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________________ तीर्थकर ३१४ गृहस्थ-पर्याय १५. ऋषभ नामकरण मरुदेवा प्रतिबुद्ध हुई। उसने नाभि के समक्ष स्वप्नों की ऊरूस उसभलंछणं उसभं सूमिणमि तेण उसभजिणो। चची की, तब नाभि ने कहा-तुम्हारा पुत्र महाकुलकर वष-उद्वहने, उवढं तेन भगवता जगतसंसारमग्गं होगा । देवेन्द्र शक्र ने उपस्थित होकर कहा-देवानप्रिये ! अतूलं नाणदंसणचरित्तं वा तेन ऋषभ इति । तुम्हारा पुत्र त्रिभुवन का मंगलगृह, प्रथम धर्मचक्रवर्ती (आवनि १०८० च २४९) और महान् महाराजा होगा। दोनों ऊरूओं-जंघाओं पर वृषभ का चिह्न होने १८. ऋषभ का जन्म के कारण वे ऋषभ कहलाए । नाभी विणीअभूमी मरुदेवी उत्तरा य साढा य । माता मरुदेवी ने सर्वप्रथम वृषभ का स्वप्न देखा, राया य वइरणाहो विमाणसव्वट्ठसिद्धाओ ।। इसलिए उनका नामकरण ऋषभ हुआ। ..."रिक्खेण असाढाहिं असाढ बहुले चउत्थीए । जो संसार का उद्वहन-उद्धार करता है, वह चित्तबहलमीए जाओ उसभो आसाढणक्खत्ते ।.... वृषभ-ऋषभ है। (आवनि १७०,१८५,१८७) जो अतुल ज्ञान, दर्शन और चारित्र को धारण करता कुलकर नाभि अर्हत् ऋषभ के पिता थे। मरुदेवी है, वह वृषभ है। उनकी माता थी। विनीताभूमि उनकी जन्मभूमि थी। १६. ऋषभ के पूर्वभव उत्तराषाढा नक्षत्र, आषाढ कृष्णा चतुर्थी को सर्वार्थसिद्ध विमान से उनका च्यवन हुआ और उत्तराषाढा नक्षत्र, १. धन सार्थवाह (अवरविदेह) । २. मनुष्य (उत्तरकुरु)। चैत्र कृष्णा अष्टमी को उनका जन्म हुआ। देवभव से ३. सौधर्म देव । पूर्वभव में वे वज्रनाभ राजा थे । ४. महाबल राजा (अवरविदेह) । १६. इक्ष्वाकुवंश, काश्यप गोत्र ५. ईशान कल्प में ललितांग देव । देसूणगं च वरिसं सक्कागमणं"। ६. वज्रजंघ राजा (पुष्कलावती विजय)। सक्को बंसट्रवणे इक्ख अगू तेण हंति इक्खागा"। 9. योगलिक (उत्तरकुरु) (आवनि १८९,१९०) ८. सौधर्म देव जब कुमार ऋषभ लगभग एक वर्ष के हुए, इन्द्र ९ चिकित्सकपुत्र (महाविदेह) का आगमन हुआ। खाली हाथ कैसे जाऊं-यह सोच १०. अच्युत देव इन्द्र इक्षुयष्टि के साथ प्रविष्ट हुए। उस समय ऋषभ ११. वज्रनाभ चक्रवर्ती (पूर्व विदेह) अपने पिता नाभि की गोद में थे। उनकी दृष्टि इक्षु पर १२. सर्वार्थसिद्ध देव । पड़ी, तब शक्र ने पूछा-क्या आप इक्ष खायेगे? ऋषभ १३. ऋषभ । (देखें-आवनि १७१-१७८) ने प्रसन्नता से हाथ फैला दिया । इन्द्र ने सोचा- ऋषभ १७. मरुदेवा के स्वप्न को इक्षु प्रिय है, इसलिए इस वंश का नाम इक्ष्वाकु रहेगा। इन्द्र प्रथम तीर्थंकर के वंश की स्थापना करते चोद्दस सुमिणा उसभगयसीहमाद पासित्ता पडिबुद्धा हैं-यह परम्परा है। णाभिस्स कहेति । तेण भणियं - तुझ पुत्तो वड्डो कुल ___ऋषभ के पूर्वज इक्षु रस पीते थे, इसलिए वे काश्यपगरो होहिति त्ति । सक्कस्स आसणं चलितं, सिग्धं गोत्रीय कहलाये। आगमणं, भणति-देवाणुप्पिया ! तव पुत्तो सयलभुवणमंगलालओ पढमधम्मवरचक्कवट्टी महइ महाराया २०. गृहस्थ-पर्याय भविस्सइ। (आवच १ पृ १३५) देवी सुमंगलाए भरहो बंभी य मिहुणयं जायं । ऋषभ जब सर्वार्थ सिद्धविमान से मरुदेवा के गर्भ में देवीइ सुनंदाए बाहुबली सुंदरी चेव ।। आये तब वृषभ, गज, सिंह, लक्ष्मी, माला, चन्द्र, (आवभा ४४) सूर्य, ध्वज, कुंभ, पद्मसरोवर, सागर, विमान, ___ आउणापण्णं जुअले पुत्ताण सुमंगला पुणो पसवे । रत्नराशि और अग्नि-इन चौदह स्वप्नों को देख माता (आवनि १९७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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