SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 484
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान् महावीर की एकरात्रिकी प्रतिमा एमेव अहोराई छ भत्तं अपाणयं णवरं । गामणयराण बहिया वग्घारियपाणिए ठाणं ॥ एमेव एगराई अट्टमभत्तेण ठाण बाहिरओ | ईसी पब्भारगए अणिमयदिट्ठी || साहट्टु दोवि पाए वग्घारियपाणि ठायई ठाणं । Saraft लंबियभुओ सेसं दसासु जहा भणियं ॥ ( आवहावृ २ पृ १०५, १०६) पढमसत्तरातिदियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स पारणए आयंबिल परिग्गहिते अचित्ते पोग्गले निज्झायमाणस्स उत्ताणगस्स वा पासल्लियस्स वा सिज्जितस्स वा ठाणं ठातित्तए । ( आवचू २ पृ १२५, १२६) भिक्षु गच्छ से निष्क्रमण कर एकमासिकी भिक्षु प्रतिमा की आराधना करता है। वह शरीर का परिकर्म और सारसंभाल नहीं करता, अलेपकृत् ( रूखा) आहार करता है । वह एषणा (संसृष्टा आदि सात) और गोरा (पेटा आदि आठ) – इनमें से कोई अभिग्रह धारण कर (अमुक द्रव्य अमुक अवस्था में मिले तो लूं, अन्यथा नहीं- - इस संकल्प के साथ) भिक्षा ग्रहण करता है । पहली प्रतिमा एक मास की होती है। इसमें मुनि आहार तथा पानी की एक-एक दत्ति लेता है। इनकी उत्तरोत्तर वृद्धि होती है। सातवीं प्रतिमा में सात-सात दत्तियां लेता है । द्विमासिकी से सप्तमासिकी पर्यंत प्रतिमाएं गच्छ में रहकर की जाती हैं। शेष प्रतिमाएं गांव के बाहर रहकर की जाती हैं । (छप्पकंपि जदि एक्कसि छुब्भति एक्का दत्ती, डोविलयंपि जदि वारे पप्फोडेति तावयियातो दत्तीतो ।) Jain Education International ४३९ ( आवचू २ पृ ३१० ) एक बार में दिया जाने ( एक दत्ति का अर्थ है वाला भक्त अथवा पान ।) आठवीं, नौवीं और दसवीं प्रतिमा सात-सात अहो - रात्र की होती है। आठवीं प्रतिमा में मुनि निर्जल उपवास और पारणे में आयंबिल करता है, अचित्त पुद्गल पर अनिमेष प्रेक्षा करता है तथा उत्तानशयन, पार्श्वशयन, निषद्या आदि आसनों में स्थित रहता है । मुनि नौवीं प्रतिमा में उत्कटुक, लगंडशयन और दंडायतिक आसन तथा दसवीं प्रतिमा में गोदोहिका, वीरासन और आम्रकुब्ज आसन का प्रयोग करता है । शेष विधि आठवीं प्रतिमा की तरह ही है । प्रतिमा ग्यारहवीं अहोरात्रिकी प्रतिमा में मुनि दो दिन के निर्जल उपवास में पैरों को सटाकर, भुजाओं को प्रलम्बित कर कायोत्सर्ग करता है । बारहवीं एकत्रिकी प्रतिमा में मुनि निर्जल उपवास के तीसरे दिन पूरी रात कायोत्सर्ग की मुद्रा में रहता है । उसकी शारीरिक स्थिति इस प्रकार होती है थोड़ा का हुआ शरीर, अनिमेष नयन, दोनों पैर सटे हुए, दोनों हाथ घुटनों की ओर प्रलम्बित । इन प्रतिमाओं में स्थित भिक्षु जिनकल्पी मुनि की भांति व्युत्सृष्ट-त्यक्तदेह होता है तथा देव, मनुष्य और तिर्यंच कृत उपसर्गों को समभाव से सहन करता है। यह सारा प्रसंग दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र की सातवीं दशा में विस्तार से वर्णित है। (बारह भिक्षुप्रतिमाओं तथा ग्यारह उपासकप्रतिमाओं को उपधानप्रतिमा कहा जाता है । जैन साधना पद्धति में प्रतिमाओं का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । आगम साहित्य में भद्रा, सुभद्रा, विवेक, व्युत्सर्ग, यवमध्यचन्द्र वज्रमध्यचन्द्र आदि अनेक प्रकार की प्रतिमाओं का उल्लेख उपलब्ध है । देखें — ठाणं २।२४३२४८ का टिप्पण) एगराइयं णं भिक्खुपडिमं संमं अणणुपालेमाणस्स अणगारस्स इमे तओ ठाणा अहिताए भवंति तं जहा - उम्मायं वा भेज्जा दीहकालियं वा रोगायंक पाउणेज्जा केवलिपण्णत्ताओ धम्माओ वा भंसिज्जा । एगराइयं णं भिक्खुपडिमं सम्मं अणुपालेमाणस्स अणगारस्स इमे तओ ठाणा हिताए जाव आणुगामित्ताए भवंति तं जथाअधिण्णा वा से समुप्पज्जेज्जा, मणपज्जवणाणे वा से समुपज्जेज्जा केवलणाणे वा से असमुप्पण्णपुब्वे समुप्प - ज्जिज्जा । ( आवचू २ पृ १२६, १२७ ) एकरात्रिकी भिक्षुप्रतिमा की सम्यक् अनुपालना नहीं करने वाले मुनि के तीन स्थान अहितकर होते हैंउन्माद की प्राप्ति, दीर्घकालिक रोग- आतंक की उत्पत्ति और केवलिप्रज्ञप्त धर्म से विच्युति । इस प्रतिमा की सम्यक् अनुपालना करने वाले मुनि को अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान अथवा केवलज्ञान उत्पन्न होता है । ४. भगवान् महावीर की एकरात्रिकी प्रतिमा भूमी बहिआ पेढालं नाम होइ उज्जाणं । पोलास चेइयंमी ठिएगराईमहापडिमं ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy