्म जेण हि अहवा मंगो धम्मो तं लाइ मं गालयइ भवाओ मंगलं ।। ( विभा २२,२४) • जिसके द्वारा हित साधा जाता है, वह मंगल है । ● जो मंग धर्म को लाता है, वह मंगल - धर्म के उपादान का हेतु है। जो भव - जन्म मरण को नष्ट कर देता है, वह मंगल है | ५०२ मंगलं होइ । समादते ॥ मक्यतेऽलं क्रियते शास्त्रमनेनेति मंगलम् मन्यते ज्ञायते निश्चीयते विघ्नाभावोऽनेन । माद्यन्ति हृष्यन्ति मदमनुभवन्ति । शेरते विघ्नाभावेन निष्प्रकम्पतया सुप्ता इस जायन्ते । शास्त्रस्य पारं गच्छन्त्यनेनेति । मह्यन्ते पूज्यन्ते ऽनेनेति मङ्गलम् । ( विभामवृपृ२० ) ● जो शास्त्र को अलंकृत करता है, वह मंगल है। नाम मंगल स्थापना मगल ० जिसके द्वारा विघ्न का अभाव जाना जाता है, वह मंगल है | जिससे प्रसन्नता की अनुभूति होती है, वह मंगल है । ● जिससे निश्चितता की अनुभूति होती है, वह मंगल है । • जिससे शास्त्र का सुगमता से पार पाया जाता है, वह मंगल है। • जिससे लोक में पूजा प्राप्त होती है, वह मंगल है । मध्नाति विनाशयति शास्त्रपारगमनविघ्नान् गमयति शास्त्रस्थैर्य, लालयति च तदेव शिष्यप्रशिष्यपरम्परायामिति मङ्गलम् । यद्वा मन्यन्ते अनापायसिद्धि गायन्ति प्रबन्धप्रतिष्ठिति, लान्ति वाऽव्यवच्छिन्नसन्तानाः शिष्यप्रशिष्यादयः शास्त्रमस्मिन्निति मङ्गलम् । ( उशाबू प २) 1 'में' का अर्थ है मयन शास्त्राध्ययन में आने वाले विघ्नों का अपनयन 'ग' का अर्थ है-गमन ( प्राप्ति), शास्त्र का स्थिरीकरण अथवा शास्त्राभ्यास में स्थिरीकरण 'ल' का अर्थ है लालन, शिष्य-प्रशिष्य परम्परा की अव्यवच्छिति । अथवा 'मं' का अर्थ है - अनपाय निर्वाध-सिद्धि की स्वीकृति 'ग' का अर्थ है- प्रबन्ध को प्रतिष्ठित करने का संकल्प । 'ल' का अर्थ है- अविच्छिन्न शिष्यपरम्परा की प्राप्ति । २. मंगल के निक्षेप .....नामाइ चउव्विहं तं च || ( विभा २४ ) मंगल के चार निक्षेप हैं -नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । ३. नाममंगल स्थापनामंगल " जह मंगलमिह नामं जीवाजीवोभयाण देसीओ । रूढं जलणाईणं ठवणाए सोत्थिआई || ( विभा २७ ) जीवस्य यथा- सिन्धुविषयेऽग्नि मंगलमभिधीयते । अजीवस्य यथा श्रीमल्लाटदेशे दवरकवलनक मंगलमभिधीयते । उभयस्य यथा - वन्दनमाला | ( आवहावृ १ पृ ३) नाममंगल किसी पदार्थ का 'मंगल' नाम रखना यथा - सिन्धु देश में अग्नि को मंगल तथा लाट देश में मौली ( दवरक) को मंगल For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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