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________________ ग्रन्थ- परिचय ३३ आरक्षित 'यविकों' के ज्ञाता थे । 'जविएहि फिर भणिया आऊसेढी' - यविकों में आयुश्रेणि प्रज्ञप्त है । वे यविकों में उपयुक्त हुए तो ज्ञात हुआ कि इसकी आयु सौ, दो सौ, तीन सौ वर्ष से भी अधिक है, यह दो सागरोपम की स्थिति वाला देव है । देव ने अपनी वस्तुस्थिति बताकर निगोदजीवों के बारे में सुनना चाहा । आर्यरक्षित ने निगोद का स्वरूप प्रतिपादित किया ।" विशेषावश्यक भाष्य विक्रम की सातवीं शताब्दी । आचार्य जिनभद्र ने आवश्यक सूत्र के प्रथम अध्ययन ' सामायिक' पर विशेषावश्यक भाष्य लिखा । ३६०३ गाथा प्रमाण यह भाष्य आवश्यकनियुक्ति के गूढ अर्थों की विस्तृत एवं विशद विवेचना है । इसमें ज्ञानवाद, नयवाद, आचारशास्त्र, कर्मशास्त्र आदि अनेक आगमिक विषयों की महत्त्वपूर्ण चर्चा है । दार्शनिक विषयों की युक्तियुक्त प्रस्तुति के साथ अपर दर्शनों की मीमांसा भी की गई है । प्रायः सभी उत्तरवर्ती आगमिक व्याख्याओं में इसका उपयोग किया गया है। स्वयं भाष्यकार ने इसकी स्वोपज्ञ वृत्ति लिखी, किंतु वह अपूर्ण रह गई, जिसकी संपूर्ति कोट्याचार्य ने की। विक्रम की बारहवीं शती में मलधारी हेमचन्द्र ने इस पर सुबोध एवं सरस शैली में शिष्यहिता वृत्ति लिखी । २. दशवेकालिक इसके दस अध्ययन हैं । यह विकाल वेला में पूर्ण हुआ, इसलिए इसका नाम दशवैकालिक रखा गया । इसके कर्त्ता श्रुतवली आचार्य शय्यंभव हैं। अपने पुत्र शिष्य मनक के लिए उन्होंने इसकी रचना वीर संवत् ७२ के आसपास चंपा नगरी में की। इसमें दो चूलिकाएं हैं। इसका समावेश चरणकरणानुयोग में होता है । इसका प्रतिपाद्य है मुनि का आचार। यह एक निर्यूहण कृति है। इसके कुछ अध्ययनों का निर्यूहण पूर्वी से हुआ है । इसके मुख्य चार व्याख्या ग्रन्थ हैं –निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि और वृत्ति । निर्युक्ति दशर्वकालिक नियुक्ति की ३७१ गाथाओं में दश, मंगल, द्रुम, धर्म, श्रामण्य, पूर्वक, भिक्षु, विनय, रति इत्यादि विषयों को निक्षेप पद्धति से समझाया गया है। प्रसंगवश हेतु, उदाहरण, विहंगम, पद, धान्य, रत्न, स्वर्ण, काम आदि विषयों का सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है। चूर्णिद्वय कालिक नियुक्ति का अनुसरण करने वाली दो चूर्णियां हैं १. अगस्त्य चूर्णि – वज्रस्वामी की परम्परा के स्थविर श्री अगस्यसिंह द्वारा कृत यह चूर्णि सरल प्राकृ भाषा में है । यह सबसे प्राचीन चूर्णि है । इस चूर्ण में तत्त्वार्थ सूत्र, आवश्यक नियुक्ति, ओघनिर्युक्ति, व्यवहारभाष्य, कल्पभाष्य आदि ग्रन्थों का उल्लेख है । २. जिनदासचूर्णि - इसमें अन्यान्य विषयों के साथ ज्ञानाचार, दर्शनाचार, वीर्याचार, धर्मकथा, अर्थकथा आदि विषयों पर विशेष प्रकाश डाला गया है । यह संस्कृत मिश्रित प्राकृत में है। इसका रचनाकाल विक्रम की ७वीं, 5वीं शताब्दी है । हारिभद्रया वृत्ति हरिभद्रसूरि संविग्न- पाक्षिक थे। ये संस्कृत के प्रथम टीकाकार (वि. ८-९ शताब्दी ) थे । १. आवचू १ पृ ४११,४१२. हा १ पृ २०६, २०७. म प ३९९, ४०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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