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________________ चतुरिन्द्रिय त्रस के प्रकार त्रीन्द्रिय अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । आयुस्थिति - जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः छह तेइंदियजीवाणं, अंतरेयं वियाहियं ।। मास । (उ ३६।१४१-१४३) कायस्थिति--जघन्यतः उत्कृष्टतः आयुस्थिति -जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः संख्यात काल । उनचास दिन । अंतरकाल-जघन्यत: अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः अनन्तकायस्थिति- जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टत: काल । संख्यात काल। अंतरकाल-जघन्यतः अन्तर्मुहुर्त, उत्कृष्टतः अनंत ८. पंचेन्द्रिय त्रस के प्रकार काल । पंचिदिया उ जे जीवा, चउविवहा ते वियाहिया । ७. चतुरिन्द्रिय त्रस के प्रकार नेरइयतिरिक्खा य, मण या देवा य आहिया ।। चउरिदिया उ जे जीवा, विहा ते पकित्तिया । (उ ३६।१५५) पज्जत्तमपज्जत्ता"..."" । (उ ३६।१४५) पंचेन्द्रिय जीव चार प्रकार के हैं-१. नैरयिक, चतरिन्द्रिय जीव के दो प्रकार हैं- पर्याप्त और २. तिथंच, ३. मनुष्य और ४. देव । (द्र. संबद्ध नाम) अपर्याप्त। अंधिया पोत्तिया चेव, मच्छिया मसगा तहा। ९. अंडज आदि त्रस भमरे कीडपयंगे य, ढिकुणे कुंकुणे तहा ।। ..."अंडया पोयया जराउया रसया संसेइमा सम्मूकुक्कूडे सिगिरीडी य, नंदावते य विछिए। च्छिमा उब्भिया उववाइया" । (द ४।९) डोले भिंगारी य, विरली अच्छिवेहए ।। उत्पत्ति के आधार पर त्रस जीवों के आठ प्रकार अच्छिले माहए अच्छिरोडए, विचित्ते चित्तपत्तए । हैंओहिजलिया जलकारी य, नीया तंतवगाविय ।। अण्डज', पोतज, जरायुज, रसज, संस्वेदज, सम्मूर्छइइ चउरिदिया एए, णे गहा एवमायओ। नज, उद्भिज, औपपातिक । लोगस्स एगदेसम्मि, ते सव्वे परिकित्तिया ।। १. अण्डज -जो अण्डों से पैदा होते हैं, जैसे-पक्षी, (उ ३६।१४६-१४९) सर्प आदि। अंधिका, पोत्तिका, मक्खी, मच्छर, भ्रमर, कीट, २. पोतज -जो जन्म के समय खुले अंगों सहित पतंग, तन्तवक आदि अनेक प्रकार के चतुरिन्द्रिय जीव ___ होते हैं, जैसे -हाथी आदि । हैं। वे लोक के एक भाग में ही प्राप्त होते हैं, समूचे ३. जरायुज' --जो जन्म के समय मांस की झिल्ली लोक में नहीं। से लिपटे रहते हैं, जैसे-मनुष्य, भैंस, गाय आदि । एएसि वण्णओ चेव, गंधओ रसफासओ। ४. रसज--जो दही आदि रसों में उत्पन्न होते हैं, संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो॥ जैसे-कृमि आदि । (उ ३६।१५४) ५. स्वेदज-जो पसीने से उत्पन्न होते हैं, जैसे -जू, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श और संस्थान की दृष्टि से लीख आदि। उनके हजारों भेद होते हैं। ६. सम्मच्छिम--जो नर-मादा के संयोग के बिना ही आयुस्थिति-कायस्थिति-अंतरकाल उत्पन्न होते हैं, जैसे--- मक्खी, चींटी आदि । छच्चेव य मासा उ, उक्कोसेण वियाहिया । ७. उद्भिज -जो पृथ्वी को फोड़कर निकलते हैं, जैसे चरिदियआउठिई, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ।। -टिड्डी, पतंग आदि। संखिज्जकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । ८. औपपातिक-जो गर्भ में रहे बिना ही स्थान विशेष चरिदियकायठिई, तं कायं तु अमुंचओ ।। में पैदा होते हैं, जैसे-देव और नारक । अणंतकालमुक्कोस, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । त्रीन्द्रिय-स्पर्शन, रसन और घ्राण-इन तीन विजढं मि सए काए, अंतरेयं वियाहियं ।। (उ ३६।१५१-१५३) इन्द्रियों वाले जीव । (द्र. त्रस) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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