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________________ क्षुधा परीषह अपरीत संसारी दप्युपरिसंसारा वा । अपरीतास्तु साधारणशरीरिणोऽपार्द्ध पुद्गलपरावर्त्ता( आम प ४२) साधारणशरीरी ( अनन्तकायिक वनस्पति ) जीव अपरीत कहलाते हैं । अथवा जिनका संसार - भवभ्रमण अपार्ध पुद्गलपरावर्त्त से भी अधिक अवशेष है, वे जीव अपरीत हैं । १. परीषह का निर्वाचन २. परीषह का प्रयोजन ३. परीषह के प्रकार ४. परीषह और कर्म विपाक ५. परीषह और गुणस्थान १. दिगिछापरीस २. पिवासापरीस हे ३. सीयपरीसहे ४. उणिपरीस ५. दंसमयपरी सहे ६. अचलपरी सहे ७. अरइपरी सहे ८. इत्थी परीसहे परीषह - मुनि जीवन में आने वाले क्षुधा आदि ९. चरियापरीसहे १०. निसीहियापरीसहे ११. सेज्जा१२. अक्कोस परीसहे १३. वहपरी सहे १६. रोग कष्ट । परीस हे १४. जायणापरी सहे १५. अलाभपरीसहे परीसहे १७. तणफासपसहे १९. सक्कारपुरक्कारपरी सहे १८. जलपरी सहे २०. पन्नापरीस हे २१. अन्नाणपरीसहे २२. दंसणपरीसहे । ( उ २ / सूत्र ३) ६. एक साथ कितने परीषह ? ७. परोषहप्रविभक्ति अध्ययन का उत्स ८. परीषह और नय - निक्षेप ० परीषह - कालमान • द्रव्य परीषह : भाव परीषह ४०५ १. परीषह का निर्वचन परीति - समन्तात् स्वहेतुभिरुदीरिता मार्गाच्यवननिर्जरार्थं साध्वादिभिः सह्यन्त इति परीषहाः । ( उशावृप ७२) जो कष्ट मार्ग से अविच्युति और निर्जरा के लिए साधु-साध्वियों द्वारा सहे जाते हैं, वे परीषह हैं । क्षुधा आदि परीषह अपने-अपने हेतुओं से उदीरित होते हैं । २. परीषह का प्रयोजन परिसोढव्वा जइणा मग्गा विच्चुइ- विणिज्जराहेऊ । जुत्ता परीसहा ते खुहादओ होंति बावीसं ।। ( विभा ३००४) च्युत न होने के परीषह शेष बीस परीषह निर्जरा के लिए होते हैं । तत्र मार्गाच्यवनार्थं दर्शनपरीषहः प्रज्ञापरीषहश्च शेषा विंशतिर्निर्जरार्थम् । प्रवचनसारोद्धार पत्र १९२ ) ३. परीषह के प्रकार परीषह सहने के दो प्रयोजन हैं१. मार्गाच्यवन - स्वीकृत मार्ग से लिए । २. निर्जरा -- कर्मों को क्षीण करने के लिए । ( बाईस परीषहों में दर्शन - परीषह और प्रज्ञा - परीषह — ये दो परीषह मार्ग से अच्यवन में सहायक होते हैं और Jain Education International परोषह बाईस हैं १. क्षुधा परीषह २. पिपासा परीषह ३. शीत परीषह ४. उष्ण परीषह ५. दंशमशक परीषह ६. अचेल परीषह ७. अरति परीषह ८. स्त्री परीषह ९. चर्या परीषह १०. निषद्या परीषह ११. शय्या परीषह १३. वध परीषह १४. याचना परीषह १५. अलाभ परीषह १६. रोग परीषह १७. तृण-स्पर्श परीषह १२. आक्रोश परीषह १८. जल्ल परीषह १९. सत्कार- पुरस्कार परीषह २०. प्रज्ञा परीषह २१. अज्ञान परीषह २२. दर्शन परीषह । परीषह के दो विभाग हैं For Private & Personal Use Only wh १. शीत- मन्द परिणाम वाले । शीत परीषह और सत्कार परीषद् - ये दो अनुकूल परीबह हैं । २. उष्ण - तीव्र परिणाम वाले । शेष बीस प्रतिकूल परीषह हैं । (देखें आचारांगनिर्युक्ति २०२, २०३) क्षुधा परीषह दिगिछापरिगए देहे, तवस्सी भिक्खु थामव । न छिदे न छिदावए, न पए न पयावए ॥ कालीपव्वंग संकासे, किसे धमणिसंतए । मायने असणपाणस्स, अदीणमणसो चरे ॥ ( उ २२, ३) देह में क्षुधा व्याप्त होने पर तपस्वी और प्राणवान www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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