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________________ चारित्र धर्म ३५५ . धर्म है, वह घत से अभिषिक्त अग्नि की भांति परम निर्वाण ५. लोकोत्तर धर्म (समाधि) को प्राप्त होता है। लोउत्तरियो भावधम्मो दुविहो-सुतधम्मो चरित्तजरा जाव न पीलेइ, वाही जाव न वड्ढई। धम्मो य। __(दअचू पृ ११) जाविदिया न हायंति, ताव धम्म समायरे ॥ लोकोत्तर भावधर्म के दो प्रकार हैं-श्रुतधर्म और (द ८।३५) चारित्रधर्म । जब तक बुढ़ापा पीड़ित न करे, व्याधि न बढ़े और ६.श्रुतधम इन्द्रियां क्षीण न हों, तब तक व्यक्ति धर्म का आचरण सुतधम्मो दुवालसंगं गणिपिडगं, तस्स धम्मो जाणिकरे। तव्वा भावा। (दअचू पृ११) ३.धर्म के प्रकार द्वादशांग गणिपिटक में प्रतिपादित भावों को जानना णामं ठवणाधम्मो दव्वधम्मो य भावधम्मो य । श्रुतधर्म है। (द्र. श्रुतज्ञान) (दनि १७) ७. चारित्र धर्म धर्म के चार प्रकार हैं-नाम धर्म, स्थापना धर्म, चरित्तधम्मो दसविहो-खमा महवं अज्जवं सोयं द्रव्य धर्म, भाव धर्म । सच्चं संजमो तवो चातो अकिंचणत्तणं बंभचेरं । द्रव्य धर्म (दअचू पृ ११) चारित्र धर्म के दश प्रकार हैं -- दव्वं च अत्थिकायो पयारधम्मो य... । १. क्षमा ६. संयम दव्वस्स पज्जवा जे ते धम्मा तस्स दव्वस्स ॥ २. मार्दव ७. तप धम्मत्थिकायधम्मो पयारधम्मो य विसयधम्मो य ।.. ३. आर्जव ८. त्याग (दनि १८, १९) ४. शौच ९. अकिंचनता द्रव्य धर्म के तीन प्रकार हैं ५. सत्य १०. ब्रह्मचर्य । १. द्रव्य धर्म-द्रव्य के पर्याय । २. अस्तिकाय धर्म-धर्म आदि अस्तिकायों का सत्य, संयम, तप, ब्रह्मचर्य (द्र. संबद्ध नाम) स्वभाव । क्षमा ३. प्रचार धर्म---इन्द्रियविषयों का स्वभाव । खमा अक्कोसतालणादी अहियासेंतस्स कम्मक्खओ भवति । तम्हा कोहोदयनिरोहो कातव्वो, उदयप्पत्तस्स माव धर्म वा विफलीकरणं । एसा खमत्ति वा तितिक्खत्ति वा लोइय कुप्पावयणिय लोगुत्तरी...॥ कोहनिरोहत्ति वा । (आवचू २ पृ११६) (दनि १९) आक्रोश, ताड़ना आदि को सहन करना क्षमा है। भावधर्म के तीन प्रकार हैं-लौकिक धर्म, कुप्राव इससे कर्मक्षय होता है। क्रोध के उदय का निरोध और चनिक धर्म, लोकोत्तर धर्म । उदयप्राप्त क्रोध का विफलीकरण क्षमा है । क्षमा, तितिक्षा ४. लौकिक-कुप्रावनिक धर्म और क्रोधनिरोध एकार्थक हैं। गम्म पसु देस रज्जे पूरवर गाम गण गोट्रि राईणं । कोहविजएणं खंति जणयइ ।'' (उ २९।६८) सावज्जो उ कुतित्थियधम्मो ण जिणेसं तु पसत्थो । क्रोधविजय से क्षमा उत्पन्न होती है। (दनि २०) क्षमा के परिणाम लौकिक धर्म के प्रकार-गम्यधर्म, पशुधर्म, देशधर्म खमावणयाए णं पल्हायणभावं जणयइ । पल्हायणराज्यधर्म, परवरधर्म, ग्रामधर्म, गणधर्म, गोष्ठीधर्म और भावमुवगए य सव्वपाणभूयजीवसत्तेसु मित्तीभावराजधर्म । मुप्पाएइ । मित्तीभावमुवगए यावि जीवे भावविसोहि कुतीथिकों--कुप्रावचनिकों का धर्म सावद्य-अप्रशस्त काऊण निब्भए भवइ। (उ २९।१८) होता है। जिनेश्वर देव का धर्म प्रशस्त होता है। क्षमा करने से जीव मानसिक प्रसन्नता को प्रात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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