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________________ धर्म ३५४ धर्म को अर्हता दीव के दो प्रकार हैं-आश्वास द्वीप और प्रकाश दीप ।। ६. श्रुतधर्म आश्वास द्वीप के दो भेद हैं ७. चारित्रधर्म-क्षमा आदि १. संदीन द्वीप-यह जलप्लावन आदि से आच्छादित ८. श्रमणधर्म में मूलगुण-उत्तरगुण या नष्ट हो जाता है तथा जीवन को त्राण नहीं ___ * अगारधर्म (द्र. श्रावक) देता। * अनगारधर्म (द्र. महाव्रत) २. असंदीन द्वीप-यह विस्तीर्ण और ऊंचा होता है, ९. धर्म की दुर्लभता अतः जल से आच्छादित या नष्ट नहीं होता तथा जीवन | १०. धर्म मंगल है। को वाण देता है। जैसे-कोंकण देश का द्वीप। • धर्म शरण है क्षायोपशमिक सम्यक्त्व भावसंदीन और क्षायिक * धर्म अनुप्रेक्षा (द्र. अनुप्रेक्षा) सम्यक्त्व भावअसंदीन द्वीप है। | ११. धर्मश्रद्धा के परिणाम पगासदीवो णाम जो उज्जोयं करेति, सो दुविधो- १२. लौकिक और लोकोत्तर उपकार संजोइमो सो तृणपुलकवतिअग्निकर्तृ समवायेन निष्पद्यते, १. धर्म का निर्वचन, परिभाषा असंजोइमो चंदादिच्चमणिमादि ।....."पगासभावदीवोवि दुविहो-विघातिमो संघाइमो य । तत्थ संघातिमो अक्खर- धारेति संसारे पडमाणमिति धम्मो । पदपादसिलोगो गाथाउद्देसगादिसंघातमयं दुवालसंगं (दअचू पृ १) सुतज्ञानं । असंघातिमं केवलनाणं । (उचू पृ ११५) यस्मात् जीवं नरकतिर्यग्योनिकुमानुषदेवत्वेषु प्रपतंतं ___ जो अंधकार में प्रकाश फैलाता है, उसे प्रकाश दीप धारयतीति धर्मः । (दजिचू पृ १५) जो दुर्गति में गिरते हुए प्राणी को धारण करता है, कहा जाता है । उसके दो भेद हैं उसका संरक्षण करता है, वह धर्म है । १. संयोगिम दीप -तैल, वति आदि के संयोग से जो जीव को चतुर्गत्यात्मक जन्म से बचाता है, वह धर्म प्रदीप्त होने वाला दीप। है अर्थात जो मोक्ष का हेतभत है. वह धर्म है। २. असंयोगिम दीप-चन्द्र, सूर्य, मणि आदि । """धत्ते चैतान् शुभे स्थाने तस्माद्धर्म इति स्मृतः ॥ प्रकाशभावदीप के दो प्रकार हैं (नन्दीमवृ प १५) १. संघातिम दीप-अक्षर, पद, पाद, श्लोक, गाथा, जो प्राणियों को शुभ स्थानों-भावों और कार्यों में उद्देशक आदि का संघात द्वादशांग, श्रुतज्ञान । नियोजित करता है, वह धर्म है। २. असंघातिम दीप-केवलज्ञान । असंजमाउ नियत्ती संजमंमि य पवित्ती। (श्रतज्ञान संदीन दीप और केवलज्ञान असंदीन दीप (दजिचू पृ १७) है । देखें-आचारांगवृत्ति पत्र २२४) धर्म का अर्थ है----असंयम से निवृत्ति और संयम में प्रवृत्ति । धर्म-वस्तु का स्वभाव । मोक्ष का उपाय । धम्मो सभावो लक्खणं । (दअचू पृ१०) धर्म का अर्थ है-वस्तु का स्वभाव अथवा लक्षण। १. धर्म का निर्वचन, परिभाषा २. धर्म की अर्हता २. धर्म की अर्हता ३. धर्म के प्रकार सोही उज्जुयभूयस्स, धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई। ० द्रव्य धर्म निव्वाणं परमं जाइ, घयसित्त व्व पावए । ० भाव धर्म (उ ३.१२) ४. लौकिक-प्रावनिक धर्म शूद्धि उसे प्राप्त होती है, जो ऋजुभूत होता है। धर्म ५. लोकोत्तर धर्म उसमें ठहरता है, जो शुद्ध होता है । जिसमें धर्म ठहरता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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