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________________ निह्नव गोष्ठामाहिल और अबद्धिकवाद आचार्य ने कहा - वह परिव्राजक वृश्चिक, सर्प आदि ८. गोष्ठामाहिल और अबद्धिकवाद सात विद्याओं में पारंगत है। मैं तुझे इन विद्याओं की ___पंच सया चुलसीया तइया सिद्धि गयस्स वीरस्स । प्रतिपक्षी-मायूरी, नाकूली आदि सात विद्याएं सिखा तो अबद्धियदिट्टी दसउरनयरे समुप्पन्ना ।। देता हैं, जिनसे तु अजेय होगा। (द्र. मंत्रविद्या) दसउरनयरुच्छघरे अज्जरक्खिय पुस पोटशाल को जीतकर रोहगुप्त गुरु के पास आया गोट्ठामाहिल नवमट्टमेसु पुच्छ य विझस्स ।। और कहा- मैं वाद में विजयी बना हूं। सोऊण कालधम्मं गुरुणो गच्छम्मि पूसमित्तं च । परिव्राजक ने 'राशि दो है' - इस पक्ष की स्थापना ठवियं गुरुणा किल गोट्ठमाहिलो मच्छरियभावो । की । मैंने छछंदर की कटी हुई पंछ का उदाहरण देकर वीसु वसहीए ठिओ छिद्दन्नेसणपरो य स कयाए । तीसरी राशि की स्थापना की। विझस्स सुणइ पासेऽणुभासमाणस्स वक्खाणं ।। गुरु ने कहा-जीतकर तुमने यह क्यों नहीं कहा कि न हि कम्म जीवाओ अवेइ अविभागओ पएसोव्व । 'यह अपसिद्धान्त है'। तीसरी नो-जीवराशि नहीं होती। तदणवगमादमुक्खो जुत्तमिणं तेण वक्खाणं । अतः पुनः परिषद् में जाकर कहो-यह हमारा सिद्धान्त पुट्ठो जहा अबद्धो कंचुइणं कंचुओ समन्नेइ । नहीं है किन्तु मैंने उसे बुद्धि से पराभूत कर, शान्त किया एवं पुटुमबद्धं जीवं कम्म समन्नेइ ।। है। (विभा २५०९-२५१२, २५१६, २५१७) गुरु के समझाने पर वह बोला--अपसिद्धान्त क्या वीरनिर्वाण के ५८४ वर्ष व्यतीत होने पर दशपुर है ? जीव का देश यदि नो-जीव होता हो तो इसमें क्या नगर में अबद्धिकवाद की उत्पत्ति हई। दोष है ? दशपुरनगर के इक्षुगृह में आर्यरक्षित घृतपुष्यमित्र, __ आचार्य के बहुत समझाने पर भी उसने स्वीकार वस्त्रमित्र, दुर्बलिकापुष्यमित्र, गोष्ठामाहिल आदि शिष्यों नहीं किया, तब आचार्य ने सोचा-यह स्वयं नष्ट होकर के साथ विराजमान थे। गण का दायित्व दुर्बलिकापुष्यदूसरे व्यक्तियों को भी नष्ट करेगा। मैं लोगों के समक्ष मित्र को देकर आर्यरक्षित कालधर्म को प्राप्त हुए । राजसभा में इसका निग्रह करूंगा, जिससे लोगों का इस दुर्बलिकापुष्यमित्र को गण का आचार्य जानकर गोष्ठापर विश्वास नहीं रहेगा और मिथ्या तत्त्व का प्रचार माहिल मात्सर्यभाव को प्राप्त हुआ। भी रुक जाएगा। वह पृथक् वसति में स्थित होकर दोषों को खोजने राजा बलश्री के समक्ष चर्चा प्रारम्भ हुई। चर्चा लगा। एक दिन व्याख्यानमण्डली में विन्ध्य द्वारा करते हुए छह मास व्यतीत हो गए। राजा ने कहा- आठवें कर्मप्रवादपूर्व की तथा नवमें प्रत्याख्यान पूर्व की मेरे राज्य का सारा कार्य अव्यवस्थित हो रहा है। यह व्याख्या को सुनकर वह विप्रतिपत्ति को प्राप्त हुआ। वाद कब तक चलेगा? आचार्य ने कहा-मैंने जान- उसने कहा-कर्म का जीव के साथ तादात्म्य सम्बन्ध होने बूझकर इतना समय बिताया है । मैं कल ही इसका निग्रह पर जीव की प्रदेशराशि की तरह कर्मराशि को जीव से करूंगा। अलग नहीं किया जा सकता। कर्म दूर हुए बिना जीव दूसरे दिन प्रातः वाद प्रारम्भ हुआ। आचार्य ने का मोक्ष नहीं होता। इसीलिए यह कथन उचित है कि कहा-यदि तीन राशि वाली बात सही है तो कुत्रिका- सर्प की कञ्चुकी की तरह कर्म जीव का स्पर्श करते हैं, पण में चलें । वहां सभी वस्तुएं उपलब्ध हैं। उससे बद्ध नहीं होते । यह अबद्धिकवाद है। राजा को साथ ले सभी कुत्रिकापण में पहुंचे। वहां अविभागत्थस्स वि से विमोयणं कंचणोवलाणं व । नो-जीव मांगा। वहां के अधिकारी देव ने कहा-नो नाण-किरियाहिं कीरइ मिच्छत्ताईहिं चायाणं ।। जीव की श्रेणी का कोई पदार्थ विश्व में नहीं है। इस (विभा २५३१) प्रकार आचार्य श्रीगुप्त ने १४४ प्रश्नों के द्वारा रोहगुप्त गुरु ने कहा-मिथ्यात्व आदि के द्वारा गृहीत कर्म का निग्रह कर उसे पराजित किया। (आवश्यकनियुक्ति- जीव के साथ एकीभूत हो जाते हैं। उन अविभक्त कर्मों दीषिका में १४४ प्रश्नों का विवरण प्राप्त है।) को ज्ञान और क्रिया के द्वारा विभक्त किया जा सकता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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