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________________ महावीर के महास्वप्न ३२७ तीर्थकर वहां एक व्यंतरगह में शूलपाणि यक्ष रहता था। जो जो तालपिसायो हतो तमचिरेण मोहणिज्जं उम्मलेकोई रात्रि में वहां प्रवास करता, उसे पहले वह कष्ट हिसि ।""दामदुगं पुण ण जाणामि । सामी भणतिदेता और फिर मार देता। इसलिए उधर आने वाले हे उप्पला! जंणं तुमं न याणसि तं णं अहं दुविहमराहगीर दिन में वहां ठहरकर संध्या के समय अन्यत्र गाराणगारियं धम्म पन्नवेहामि । चले जाते । भगवान् महावीर ग्रामानुग्राम विहरण करते (आवचू १२७४,२७५) हुए वहां आए। शूलपाणि के द्वारा भगवान् को कुछ न्यून चार प्रहर महावीर ने व्यंतरगृह में रहने की अनुमति मांगी। तक अतीव परिताप दिया गया । फलतः प्रभातकाल में लोगों ने कहा --- आप यहां रह नहीं सकेंगे । हमारी बस्ती भगवान को मुहर्त मात्र नींद आ गई। निद्राकाल में में आप ठहरें । महावीर ने इसे अस्वीकार कर दिया। महावीर ने दस स्वप्न देखे और जाग गए । महानमित्तिक क्योंकि वे जानते थे कि वहां रहने से यक्ष को संबोध उत्पल ने महावीर की वन्दना की और बोलाप्राप्त होगा। अत: व्यंतरगृह में रहने की अनुमति प्राप्त स्वामिन ! आपने रात्रि के अन्तिम प्रहर में दस स्वप्न कर महावीर उसमें गए और एक कोने में ध्यानप्रतिमा देखे, उनका फलादेश इस प्रकार हैमे स्थित हो गए। १. तालपिशाच-आपने तालपिशाच को पराजित भीमद्रहास हत्थी पिसाय नागे य वेदणा सत्त । होते हुए देखा। उसके फलस्वरूप आप शीघ्र ही सिरकण्णनासदन्ते नहऽच्छी पट्ठीय सत्तमिआ ॥ मोहनीय कर्म का उन्मूलन करेंगे। (आवमा ११२) २. श्वेत पुंस्कोकिल-आपने श्वेत पंख वाले पुंस्कोसन्ध्या को भयंकर अट्टहास करता हुआ यक्ष महावीर किल को देखा। उसके फलस्वरूप आप शुक्लको भयभीत करने लगा। अट्टहास से जब महावीर भय ध्यान को प्राप्त होंगे। भीत नहीं हुए तब वह हाथी का रूप बनाकर उपसर्ग ३. विचित्र पुंस्कोकिल-आपने चित्र विचित्र पंख करने लगा। उससे भी भयभीत नहीं हुए तब उसने वाले स्कोकिल को देखा । उसके फलस्वरूप आप पिशाच का रूप बनाया। इतना करने पर भी जब वह द्वादशांगी की प्ररूपणा करेंगे। महावीर को क्षुब्ध न कर सका तो उसने प्रभात काल में ४. दामद्विक-उत्पल ने कहा- आपने स्वप्न में सात प्रकार की वेदना-सिर, कान, आंख, दांत, नख, जो दो मालाएं देखी हैं, उनका फल मैं नहीं जानता। महावीर ने कहा--उत्पल ! जिसे तुम नाक और पीठ में उत्पन्न की। साधारण व्यक्ति के लिए नहीं जानते हो, वह यह है-मैं दो प्रकार के एक-एक वेदना भी प्राणलेवा थी। किन्तु भगवान् उन धर्म--अगारधर्म और अनगारधर्म का प्ररूपण सबको सहते रहे। आखिर प्रभु को विचलित करने में करूंगा। स्वयं को असमर्थ पा यक्ष महावीर के चरणों में गिर कर ५. गोवर्ग-आपने श्वेत गोवर्ग देखा है। उसके बोला-पूज्य ! मुझे क्षमा करें। फलस्वरूप आपके चतुर्वर्णात्मक श्रमणसंघ होगा । महावीर के महास्वप्न ६. पद्मसरोवर-आपने चहुंओर से कुसुमित तालपिसायं दो कोइला य दाम दूगमेव गोवग्गं । विशाल पद्मसरोवर देखा है। उसके फलस्वरूप सर सागर सूरते मन्दर सुविणुप्पले चेव ।। आपकी परिषद् में चतुर्विध देवों का समवाय मोहे य झाण पवयण धम्मे संघे य देवलोए य । होगा अथवा आप चतुर्विध देवों की प्ररूपणा संसारं णाण जसे धम्म परिसाए मझमि ।। करेंगे। (आवभा ११३,११४) ७. महासागर-आपने भुजाओं से महासागर को सामी य देसूणचत्तारि जामे अतीव परितावितो तैरते हुए आपने आपको देखा । उसके फलस्वरूप समाणो पभायकाले मुहुत्तमेत्तं निद्दापमादं गतो। तत्थिमे आप संसारसमुद्र का पार पाएंगे। दस महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धो ।"उप्पलो वि ८. सूर्य-आपने तेज से जाज्वल्यमान सूर्य को देखा सामि दट्टुं पहट्ठो वंदति, ताहे भणति-सामी ! तुब्भेहि है। उसके फलस्वरूप आपको शीघ्र ही केवलज्ञान अंतिमरातीए दस सुमिणा दिट्ठा, तेसिं इमं फलंति - उत्पन्न होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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