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________________ ज्ञान के पांच प्रकार २८९ ज्ञान है। ३. मतिज्ञान आदि के क्रम का हेतु णज्जति एतम्हि त्ति णाणं, णाणभावे जीवो त्ति । ४. चार ज्ञान क्षयोपमश भाव (नन्दीचू पृ १३) ५. ज्ञान-प्राप्ति के विकल्प ० जानना ज्ञान है। ६.ज्ञान के दो प्रकार ० क्षायोपशमिक अथवा क्षायिक भाव से जीव आदि ७. प्रत्यक्ष ज्ञान का निर्वचन पदार्थ जाने जाते हैं। ० परिभाषा ० इसके होने पर जाना जाता है, इसलिए यह ज्ञान ० प्रकार ८. इन्द्रियप्रत्यक्ष की परिभाषा परिभाषा ० प्रकार सविसेसं सागारं तं नाणं ।.. (विभा ७६४) ० इन्द्रियज्ञान संव्यवहार प्रत्यक्ष जो वस्तु के विशेष रूपों-भेदों का ग्राहक है, वह .इन्द्रियज्ञान परोक्ष साकार उपयोग ज्ञान है। ९. नोइन्द्रियप्रत्यक्ष की परिभाषा णाणं च णेयाओ अव्वतिरित्तं । कहं ? जाव जाणि• प्रकार यव्वा भावा ताव णाणं । (आवचू १ पृ २९) १०. परोक्ष ज्ञान की परिभाषा ज्ञान और ज्ञेय अभिन्न हैं। क्योंकि जितने ज्ञेय पदार्थ ० प्रकार हैं, उतना ज्ञान है। • परोक्षता का हेतु ११. ज्ञान और नय २. ज्ञान के पांच प्रकार १२. ज्ञान और सम्यक्त्व में भेद नाणं पंचविहं पण्णत्तं, तं जहा आभिणिबोहिय१३. ज्ञानसम्पन्नता के परिणाम नाणं सुयनाणं ओहिनाणं मणपज्जवनाणं केवलनाणं । १४. चेतना-विकास का क्रम (नन्दी २) १५. ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम सब जीवों में ज्ञान के पांच प्रकार हैं-आभिनिबोधिक ज्ञान *ज्ञानावरण के प्रकार (द्र. कर्म) (मतिज्ञान), श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, केवल•ज्ञान के आचार (द. आचार) ज्ञान। (द्र. सम्बद्ध नाम) *ज्ञान विनय (द्र. विनय) एवं पंचविहं नाणं दव्वाण य गुणाण य । *ज्ञान भावना (द्र. भावना) पज्जवाणं च सव्वेसिं नाणं नाणीहि देसियं ।। * पांच ज्ञान और सामायिक (द्र. सामायिक) (उ २८।५) *ज्ञान : भावप्रमाण का एक भेद (व.प्रमाण) | यह पांच प्रकार का ज्ञान सर्व द्रव्य, गुण और * मिथ्यात्वी का ज्ञान अज्ञान (द्र. अज्ञान) | पर्यायों का अवबोधक है-ऐसा ज्ञानियों ने बतलाया १६. सामान्य बोध-दर्शन ० दशन के प्रकार चार ज्ञान स्वार्थ, श्रुतज्ञान परार्थ • चक्षुदर्शन-अचक्षुदर्शन चत्तारि नाणाइं ठप्पाइं ठवणिज्जाइं- नो उद्दि• अवधिवशन स्संति, नो समुद्दिस्संति, नो अणुण्णविज्जति । सुयना* केवलदर्शन (द्र.केवलज्ञान) | णस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ । ज्ञान और दर्शन का भेद क्यों ? (अनु २) १. ज्ञान का निर्वचन चार ज्ञान प्रतिपादन में सक्षम नहीं होने के कारण णाती णाणं-अवबोहमेत्तं । स्थाप्य-स्थापनीय हैं । इसलिए इनके उद्देश (अध्ययन का खओवसमियखाइएण वा भावेण जीवादिपदत्था । निर्देश) समुद्देश (स्थिरीकरण का निर्देश) और अनुज्ञा णज्जति इति णाणं। (अध्यापन का निर्देश) नहीं होते। श्रुतज्ञान के उद्देश, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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