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तीर्थंकर
३२६
महावीर का साधना काल
हुआ।
थी। उसके दो नाम थे-शेषवती, यशस्वती।
वह कौशांबी नगरी में चन्दनबाला के हाथ से दान लेने तिहिरिक्खंमि पसत्थे महंतसामंतकुलपसूआए । पर पूर्ण हुआ। कारंति पाणिगहणं जसोअवररायकण्णाए ।
भगवान् ने बारह तेले (तीन दिन का उपवास)
(आवमा ७९) किए । प्रत्येक तेले के अंत में एकरात्रिकी भिक्षप्रतिमा प्रशस्त तिथि-नक्षत्र में महान् सामंत कुल में की आराधना की।। प्रसूत राजकन्या यशोदा के साथ महावीर का पाणिग्रहण भगवान् ने २२९ बेले (दो दिन का उपवास) किए।
साधनाकाल में भगवान् ने भोजन नित्य नहीं किया और ३४. महावीर की तपस्या
न चतुर्थभक्त (एक दिन का उपवास) ही किया । नव किर चाउम्मासे छक्किर दोमासिए उवासीय ।
साधिक बारह वर्षों की अवधि में भगवान का बारस य मासियाई बावत्तरि अद्धमासाई ।
न्यूनतम तप बेला था। उनकी सारी तपस्या चौबिहार एग किर छम्मासं दो किर तेमासिए उवासीय ।
(निर्जल) थी।
भगवान् ने साढ़े बारह वर्ष की अवधि में केवल अड्ढाइज्जाइ दुवे दो चेव दिवढमासाई ।। भदं च महाभदं पडिमं तत्तो य सव्वओभई ।
३४९ दिन आहार किया। उन्होंने उकडू निषद्या
और खड़े-खड़े प्रतिमा करने का सैकड़ों बार प्रयोग दो चत्तारि दसेव य दिवसे ठासीय अणुबद्धं ।।
किया। गोयरमभिग्गहजुयं खमणं छम्मासियं च कासीय।
३५. महावीर का साधना काल पंचदिवसेहि ऊण अव्वहिओ वच्छनयरीए ।। दस दो य किर महप्पा ठाइ मुणी एगराइयं पडिमं ।।
पांच अभिग्रह अट्ठमभत्तेण जई एक्केक्कं चरमराईयं ।। ___सामी विहरमाणो गतो मोरागं संनिवसं."इमे य दो चेव य छट्टसए अउणातीसे उवासिया भगवं ।
तेण पंच अभिग्गहा गहिता, तं जहा-अचियत्तोग्गहे ण न कयाइ निच्चभत्तं चउत्थभतं च से आसि ॥
वसितव्वं, निच्चं वोसट्टे काए मोणं च, पाणीसु भोत्तव्वं, बारस वासे अहिए छठें भत्तं जहण्णयं आसि । .
..."गिहत्थी न वंदियव्वो न अब्भुट्ठयव्वोत्ति ।। सव्वं च तवोकम्मं अपाणयं आसि वीरस्स ।।
(आव १ पृ २७१,२७२)
महावीर की साधना का प्रथम वर्ष । मोराक सन्नितिणि सए दिवसाणं अउणावण्णं तु पारणाकालो।
वेश में महावीर ने पांच अभिग्रह धारण कियेउक्कूडयनिसेज्जाणं ठियपडिमाणं सए बहुए।
१. मैं अप्रीतिकर स्थान में नहीं रहूंगा। (आवनि ५२८-५३५)
२. शरीर की सार-संभाल नहीं करूंगा। भगवान ने नौ बार चार मास का उपवास किया ।
३. मौन रहूंगा। छह बार दो मास का उपवास किया। बारह बार एक मास
४. हाथ में भोजन करूंगा । का उपवास किया। बहत्तर बार पन्द्रह दिन का उपवास
५. गृहस्थ का अभिवादन और अभ्युत्थान नहीं किया।
करूंगा। एक बार छह मास का उपवास किया। दो बार
शूलपाणियक्षकृत उपसर्ग तीन मास का उपवास किया। दो बार ढाई मास का
अद्वितगामे वाणमंतरघरे । जो रत्ति परिवसति तत्थ उपवास किया । दो बार डेढ़ मास का उपवास किया। मो नपाणी मनिहितो रति वाहेत्ता पच्छा
भद्र प्रतिमा (दो दिन की), महाभद्र प्रतिमा मारेति, ताहे तत्थ लोगो दिवसं अच्छिऊणं पच्छा विगाले (चार दिन की), सर्वतोभद्र प्रतिमा (दस दिन की) एक- अन्नत्थ वच्चति.."सामी आगतो दूइज्जतगाण पासातो." एक बार की।
भणंति-वाह, तत्थेक्केक्का वसहिं देंति, सामी णेच्छति, एक बार भगवान् ने आहार प्राप्ति के लिए अभिग्रह भगवं जाणति--सो संबुझिहितित्ति, ताहे गंता एगकोणे किया । वह अभिग्रह पांच मास और पच्चीस दिन तक पडिमं ठितो।
(आवचू १ पृ २७३) पूरा नहीं हुआ । भगवान् विचलित नहीं हए। आखिर महावीर की साधना का प्रथम वर्ष । अस्थिकग्राम।
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