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________________ भिक्षाचर्या ५०० भिक्षु १. पेटा-पेटा की भांति चतुष्कोण घूमते हुए ३. उद्धृता-अपने प्रयोजन के लिए रांधने के पात्र से (बीच के घरों को छोड़ चारों दिशाओं में समणि में दूसरे पात्र में निकला हआ आहार लेना। स्थित घरों में जाते हुए) मुझे भिक्षा मिले तो लं अन्यथा ४. अल्पलेपा-अल्पलेप वाली अर्थात चना, चिउड़ा नहीं-इस संकल्प से भिक्षा करने का नाम पेटा है। आदि रूखी वस्तु लेना। २. अचपेटा-अर्द्धपेटा की भांति द्विकोण घूमते हुए ५. अवगहीता-खाने के लिए थाली में परोसा हुआ (दो दिशाओं में स्थित गृह-श्रेणि में जाते हुए) मुझे आहार लेना। भिक्षा मिले तो लं अन्यथा नहीं-इस संकल्प से भिक्षा ६. प्रगृहीता-परोसने के लिए कड़छी या चम्मच से करने का नाम अर्द्धपेटा है। निकाला हुआ आहार लेना। ३. गो-मूत्रिका-गो-मूत्रिका की तरह बल खाते हुए ७. उज्झितधर्मा--जो भोजन अमनोज्ञ होने के कारण (बाएं पार्श्व के घरों से दाएं पार्श्व के घरों और दाएं परित्याग करने योग्य हो, उसे लेना। पाव से बाएं पार्श्व के घरों में जाते हुए) मुझे भिक्षा ४. अभिग्रह के प्रकार मिले तो लूं अन्यथा नहीं- इस संकल्प से भिक्षा करने का नाम गो-मूत्रिका है। अभिग्रहाश्च द्रव्यक्षेत्रकालभावविषयाः। तत्र द्रव्या४. पतंगवीथिका - पतंगा जैसे अनियत क्रम से भिग्रहा:-कुन्ताग्रादिसंस्थितमण्डकखण्डादि ग्रहीष्य उडता है, वैसे अनियत क्रम से मझे भिक्षा मिले तो लं इत्यादयः । क्षेत्राभिग्रहा-देहलीजङ्घयोरन्तविधाय यदि अन्यथा नहीं-इस संकल्प से भिक्षा करने का नाम दास्यति ततो ग्राह्यमित्यादयः । कालाभिग्रहाः-सकलपतंगवीथिका है। भिक्षाचरनिवर्तनावसरे मया पर्यटितव्यमित्यादयः । ५. शम्बूकावर्ता- शंख के आवों की तरह भावाभिग्रहास्तु-हसन् रुदन् बद्धो वा यदि प्रतिलाभभिक्षाटन करने को शम्बूकावा कहा जाता है। यिष्यति ततोऽहमादास्ये न त्वन्यथेत्येवमादयः । इसके दो प्रकार हैं-आभ्यन्तर शम्बूकावर्त्ता और बाह्य (उशावृ प ६०७) शम्बूकावर्ता। शंख के नाभि-क्षेत्र से प्रारम्भ होकर द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव संबंधी विविध अभिग्रहों बाहर आने वाले आवर्त की भांति गांव के भीतरी भाग से वृत्ति का संक्षेप किया जाता है। से भिक्षाटन करते हुए बाहरी भाग में आने को . द्रव्य-अभिग्रह-कुन्त के अग्रभाग आदि पर संस्थित 'आभ्यन्तर शम्बूकावर्ता' कहा जाता है। बाहर से रोटी आदि लंगा। भीतर जाने वाले शख के आवर्त की भांति गांव के ० क्षेत्र-अभिग्रह-दाता का एक पैर देहली के भीतर बाहरी भाग से भिक्षाटन करते हुए भीतरी भाग में आने और एक पैर देहली के बाहर होगा तो भिक्षा लूंगा। को 'बाह्य शम्बूकावर्ती' कहा जाता है। ० काल-अभिग्रह-सब भिक्षाचरों के लौटने के समय ६. आयत गत्वा-प्रत्यागता-सीधी सरल गली के भिक्षा के लिए जाऊंगा। अन्तिम घर तक जाकर वापिस आते हए भिक्षा लेने का ० भाव-अभिग्रह-दाता हंसता हुआ, रोता हआ या नाम आयतं गत्वा-प्रत्यागता है। बद्ध अवस्था में देगा तो लूंगा, अन्यथा नहीं। ३. सात प्रकार को एषणा भिक्षु-भिक्षाशील, साधु । संसट्टमसंसट्टा उद्धड तह अप्पलेवडा चेव । ..."भेत्तव्वं । उग्गहिया पग्गहिया उज्झियधम्मा य सत्तमिया । अट्ठविधं कम्मखुहं, तेण णिरुत्तं स भिक्खु त्ति ।। (उशाव ६०७) जं भिक्खमेतवित्ती तेण व भिक्ख""। एषणा के सात प्रकार हैं (दनि २४१,२४३) १. संसृष्टा-खाद्य वस्तुओं से लिप्त हाथ या पात्र से जो आठ प्रकार के कर्मों का भेदन करने में संलग्न देने पर भिक्षा लेना। है, वह भिक्षु है। २. असंसृष्टा–भोजन-जात से अलिप्त हाथ या पात्र जिसकी आजीविका का साधन केवल भिक्षा ही है, ... से देने पर भिक्षा लेना। वह भिक्षु है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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