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________________ अर्हत् अरिष्टनेमि ३२१ उनके गर्भस्थ होने पर वासव (वैश्रमण ) ने पुनः पुनः राजकोष को वसु - रत्नों से भरा, अतः उनका नाम वासुपूज्य रखा गया । अर्हत् विमल विमलतणुबुद्धि जणणी गब्भगए तेण होइ विमलजिणो । ( आवनि १०८३ ) जिनके गर्भ में आने पर माता श्यामा की बुद्धि और शरीर - दोनों अत्यन्त विमल हो गये, वे विमल नाम से अभिहित हुए । अर्हत अनंत ..... रयणविचित्तमनंतं दामं सुमिणे तओऽणंतो ॥ ( आवनि १०६६ ) माता सुयशा ने स्वप्न में रत्नजटित अनंत - विशाल माला देखी, अतः पुत्र का नाम रखा - अनंत । अनन्तकर्माशजयादनन्तः, अनन्तानि वा ज्ञानादीन्यस्येति अनन्तः । ( आवहावृ २ पृ १० ) जो अनन्त कर्माशों को जीतता है, उनका क्षय करता है, वह अनन्त है । जो अनन्त ज्ञानचतुष्टयी से सम्पन्न है, वह अनन्त है । अहं धर्म गब्भगए जं जणणी जाय सुधम्मत्ति तेण धम्म जिणो । ( आवनि १०८७) जब धर्मनाथ गर्भ में आये, तब माता सुव्रता और पिता भानु श्रावक धर्म में विशेष रूप से उपस्थित हुए, इसलिए उनका नाम रखा -धर्म । अर्हत् शान्ति .....जाओ असिवोवसमो गन्भगए तेण संतिजिणो ॥ ( आवनि १०८७ ) सर्वत्र व्याप्त महाअतः उनका अभिधान शान्तिनाथ के गर्भ में आने पर मारी का प्रकोप शांत हो गया, हुआ— शांतिजिन । अर्हत् कंथ थूहं रयणविचित्तं कुंथुं सुमिणंमि तेण कुंथुजिणो । '' ( आवनि १०८८ ) गर्भवती माता 'श्री' ने स्वप्न में कु – भूमि पर स्थित थूह - रत्नों का विशाल स्तूप देखा, इसलिए बालक का नामकरण हुआ 'कुंथु' | Jain Education International तीर्थंकर अर्हत् अर ... सुमिणे अरं महरिहं पासइ जणणी अरो तम्हा ॥ ( आवनि १०८८ ) माता देवी ने स्वप्न में अतिसुन्दर, अतिविशाल रत्नमय अर-चक्र देखा, अतः शिशु का नाम रखा 'अर' । सर्वोत्तमे महासत्त्वकुले य उपजायते । तस्याभिवृद्धये वृद्धैरसावर उदाहृतः ।। ( आवहावृ २ पृ १० ) जो सर्वोत्तम, महान् शक्तिशाली कुल में उसकी अभिवृद्धि के लिए उत्पन्न होता है, वह 'अर' कहलाता है । अर्हत् मल्लि वरसुरहिमल्लसय मि डोहलो तेण होइ मल्लिजिणो । ( आवनि १०८९ ) माता प्रभावती को सब ऋतुओं में सुन्दर, सुरभित पुष्पमाला की शय्या का दोहद उत्पन्न हुआ, इसलिए अपनी पुत्री का नामकरण किया 'मल्लि' । सव्वेहिपि परीसह मल्लरागदोसा य हियत्ति । ( आवहावृ २ पृ १० ) जो परीषह तथा राग-द्वेष आदि मल्लों को जीतता है, वह मल्लि है । अर्हत् मुनिसुव्रत .... जाया जणणी जं सुव्वयत्ति मुणिसुव्वओ तम्हा ॥ ( आवनि १०८९ ) बालक के गर्भ में आने पर माता-पिता सुब्रती बने, अतः उनका नाम रखा गया 'मुनिसुव्रत' । अहं नि पणया पच्चंतनिवा दंसियमित्ते जिणंमि तेण नमी । ..... ( आवनि १०९० ) शत्रु राजाओं ने नगर को घेर रखा था। जब उन्होंने अट्टालिका पर खड़ी गर्भवती रानी 'वप्रा' को देखा, गर्भ के प्रभाव से वे सभी राजे तत्काल प्रणत हो गये, अतः शिशु का नामकरण हुआ 'नमि' । अर्हत् अरिष्टनेमि ..... रिट्ठरयणं च नेमि उप्पयमाणं तओ नेमी ॥ ( आवनि १०९० ) गर्भवती माता शिवा ने स्वप्न में अत्यन्त विशाल For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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