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________________ आदिमयुग की सामाजिक ... अर्हतु ऋषभ के दो पत्नियां सुनन्दा | सुमंगला ने भरत और उनचास पुत्रयुगलों को जन्म दिया और सुन्दरी को जन्म दिया । पढमो अकालमच्चू तहिं तालफलेण दारओ पहओ । कण्णा य कुलगरेणं सिट्ठे गहिआ उसहपत्ती ॥ ( आवनि १९४ ) तालवृक्ष के नीचे एक युगल बैठा था। तालफल के गिरने से उनमें से बालक आहत हुआ और मर गया । यह यौगलिक युग की प्रथम अकाल मृत्यु थी। कुलकर नाभि के आदेश से वह कन्या ऋषभ की पत्नी के रूप में स्वीकार की गई । २१. आदिमयुग की सामाजिक व्यवस्था आहार और पाकविद्या 1 आसीय कंदहारा, मूलाहारा च पत्तहारा य । पुप्फफलभोइणोऽवि य, जझ्या किर कुलगरो उसभो ॥ आसीय इक्खुभोई, इस्वागा तेण खत्तिया हंति । सणसत्तरसं धण्णं आमं ओमं च भुंजीया ॥ ओमपाहारंता अजीरमाणमि ते जिणमुविति । हत्येहि घंसिकणं आहारेहत्ति ते भणिया || आसीय पाणिघसी तिम्मियतं दुलपवालपुडभोई । हत्थतलपुडाहारा जइया किर कुलगरो उसहो । ..... कक्खसे य ॥ अगणिस्स य उट्ठाणं दुमघंसा दट्ठू भीयपरिकहणं । पासेसुं परिदिह गिण्हह पागं च ततो कुणह ॥ पक्खेव डहणमोसहि कहणं निग्गमण हत्थिसीसम्म | पवणारंभपविति ताहे कासी य ते मणुआ ॥ ( आवभा ५ - ११ ) ऋषभ के प्रारंभिक समय तक मनुष्य कंद, मूल, पत्र, फूल और फल का आहार करते थे । इक्षु का भोजन करने के कारण क्षत्रिय इक्ष्वाकु कहलाए। उस समय के लोग सन प्रमुख सतरह प्रकार के धान्य का भोजन करते थे । वे कच्चा धान्य खाते और बहुत कम मात्रा में खाते । कम मात्रा में किया गया भोजन भी कच्चा होने के कारण पचता नहीं था। इस समस्या को लेकर लोग ऋषभ के पास आए। ऋषभ ने धान्य को हाथों से मर्दन कर खाने के लिए कहा । Jain Education International थीं- सुमंगला और ब्राह्मी युगल को तथा सुनन्दा ने बाहुबली ३१५ तीर्थंकर कुछ समय के बाद मर्दन कर खाया जाने वाला धान्य भी जीणं नहीं होता था। ऋषभ ने उन्हें चावल आदि सब प्रकार के धान्यों को दोनों में भिगोकर खाने का निर्देश दिया। जब वह भी दुष्पाच्य हो गया तो भिगोये हुए धान्य को मुहूर्त भर हाथ में रखकर खाने की बात कही । जब भिगोया हुआ धान्य हाथ में रखकर खाने पर भी दुष्पाच्य हो गया तो उसे कांख की उष्मा में रखकर खाने की बात कही । एकान्त स्निग्ध और एकान्त रूक्ष काल में अग्नि की उत्पत्ति नहीं होती । एकान्त स्निग्ध काल के बीत जाने पर वृक्षों के घर्षण से एक दिन अग्नि की उत्पत्ति हुई। लोग उसे देख भयभीत हो गए और ऋषभ को उसकी सूचना दी। ऋषभ ने उन्हें आसपास के घासपात को काटकर अग्नि में धान्य पकाने का निर्देश दिया । धान्य को अग्नि में डाला तो वह जल गया। वे ऋषभ के पास आए और सारी बात बताई। ऋषभ हाथी पर आरूढ़ हो उन सबको साथ ले नगर के बाहर आए । मिट्टी का पिंड लिया। हाथी के कुम्भ पर रख एक बर्तन बनाया और कहा- इस प्रकार बर्तन बनाओ और धान्य बर्तन में पकाकर खाओ। तब से पाकविद्या और पात्र निर्माण विद्या का प्रारंभ हुआ। शिल्पकर्म पंचैव य सिप्पाई घड लोहे चित्त णंत कासवए । इक्किक्कस्स य इतो दीसं वीतं भवे भेया ॥ ( आवनि २०७ ) अग्नि का आविष्कार होने के बाद पांच प्रकार के शिल्प - कुम्भकार शिल्प, लोहकार शिल्प, चित्रकार शिल्प, वस्त्र शिल्प ( जुलाहा ) और नापित शिल्प का प्रवर्तन हुआ। प्रत्येक शिल्प की बीस-बीस विधाओं का विकास हो गया । लेख लेहं लिबी विहाणं जिणेण बंभीइ दाहिणकरेण । गणियं संखाणं सुंदरी वामेण उवहट्ठे ॥ ( आवभा १३ ) ऋषभ ने अपनी ज्येष्ठपुत्री ब्राह्मी को लिपि और कनिष्ठपुत्री सुन्दरी को गणित सिखाई। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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